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छह डालाई
पर्वत से गिरना, अग्नि में प्रवेश करना, सूर्य को अर्ध देना, अग्नि की पूजा करना, अग्निहोत्र करना, गाय के मूत्र का सेवन करना, गोबर को पवित्र मानना, गोवर से प्रारती बनाना और करना, मकान की देहली पूजना, दवात कलम बही खाता गाड़ी बेल घोड़ा गाय आदि पूजना, रत्न रूपा गाय शस्त्र आदि की पूजा करना, मकर संक्रान्ति आदि के समय तिल के स्नान से उसके दान से पुण्य मानना, सूर्य चन्द्र आदि ग्रहण के समय दान देना. संध्या समय हो मौन धारण करने में धर्म मानना, ये सब लोक मूढ़ता ही | सम्यग्दृष्टि को इनका त्याग अवश्य ही करना चाहिए । किसी दर पाने की इच्छा से आशावान होकर राग द्वेष से मलीन देवताओं की पूजा उपासना करना सो देव मूढ़ता है | मोह रूपी मदिरा के पान करने से मत, नाना प्रकार के कुत्सित वेषों के धारण करने वाले और अन्य मतावलंबियों से परिकल्पित ब्रहमा, उपामति, गोविन्द शाक्य, चन्द्र, सूर्य प्रादिक में आप्त बुद्धि करना उन्हें अपनी आत्मा का सच्चा उद्धारक देव मानना, ये सब देव मूढ़ता ही है। आरंभी परिग्रहो और हिंसादि पापाचरण करने वाले, संसार रूप समुद्र की भवर में डुबकियां लेने वाले पाखंडी, ढोंगी और नाना वेष के धारक कुगुरुओं का आदर-सत्कार करना सो पाखण्डि मूढ़ता है । इसको गुरु मूढ़ता भी कहते हैं। चौथे अंग के कारण सम्यग्दष्टि को उक्त तीनों मूढ़ताओं को छोड़ देना चाहिए । किसी मनुष्य के बीमार होने पर बीमारी के अनुसार उसका इलाज न कराकर बीमारी को दूर करने के लिए शोलला को माता मानकर जल चढ़ाना, दुर्गा पाठ करना, मूर्तियों का चरणोदक सिर से लगाना पीना मन्त्र जाप करना आदि सब मूढ़ता ही हैं । फिर भले ही ये काम महावीर या पार्श्वनाथ को आधार बना कर किये जायें या बुद्ध, विष्णु, शिव, पार्वती, पद्मावती, चक्रेश्वरी, ज्वालामालिनी, काली, गौरो आदि किसी देवी देवता को आधार बनाकर किये जायें । कुछ लोग ऐसा समझते हैं कि रोग आदि.