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________________ सत्र ६६२-६६४ पाश्वस्थावि को याचना धेने का प्रायश्चित्त सूत्र सपाचार [३४५ जे भिक्खू अव्वत्तं वाएइ वाएंतं वा साइजइ । जो भिक्ष अन्यक्त (अप्राप्त यौवन वय वाले) को वाचना देता है, दिलवाता है या देने वाले का अनुमोदन करता है। जे भिक्खू वत्तं न बाएइ न वाएनं या साइजह ।। जो भिक्ष व्यक्त (प्राप्त यौवन वम वाले) को बाचना नहीं देता है, नहीं दिलवाता है, या नहीं देने वाले का अनुमोदन करता है। जे भिषखू वो सरिसगाण एक्क संचिक्खाबेद, एक्कन जो भिक्ष दो समान योग्यता वाले शिष्यों में से एक को संचिवसावेड, एषक वाएड, एक्क न पाएइ, त करत वा शिक्षित करता है और एक को नहीं करता है, एक को याचना साहज्जद देता है एक को नहीं देता है अथवा ऐसा करने वाले का अनुमोदन करता है। जे भिक्खू आरिय-उवमाएहिं अविविष्णं गिरं आइयइ जो भिक्ष आचार्य और उपाध्याय के दिये बिना वाचना आइयंतं वा साइजह। लेता है. लिवाता है या लेने वाले का अनुमोदन करता है। जे भिक्खू अण्णउत्यियं वा गारत्थियं वा बाएह बाएंत वा जो भिक्ष अन्यतीथिकों या गृहस्थों को वानना देता है, साइज्जद। दिलवाता है या देने वाले का अनुमोदन करता है। जे भिक्खू अण्णउत्थिपं का गारस्थियं वा परिका पडिच्छतं जी भिक्ष अन्यतीयिक से या गृहस्थ से वाचना लेता है, या साइजइ। लिवाता है या लेने वाले का अनुमोदन करता है। त सेवमाणे आवाज चाउम्भासियं परिहारट्टाणं उग्घाइयं । उसे चातुर्मासिक उद्घातिक परिहारस्थान (प्रायश्चित्त) - नि.उ.१६, सु.१७,३० आता है। पासस्थाईणं वायणा दाणे पायच्छित्त सुत्ता मारवानिशीलापनाने के प्रायश्चित्त सुत्र६६३. जे भिक्खु पासस्थं वाएइ वाएतं वा साहज्जइ । ६६३. जो भिक्ष, पावस्थ को वाचना देता है, दिलवाता है या देने वाले का अनुमोदन करता है। जे भिषय पासत्वं पहिच्छ परिनछतं वा साइज्जह । जो भिक्ष पार्श्वस्थ से वाचना लेता है, लिवाता है या लेने वाले का अनुमोदन करता है। जे भिक्स्व ओमण्णं वाएइ वाएतं वा साहज्जद । जो भिक्ष अबसप को बाचना देता है, दिलवाता है या देने बाले का अनुमोदन करता है। जे भिषस्थ भोसणं पहिच्छह पडिच्छंतं वा साइजह । ___ जो भिक्ष अवसन से वाचना लेता है, लिवाता है या लेने वाले का अनुमोदन करता है । के भिक्ट्र कुसीसं बाएइ वाएतं वा साइज्जह । जो भिक्ष कुशील को याचना देता है, दिलवाता है या देने वाले का अनुमोदन करता है। जे भिक्खू कुसोल पडिन्छ। परिच्छत वा साइज्जद । जो भिक्ष कुशील से वाचना लेता है, लिवाता है या लेने वाले का अनुमोदन करता है। जे भिक्खू संसत्तं वाएछ बाएतं वा साइज्जइ । जो भिक्षु संसक्त को वाषना देता है, दिलनाता है या देने वाले का अनुमोदन करता है। जे मिक्खू संसतं पहिन्छइ पउिच्छतं वा साइज्जद । __ जो भिक्ष संसक्त से बाचना लेता है लिवाता है या लेने वाले' का अनुमोदन करता है। जे भिक्खू णितिय पाएइ वायंत या साइज्जह । __जो भिक्ष नित्यक को वाचना देता है, दिलवाता है या देने वाले का अनुमोदन करता है। ओ भिक्खू णितिय पहिच्छाई परिच्छतं वा साइजह। जो भिक्ष नित्यक से वाचना लेता है, लिवाता है या लेने वाले का अनुमोदन करता है। १ भाष्य में २१.२२ एवं २५.२६ सु. १६-२० के समान हैं, पुनरावृत्ति हुई है।
SR No.090120
Book TitleCharananuyoga Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year
Total Pages571
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Conduct, Agam, Canon, H000, H010, & agam_related_other_literature
File Size18 MB
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