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छहढाला
प्रश्न ५–सच्चे सुख का उपाय क्या है ?
उत्तर--बहिरात्मापने का त्याग कर, अन्तरात्मा बनो और निरन्तर परमात्मा का ध्यान करो, यही सच्चे सुख का उपाय है |
अजीव द्रव्य चेतनता बिन सो अजीव है, पंच भेद ताके हैं । पुद्गल पञ्च वरन रस गन्ध दु फरस वस जाके हैं ।। जिय पुद्गल को बलन सहाई, धतिका अनरूपी ! तिष्ठत होय अधर्म सहाई, जिन बिन मूर्ति निरूपी ।।७।।
शब्दार्थ-वरन = वर्ण । दु = दो । फरस = स्पर्श । वसु = आठ । जाके = जिसके । जिय = जीव । चलन = चलने में | सहाय = सहायक । मनरूपी = रूपरहित । तिष्ठत = ठहराते हुए । जिन = जिनेन्द्र भगवान । बिन मर्ति - अमर्ति, निरूपी - कहा है। अर्थ- (१) जिसमें जानने-देखने की शक्ति नहीं है वह अजीव है । (२) पाँच वर्ण, पाँच रस, दो गन्ध और आठ स्पर्श जिसमें
पाये जायें वह पदगल है । जो जीव और पुद्गल को चलने में सहकारी हैं, वह
अमूर्तिक धर्म द्रव्य है। (४) जो ठहरते हुए जीव और पुद्गलों को ठहरने में सहायक
होता है उसे अधर्म द्रव्य कहते हैं । प्रश्न १-अजीव द्रव्य कितने हैं ?
उत्तर—पाँच अजीव द्रव्य हैं—(१) पुद्गल, (२) धर्म, (३) अधर्म, (४) आकाश और (५) काल ।
प्रश्न २–पाँच वर्ण कौनसे हैं ? .
उत्तर-(१) काला (२) पीला (३) नीला (४) लाल (५) सफेद ।
प्रश्न ३–पाँच रस बताइए ?
उत्तर-(१) खट्टा (२) मीठा (३) कडवा (४) चर्परा (५) कसेला ।
प्रश्न ४—दो गन्ध बताइए ? उत्तर-(१) सुगन्ध और (२) दुर्गन्ध ।