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अगृहीत दोनों ही प्रकार के मिथ्यादर्शन, मिथ्याज्ञान और अनन्त दुःखों का कारण मिथ्या चारित्र है © इनको छोड़ना चाहिए और सम्यग्दर्शन सम्यक्ज्ञान और सम्पचारित्र को धारण करना चाहिये, जिससे 8
कि आत्मा अपने यथार्थ स्वरूप को प्राप्त कर अनन्त सुखी धन, संसार परिभ्रमण से मुक्त हो सके। काला अर्थात् जो मनुष्य देव मूढता, गुरु मूढता और लोक मूढता इन तीनों से रहित है, तथा मापा, मिथ्या 8
और निशन, इन तीनों शाल्यों से रहित है, और राग, द्वेष और मोह इन तीनों दोषों से रहित है, तीनों मन, वचन और काय दंडों से रहित है, और ऋद्धियों का मद आदि तीन गर्यो से रहित है, और सम्यग्दर्शन, सम्यक् ज्ञान और सम्यक् चारित्र से भूषित है, वेहो साधु मोक्ष तक पहुंचने वाले मार्ग के 8 स्वामी होते हैं।
तोसरी ढाल में संसार परिभ्रमण से छुटने और मोक्ष पाने का उपाय बतलाते हैंनरेंद्रछंद (जोगीरासा)-आतम को हित है सुख, सो सुख आकुलता बिन कहिये। इस
आकुलता शिव मांहि न तातें, शिवमग लाग्यो चहिये ॥ सम्यकदर्शन ज्ञान चरण शिवमग सो दुविध विचारो।
जो सत्यारथ रूप सु निश्चय, कारण सो व्यवहारो ॥१॥ __ अर्थ-आत्मा का हित सुख है और वह सुख आकुलता के बिना किया गया है । आकुलता मोक्ष में नहीं है, इसलिए प्रात्म हितषियों को मोक्ष मार्ग में लगना चाहिये । एक निश्चय मोक्ष पष्ट & मार्ग और दूसरा घ्यवहार मोक्ष मार्ग । जो यथार्थ स्वरूप है, वह निश्चय मोक्ष मार्ग है, और जो 80 & निश्चय मोक्षमार्ग का कारण है, वह व्यवहार मोक्ष मार्ग है। भावार्थ-संसार के प्राणीमात्र आत्मा ४ & में सुख चाहते हैं, सरचा मुख बही है, जिसमें लेशमात्र भी आकुलता नहीं है । संसार के इन्द्रिय ४ .