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________________ ४०६ परणानुयोग-२ धर्म में पराम के लिए एलक का दृष्टांत सूत्र ८१३-१४ पंडिए पीरियं ला णिग्घायाय पवत्तमं । कर्म को विदारण करने में समर्थ वीर्य को प्राप्त करके धुणे पुष्यकाळ कम्म, पवं चाविण कुब्बई ।। पण्डितसाधक पूर्वकृत कर्मों को नष्ट करे और नवीन कर्मवन्ध न करे। ण कुम्वई महावीरे, कर्म विदारण करने में समर्थ धर्मवीर अनादि काल से किये अणुपृथ्व कड रयं । जाने वाले पापकर्म को नहीं करता है, वह पापकर्म पूर्वकृत पाप रयसा संमूहीभूते, के प्रभाव से ही किया जाता है। परन्तु वह पुरुष अपने पूर्वकृत कम्मं हेच्चाण जं मत । पापकर्मों को रोक कर मोक्ष के सम्मुख हो जाता है। जं मतं सवसाहूणं, समस्त साधुओं को मान्य जो संयम है, वह कर्मरूप शल्य तं मतं सल्लगत्तप्पं । को काटने वाला है। इसलिए अनेक साधक उस संयम की साहइत्ताग से तिष्णा, भाराधना करते. संसार सागर से पार हुए हैं अथवा वे देव देवा वा अविसु ते ॥ अविमु पुरा वीरा, आगमिस्सा बि सुब्वया । प्राचीनकाल में बहुत से श्रीर पुरुष हुए हैं और भविष्य में दुण्णिबोहस्स मम्गस्स, अंसं पाउकरा लिणे ॥ भी होंगे वे दुर्लभ सम्यग्दर्शनादि रत्नत्रय रूप सोक्षमार्ग के अन्त -सूय, सु. १, ब. १५, गा. २१-२५ को पाकर तथा दूसरों के सामने उस मार्ग को प्रकाशित करके संसार से पार हुए हैं। धम्मस्स परक्कमट्टा एलग दिटुन्तो धर्म में पराक्रम के लिए एलक का दृष्टांत५१४, जहाएसं समुद्दिस्स, कोई पोसेज्ज एलयं । ८१४. जैसे मेहमान के उद्देश्य से कोई बकरे का पोषण करता ओयणं जवस देउजा, पोसेज्ज वि सयंगणे ।। है। उसे चावल, मूंग, उड़द आदि खिलाता है और अपने घर के आंगन में ही उसका पालन करता है। समो से पुढे परिवूढे, जायमेए महोदरे । इस प्रकार वह पुष्ट, बलवान, मोटा, बड़े पेट वाला, तृप्त पोणिए विउले देहे, आएसं परिकंखए ।। और विपुल देह वाला होकर पाहुने की आकांक्षा करता है। जाव न एह आएसे, ताब जीवइ से दुही । जब तक पाहूना नहीं आता है तब तक ही वह बेचारा जीता अह पत्तमि .माएसे, सीसं छत्तूण भुज्जई ।। है। पाहुने के आने पर वह मस्तक छेदन करके खाया जाता है। जहा से खलु उरभे, आएसाए समीहिए । जैसे पाने के लिए निश्चित किया हुआ वह बकरा यथार्थ एवं बाले अहम्मिट्ट, ईहई नरयाउयं ।। में उसकी आकांक्षा करता है, वैसे ही अधर्मिष्ठ अज्ञानी जीव वास्तव में नरक के आयुष्य की इच्छा करता है। हिंसे बाले मुसाबाई, श्रद्धाणमि विलोवए। हिराक, अज्ञानी, मृषावादी, मार्ग में लूटने वाला, दूसरों अलबत्तहरे तेणे, माई कण्टहरे सके ।। की वस्तु को हरण करने वाला चोर, मायावी, किसका धन हरण करू-ऐसे विचार करने वाला धर्तहत्यीविसगिद्ध य, महाररामपरिगहे । स्त्री और विषयों में युद्ध महाआरम्भ और महापरिग्रह मुंजमार्ग सुरं मंसं, परिवूढे परंदमे ॥ वाला, सुरा और मांस का उपभोग करने वाला, बलवान, दूसरों का दमन करने वाला। अयकक्करमोई य, तुंदिल्ले चियलोहिए। बकर की भांति कर्कर शब्द करते हुए मांस को खाने वाला, आउयं मरए कसे, जहाएसं व एलए।। बड़े पेट वाला और उपचित लोही वाला व्यक्ति उसी प्रकार नरक के आयुष्य की आकांक्षा करता है जिस प्रकार मेमना पाहुने की। आसणं सयणं जाणं, वित्त कामे य भुजिया । ___ आसन, शयन, यान, धन और विषयों को भोगकर दुःख से दुस्साह धर्ण हिच्चा, बहं संचिणिया रयं ॥ एकत्रित किये हुए धन का परित्याग कर बहुत कर्मों को संचित करता है।
SR No.090120
Book TitleCharananuyoga Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year
Total Pages571
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Conduct, Agam, Canon, H000, H010, & agam_related_other_literature
File Size18 MB
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