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छहढाला
उत्तर - मोहनीय के नाश से
दर्शनावरणी के नाश से ज्ञानावरणी के नाश से गोत्र कर्म के नाश से
नाम कर्म के नाश से आयु कर्म के नाश से वेदनीय कर्म के नाश से अन्तराय कर्म के नाश से
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सम्यक्त्व गुण प्रकट होता हैं । दर्शन गुण प्रकट होता है । ज्ञान गुण प्रकट होता हैं । अगुरुलघुत्व गुण प्रकट होता है। सूक्ष्मत्त्व गुण प्रकट होता है । अवगाहनत्व गुण प्रकट होता है अव्याबाधत्व गुण प्रकट होता है । वीर्यत्व गुण प्रकट होता है ।
I
मोक्ष पर्याय की महिमा
निजमाँहि लोक अलोक गुण, परजाय प्रतिबिम्बित बचे । रहि हैं अनन्तानन्त काल, यथा तथा शिव परणये ।। धनि धन्य हैं वे जीव नरभव, पाय यह कारज किया । तिनही अनादि भ्रमण पंच, प्रकार तजि कर सुख लिया ।। १३ ।। शब्दार्थ — निजमाँहि = सिद्ध भगवान में । प्रतिबिम्बित थये = चमकने लगते हैं । रहि हैं = रहेंगे । यथा = I जैसे । तथा वैसे कारज = कार्य | पंच प्रकार = पाँच परिवर्तन रूप । तजि = छोड़ । वर = अर्थ – उन सिद्ध भगवान की आत्मा में लोक और अलोक के अनन्त पदार्थ, गुण पर्यायों सहित झलकने लगते हैं। वे जैसे मोक्ष गये हैं वैसे ही अनन्त - अनन्त काल तक वहाँ ही रहेंगे। जिन जीवों ने मनुष्य जन्म पाकर मुनि पद की प्राप्ति रूप काम किया है वे जीव बड़े भाग्यवान हैं और ऐसे ही जीवों ने अनादिकाल से चले आये पाँच परिवर्तन रूप संसार परिभ्रमण को त्याग कर उत्तम सुख पाया है ।
श्रेष्ठ ।
प्रश्न १ - सिद्ध भगवान के ज्ञान की विशेषता बताइए ? उत्तर – सिद्ध भगवान का आत्मा में लोक- अलोक के अनन्तानन्त पदार्थ अनन्त गुण पर्यायों सहित एकसाथ झलकने लगता है ।
प्रश्न २ – सिद्धालय में सिद्ध भगवान कितने समय तक रहते हैं ? उत्तर - अनन्तानन्त काल तक मोक्ष में रहते हैं । वे कभी भी पुनः
लौटकर नहीं आते हैं ।