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________________ सूत्र ७१८-७१६ व्युत्सर्ग का स्वरूप तपाचार [३५५ कायोत्सर्ग--५ विउसग्गसरूवं - पुत्सर्ग का स्वरूप--- ७१८. सयणासमठाणे वा, जे उ भिक्खू न वावरे । ७१८, सोने, बैटने या खड़े रहने के समय जो भिक्षु शरीर की कायस्स विउस्सम्गो, छटो सो परिकित्तिओ।। बाह्य प्रवृत्ति नहीं करता है। उसके काया की चेष्टा का जो -उत्त. अ. ३०, गा. ३६ परित्याग होता है, उसे व्युत्सर्ग कहा जाता है। वह आभ्यन्तर तप का छठा प्रकार है। विउसग्गस्स भयप्पमेया व्युत्सर्ग के भेद प्रभेद७१६.प.-से कि तं विओसगे ? ७१६. प्र.-युत्सर्ग क्या है, उसके कितने भेद हैं ? उ०—विओसग्गे दुबिहे पाणी, तं जहा उ०-- व्युत्सर्ग के दो भेद बतलाये गये हैं, यथा१. दध्वविओसी, २. भावविओसग्गे य। (१) द्रव्य-व्युत्सर्ग, (२) भाव-च्युत्सगं, प.-से किं तं दध्वविओसगे? प्र-द्रव्य व्युत्सर्ग क्या है, उसके कितने भेद हैं ? उ०-वग्यविओसग्गे चनधिहे पणते, त जहा उ०—द्रव्य व्युत्सर्ग के चार भेद कहे गये हैं, वे इस प्रकार हैं१. गणविमओसग्गे, (१) गण च्युत्सर्ग-गण एवं गण के ममत्व का त्याग । २. सरीरविभोसग, (२.हर स्युलम --पह ताप दैहिक सम्बन्धौं की ममता या आसक्ति का त्याग । ३. उवहिविओसग्गे, (३) उपधि-व्युत्सर्ग-उपधि का त्याग करना एवं साधन सामग्रीगत ममता का, साधन सामग्री को मोहक तथा आकर्षक बनाने हेतु प्रयुक्त होने वाले साधनों का त्याग । ४. मत्तपाणविमोसम्यो। (४) भक्त-पानव्युत्सर्ग- आहार पानी का तथा तद्गत से तं दस्वविओसगे। भासक्ति या लोलुपता आदि का त्याग । यह द्रव्य व्युत्सर्ग का विवेचन है। प०.-से कि त मावविओसगे। प्र.-भाव न्युत्सर्ग क्या है--उसके कितने भेद हैं ? उ.-भावविभोसग्गे तिविहे पणते, तं जहा उ.-भाव व्युत्सर्ग के तीन भेद है, यथा१. कप्तायविओसम्गे, (१) कषाय-व्युत्सर्ग, २. संसारवियोसग्गे, (२) संसार-व्युत्सर्ग, ३. कम्मविमोसग्गे । (३) कर्म-युत्सर्ग। प.-से कि तं कसायिओसगे ? प्र.-कषाय-व्युत्सर्ग कया है उसके कितने भेद हैं ? उ..-फसाविओसो चलम्विहे पण्णसे, सं जहा उ.--कषाय-व्युत्सर्ग के चार भेद कहे गये है, वे इस प्रकार हैं१. कोहविमोसग्गे, (१) क्रोध-व्यत्सर्ग-क्रोध का त्याग । २. माणविओसगो, (२) मान-व्युत्सर्ग-अहंकार का त्याग । ३. मायाबिओसम्गे, (३) माया-म्युत्सर्ग-छल कपट का त्याग । ४. लोहरिओसगे। (४) लोभ-व्युत्सर्ग---लालच का त्याग । यह कषाय व्युत्सर्ग से तं कसाय विओसगे। का विवेचन है। ५०-से कि तं संसार विओसरगे? प्र-संसार व्युत्सर्ग क्या है वह किसने प्रकार का है ? जल-संसारविमोसम चम्बिहे पण, तं जहा 3-संसार व्युत्सर्ग (चार गति के बन्ध के कारणों का त्याग) चार प्रकार का बतलाया गया है। वह इस प्रकार है
SR No.090120
Book TitleCharananuyoga Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year
Total Pages571
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Conduct, Agam, Canon, H000, H010, & agam_related_other_literature
File Size18 MB
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