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________________ ३६४] घरगानुयोग-२ प्रमाव परित्याग का उपदेश सूत्र ७८८७९१ एतं कुसलस्स बसणं तद्दिष्ट्ठीए. तम्मुत्तीए, तप्पुरकारे, तस्सग्णी, मुनि उसी में अपनी दृष्टि नियोजित करे, उसी में तन्मय तष्णिवेसणं । हो, उसे ही प्रमुख बनाए, उसी के स्मरण में संलग्न रहे, उसी में दसचित्त होकर उसका अनुसरण करे। अभिभूय अवक्खू अनभिमूते पभू मिरालंबताए । ___जिसने परीषह-उपसर्गों पर विजय प्राप्त कर तस्वों का - आ. सु. १, अ. ५, 3. ६, सु. १७२ साक्षात्कार किया है वह परीषहों से अभिभूत नहीं होता और वहीं निरालम्बी होकर संयम पालन में समर्थ होता है। पमाय परिश्चाग उदएसो प्रमाद परित्याग का उपदेश७८६. समपं तत्थुवेलाए. अप्पाणं विष्पसाबए । ७८६. साधना काल में मुनि समत्व का विचार करके आत्मा को अणण्णपरमं गागी, गो एमाए कयाइ वि ।। गदा प्रसन्न रखे, ज्ञानी मुनि संयम में कदापि प्रमाद न करे । आयगुसे सदा बीरे, मायामायाए जावए। सदा आत्मगुप्त और पराक्रमी साधक परिमित भोजन से विराग स्वेहिं गच्छेज्जा, महता खुमाएहि वा ।। संयम यात्रा चलावे, अल्प या अधिक रूप आदि विषयों से पूर्ण -आ. सु. १, अ ३, उ. ३, सु. १२३ विरक्त रहे। तिविहा धम्म जापरणा तीन प्रकार की धर्म जागरणाvt. 'मन्ते ! ति' भगवं गोयमे समणं भगवं महावीर बंदति ७०. 'हे भगवन !' इस प्रकार सम्बोधित करते हुए भगवान नमंसति, वंदित्ता नमंसित्ता एवं वयासी गौतम स्वामी ने श्रमण भगवान महावीर स्वामी को बन्दन मम स्कार किया और बंदना नमस्कार करके इस प्रकार पूछा-- प.-कविधा से ! जागरिया पन्नता? प्र--भगवन ! जागरिका कितने प्रकार की कही गई है ? उ.-गोयमा तिविहा जागरिया एमसा, तं जहा उ.--गौतम ! जागरिका तीन प्रकार की कही गई है। यथा१. युद्धजागरिया, २. अबुद्धनागरिया, (१) बुद्धजागरिका, (२) अबुद्धजागरिका, ३. सुरक्खजागरिया। (३) सुदर्शनजामरिका । प० से केजवणं भन्ते ! एवं पञ्चति "तिविहा जागरिया प्रा-भगवन ! किस हेतु से कहा जाता है कि जागरिका पन्नत्ता',तं जहा तीन प्रकार की है, जैसे-- १. गुरागागरिया, २ अबुद्धबागरिया, (१) बुद्ध-नागरिका, (२) अबुद्ध-जागरिका ३. सुरक्खजागरिया? (३) सुदर्शन-जागरिका? उ.-गोयमा ! जे हमे अरहता भगवंतो उप्पशनाण-दसण- उ० हे गौतम ! जो उत्पन्न हुए केवलज्ञान-कैवलदर्शन के घरा जहा खंवए-जाव-सत्वाण सम्वदरिसी एएण धारक अरिहन्त भगवान हैं-वायत्--स्कन्दक प्रकरण के अनुबुवा बुद्धजागरिव जागरंति । __सार जो सर्वज्ञ, सर्वदर्शी हैं, वे बुद्ध हैं. वे बुद्ध जागरिका करते हैं। जे इमे अणगारा भगवंतो इरियासमिया-जाव-गुत्तबंभयारी, जो ये अनगार भगवन्त ईसि मिति युक्त-यावत्-गुप्त एए णं अजुद्धा अबुसजागरियं जागरंति । ब्रह्मचारी हैं, वे अबुद्ध छद्मस्थ हैं। वे अबुद्धजागरिका करते है। जे इमे समणोवासमा अभिगय जीवाजीवा जाव-विहरंति एते जो ये श्रमणोपासक जीव अजीव आदि तत्वों के ज्ञाता हैं गं सुरक्खुनागरियं जागरंति । - यावत्-पोषधादि करते हैं वे सुदर्शन जागरिका करते हैं। से तेण?णं गोयमा! एवं उच्चति तिमिहा जागरिया-जाव- इसी कारण से हे गौतम ! तीन प्रकार की जागरिका सुदवखुबागरिया। —यावत्-सुदर्शन जागरिका कही गई है। -वि. स. १२, न, १, सु २५ एगत्त अण्णत भावणा एकत्व अभ्यत्व भावना-- ७६१. जस्स पं भिवानस्स एवं भवति-"एगो अहमसि, ण मे ७९१ जिस भिक्ष के मन में ऐसा अध्यवसाय हो जाय कि 'मैं अरिय कोई, ण याहमवि कस्सह एवं से एनागिणमेव अप्पाणं अकेला हु मेरा कोई नहीं है और न मैं किसी का हूँ" वह अपनी
SR No.090120
Book TitleCharananuyoga Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year
Total Pages571
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Conduct, Agam, Canon, H000, H010, & agam_related_other_literature
File Size18 MB
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