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हाला
& जनित सुख सर्वत्र आकुलता से भरे हुए विखलाई देते हैं । इस लिए उसे सच्चा सुख नहीं माना गया & है। आकुलता तो एक मात्र मोक्ष में नहीं है। इसलिए सुखमात्र के इच्छुक भव्यजीवों को मोक्ष मार्ग
पर चलने का उपदेश दिया है । सन्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान और सम्यक् चारित्र को मोक्ष मार्ग कहा गया ४ है । इन तीनों का कथन आगे कहेंगे । यहां पर जो एकमात्र शुद्ध आत्मा के आश्रित पर के संग से सर्वथा रहित है, वह निश्चय मोक्ष मार्ग है । जो निश्चय मोक्ष मार्ग का कारण है वह व्यवहार मोक्ष मार्ग है । इनका खुलासा लिखते हैंजोगरासा-पर-द्रव्यनितें भिन्न आपमें रूचि, सम्यक्त्व मला है ।
आप रूप को जान पनो, सो सम्यक ज्ञान कला है । आप रूप में लीन रहे थिर, सम्यक् चारित सोई ।
अब व्यवहार मोक्ष मग सुनिये हेतु नियत को होई ॥२॥ अर्थ-पुद्गल आदि परद्रव्यों से अपने आपको सर्वथा भिन्न समझकर अपनी आत्मा में जो दृढ़ रूचि, प्रतीति, श्रद्धान या विश्वास होना, सो निश्चय सम्यग्दर्शन है । अपने आत्म स्वरूप का यथार्थ जानना सो निश्चय सम्यग्ज्ञान है। अपनी आत्मा में लीन होकर स्थिर हो जाना, सो निश्चय ४ सम्यक चारित्र है। इस प्रकार मोक्ष मार्गका वर्णन किया। अब व्यवहार मोक्ष मार्ग लिखते हैं । भावार्थ -भेद रूप लत्रय को व्यवहार मोक्ष मार्ग और अभेद रूप रत्नत्रय को निश्चय मोक्ष मार्ग कहते हैं । भेद रूप रत्नत्रय साधन या कारण है । और अमेव रूप रत्नत्रय उसका साध्य या कार्य है। ॐ सात तत्त्वों के श्रद्धान को सम्यग्दर्शन कहते हैं, वे सात तत्व ये हैं, उनका यह स्वरूप है। इत्यादि वचनात्मक कथन को भेद रत्नत्रय या व्यवहार मोक्षमार्ग जानना चाहिये । सात तत्त्वों का स्वरूप