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& है और न पेट को रोटी है, सभी बड़े से बड़े छोटे से छोटे, मनुष्य पा तिर्यच दुखो क्या महान दुखी है, 8
'यथा राजा तथा प्रजा' खेत का रक्षक ही खेत की साख खाने लगे तो खेत को रक्षा कौन करेगा ?
बिचारे क पा सन्दर, कुता, गाय, बैल, बकरी, बकरा, सूअर, भेड़ इत्यादि जलचर निरअपराधी 8 छह 8 हाला
प्रतिदिन असंख्यात जीवों का सवेरे सूर्य की किरण निकलने से पूर्ण ही संहार हो जाता है । थलचर पृथ्वी पर चलने वाले और मुर्गा-मुर्गे अनेक जाति के पक्षी आकाश में उड़ने वाले तथा मछली इत्यादि
जलचर निरअपराधियों का हर रोज वध हो जाता है । रक्षक ही भक्षक हो रहे हैं । कहां अहिंसाधर्म 8 रहा ? कहां सच्चा ज्ञान रहा ? समय का परिवर्तन ही अशुद्ध हो गया-ऐसा भोले मानव कहते है । & जो यह कहते हैं वे आत्मज्ञान से हीन हैं, शून्य हैं । अब आगे सम्यक् ज्ञान को धारण करें ।
सम्यकज्ञानी होइ, बहरि दढ़ चारित लीजै । एक देश अरु शकलदेश, तस भेद कहीजै ।। नसहिंसा को त्याग वथा, थावर न संघारै । पर वधकार कठोर निंद्य नहिं वयन उचारै।।६।। जल मतिका विन और नाहिं कछ गहै अदत्ता। निज वनिता बिन सकल, नारिसौं रहे विरत्ता ।। अपनी शक्ति विचार परिग्रह थोरो राखे । दश दिशि गमनप्रमान, ठान तसु सीम न नाखे ॥१०॥ ताह में फिर ग्राम गली गह बाग बजारा । गमनागमन प्रमान ठान अन सकल निवारा ।।