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________________ ३५४] परणामुयोग-२ शुक्लष्पान के लक्षण सूत्र ६१४-७१७ २. एगत्तबियक्के अधियारी, (२) एकत्व-वितर्क-अविचारी-किसी एक पदार्थ के गुण या पर्याय का स्थिर चित्त से चिन्तन करना। ३. सुहमकिरिए अनियट्टी, (३) सूक्ष्म क्रिया अनिवर्ती-योग निरोध में प्रवृत्त आत्मा की परिणाम अवस्था। ४. समोछिन्नकिरिए अप्पडिबाई।। (४) समुग्छिन्न क्रिया अप्रतिपाती-सम्पूर्ण योग निरोध वि. स. २५, उ, ७, सु. २४६ हो जाने पर प्राप्त पौदहवें गुणस्थान की आत्म-परिणाम अवस्था । सुक्कक्षाण लक्खणा शुक्लध्यान के लक्षण७१५. सुक्कस्स पं शरणस्स चत्तारि लक्खणा पन्नत्ता, तं जहा- ७१५. शुक्लध्यान के चार लक्षण कहे गये है, यथा१. खंती, (१) क्षमा, २. मुत्ती, (२) निर्लोभता, ३. अजये, (३) सरलता, ४. मद्दथे । -बि. स. २५, उ.७, सु. २४७ (४) मृदुता । सुक्कझाणस्स आलंबणा शुक्लध्यान के अवलम्बन - ७१६. सुस्करसणं माणस्त चत्तारि आलंधणा पन्नत्ता, तं जहा- ७१६. शुक्लध्यान के चार अवलम्बन कहे गये हैं । यथ१. अध्वहे. (१) अन्यथ-व्यथित नहीं होना । २. असम्मोहे, (२) असम्मोह-देवादि कृत माया में मोहित नहीं होना । ३. विबगे, (३) विवेक-आत्मा और देह के भिन्नता की अनुभूति होना। ४. विभोसम्मे। -वि. स. २५, उ.७, सु. २४० (४) मुलग-शरीर और उपधि में अनासक्त भाव होना। सुक्कझाणस्स अणुप्पेहाओ शुक्लध्यान की अनुप्रेक्षायें-- ७१७. सुक्कस्स गं माणस्स चत्तारि अणप्येहामओ पन्नत्ताओ, सं जहा- ७१७. शुक्लध्यान की चार अनुप्रेक्षाएँ कही गई हैं। यथा१. अणतदत्तियाणुप्पेहा, (१) अनन्तवतितानुप्रेक्षा-अनन्त भव परम्परा का चिन्तन करता । २. विप्परिणामागुप्पेहा, (२) विपरिणामानुप्रेक्षा--वस्तुओं के विपरिणमन पर नितन करना । ३. असुमाणुप्पेहा, (३) अशुभानुप्रेक्षा-संसार के अशुभ स्वरूप पर चिन्तन ४. अवायागुप्पेहा । (४) अपायानुप्रेक्षा--जीव जिन कारणों से दुःखी होता है उन विविध अपायों का चिन्तन करना। यह ध्यान का स्वरूप है। से तंमाणे ।' ---वि. स. २५, उ. ७, सु. २४१ १ उव. सु. ३० में शुक्लध्यान के प्रकारों में ३-४ प्रकार में स्थानान्तर "अनियट्टी" की जगह "अप्पडिवाई" और अप्पष्टिवाई की जगह "अनियट्टी" है। २ उव. सु. ३० में शुक्लध्यान के लक्षणों को आलम्बन और मालम्बन को लक्षण कहा गया है। ३ (क) ठाणे, म. ४, उ, १, सु. २४७ (ख) उव. सु. ३०
SR No.090120
Book TitleCharananuyoga Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year
Total Pages571
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Conduct, Agam, Canon, H000, H010, & agam_related_other_literature
File Size18 MB
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