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छहढाला
प्रश्न ३ – संसार में धन्य जीवन किसका है ?
उत्तर
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- जिस जीव ने मानव जीवन पाकर मुक्ति मार्ग के साधक मुनि पद को प्राप्त किया, संसार में उसी का जीवन धन्य हैं ।
प्रश्न ४ - पंचपरावर्तन रूप संसार कौन-सा है ?
उत्तर---(१) द्रव्य, (२) क्षेत्र, (३) काल, (४) भाव और (५) भव ये पंच परावर्तन रूप संसार हैं ।
प्रश्न ५
- इस संसार का नाश कौन कर सकता है ?
उत्तर – जो मानव जीवन पाकर मुनि पद को प्राप्त कर सफल होता हैं वही पंचपरावर्तन रूप संसार का नाश करता है। मुनि बने बिना कभी मुक्ति नहीं मिलेगी ।
रत्नत्रय का फल एवं आत्महित की शिक्षा मुख्योपचार दुभेद यों, बड़भागि रत्नत्रय घरैं । अरु धरेंगे ते शिव लहैं तिन, सुजश जल जगमल हरें ।। इमि जानि, आलस हानि साहस, ठाण यह सिख आदरो । जबलों न रोग जरा गहै, तबलों झटिति निजहित करो ।। १४ । । शब्दार्थ - मुख्योपचार = निश्चय व्यवहार 1 दुभेद = दो प्रकार । बड़भागि भाग्यशाली । सुजश जल ( सुयश ) कीर्तिरूपी जल । जगमल = संसार का मैल । इमि = इस प्रकार । जानि जानकर आलस = प्रमाद | हानि - नष्ट कर । साहस = धैर्य ठानि करके | सिख शिक्षा | आदरो = धारण करो । जबलों = जब तक | जरा = बुढ़ापा । गहुँ - घेरता है। झटिति = शीघ्र । निजहित
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अपना भला |
अर्थ -- जो भाग्यवान पुरुष इस तरह निश्चय और व्यवहार रूप दो प्रकार के रत्नत्रय को धारण करते हैं और धारण करेंगे वे मोक्ष पाते हैं तथा पावेंगे | उनका कीर्तिरूपी जल संसाररूपी मैल को नष्ट करता हैं । इस प्रकार जानकर आलस्य को नष्ट कर साहस करके इस शिक्षा को ग्रहण करो कि जब तक रोग और बुढ़ापा नहीं घेर लेता है तब तक शीघ्र ही अपना भला कर लेना चाहिये ।
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