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वरगानुयोग-२
प्रतिप्रश्न का फल
सूत्र ६६३-६६७
त सेवमागे बायबइ चाउम्मासियं परिहारट्टापं उपायं। उसे चातुर्मासिक सदघातिक परिहारस्थान (प्रायश्चित्त)
--नि. स. १६, सु. ३१-४० आता है। पडिपुच्छणा फलं--
प्रतिप्रश्न का फल६६४.५०-पडिपुस्छणयाए गं मंते ! जीवे कि जणया? ६६४. प्र. - भन्ते ! प्रतिप्रश्न करने से जीव क्या प्राप्त करता है? ३० - परिपुच्छणयाए गं सुत्तरथ-तनुभयाई विसोहेह । कंसा- ज० - प्रतिप्रश्न करने से वह मूत्र, अर्थ और उन दोनों से मोहणिज्ज कम्मं वोरिछबह ।
सम्बन्धित सन्देहों को दूर करता है और कांक्षा-मोहनीय कर्म का
-उत्त.अ. २६, सु. २२ विनाश करता है। परियट्टणा फलं
पुनरावृत्ति का फल६६५. प०-परियट्टणाए णं अते ! जीये कि जण्या ?
६६५.प्र.--भन्ते ! परावर्तना (पठित पाठ के पुनरावर्तन) से
जीव क्या प्राप्त करता है? उ.-परियट्टण्णाए गं बंजगाई जगयइ, वंजणदि ध उप्पा- उ.-परावर्तना से वह अक्षरों को उत्पन्न करता है अर्थात्
-- -उत्त. अ. २९, सु. २३ स्मृत को परिपक्व और वि-मृत को याद करता है तथा व्यंजन
लब्धि (पदानुसारिणि लब्धि) को प्राप्त करता है। अणुप्पेहा फलं
अनुप्रेक्षा का फल६६६. ५०-अगुप्पेहाए गं मंते ! जीवे कि जणया? ६६६. प्र०-भन्ते ! अनुप्रेक्षा (अर्थ चिन्तन) से जीव क्या प्राप्त
करता है? उल-अणुप्पहाए गं आउपवनाओ सत्तकम्मपगरीओ उ०-अनुप्रेक्षा से वह आयुष-कर्म को छोड़कर शेष सात पणियबन्धणबद्धामो सिविलवग्धगयामो पकरे। कर्मों की गाढ़-बन्धन से बन्धी हुई प्रकृतियों को शिथिल-बन्धन
बाली कर देता है। दोहकालदिश्याओ हस्सकालट्टियाओ एकरे।
उनकी दीर्घकालीन स्थिति को अल्प कालीन कर देता है, तिम्वाणभावाओ मन्वाणुमावाओ पकरेइ ।
उनके तीय अनुभाग को मन्द कर देता है। बहुपएसग्गाओ अप्पपएसम्गाओ पकरेह ।
उनके बहु-प्रदेशों को अल्प कर देता है । आउयं च ण कम्मं सिय अन्धइ सिप नो बन्धइ । आयुष्कर्म का बन्धन कदाचित करता है, कदाचित् नहीं
भी करता है। मसायावेयगिर्जच गं कर्म नो मुग्लो मुज्जो जब- असाता-वेदनीय कर्म का बार-बार उपचय नहीं करता है।
अनादि-अनन्त लम्बे-भार्ग वाली तथा चतुर्गति-रूप संसार अटवी को तुरन्त ही पार कर जाता है।
अणाइयं अपवन दीहम चाउरन्त संसार कम्तारं चिप्पामेव वीइवया।
-उत्त, अ. २६, सु. २४ कहाए भेया६६७. तिविहा कहा पसा, तं जहा---
१. अस्थकहा, २. धम्मकहा,
कथा के भेद६६७. कथा तीन प्रकार की कही गई है। यथा
(१) अर्थ कथा --धन के उत्पादन उपार्जन विषयक कथा।
(२) धर्म कथा—जिसके कहने सुनने से धर्म की भावना बड़े वह कथा 1
(३) काम कथा-जिसके श्रवण करने से विषय वासना उत्पन्न हो वैसी कथा।
धर्म तीन प्रकार का होता है(१) श्रुत-धर्म, (२) चरित्र-धर्म, (३) अस्तिकाय-धर्म।
३. कामकहा।
-ठाणं. अ. ३, उ. ३, सु. १६४
सिबिहे धम्मे पण्णसे, तं नहा१. सुयधम्ने,
२. परिसधम्मे, ३. भत्थिकायधम्मे। -ठाणं. ब.३,७.३, मु. १६४(९)