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परणामुयोग-२
सूत्र वाचना के अयोग्य
सूत्र ६८६-६६२
सुथ अवायणिज्जा-.
सूत्र वाचना के अयोग्य६८६. चत्तारि भवाणिज्जा पण्णता, तं जहा
६८६. चार वाचना देने के योग्य नहीं होते हैं, यथा-- १. अविणीए,
(१) अविनीत-सुत्रार्थदाता के प्रति वन्दनादि विनय भाव
न करने वाला। २. विगह-पडियद्ध,
(२) विकृति प्रतिबद्ध-धुतादि विकृतियों में आसक्त रहते
वाला । ३. भविओसदिय पाहुरे
(३) अव्यवशभित प्राभृत- अनुपशान्त कलह वाला। ४. मायो।
-ठाणं. अ, ४, उ. ३, सु. ३२६ (४) मायावी। सुयवायणाए फलं
सूत्र बाचना का फल६१०. ५०-थायणाए पं भन्ते ! नीचे कि जणयह ?
६६० प्र०—भन्ते ! वाचना (अध्यापन) से जीव क्या प्राप्त
करता है? उ०-थायणाए निज्जरं जणयह । सुयस्स य अणासायणाए -वाचना से यह कर्मों को क्षीण करता है। श्रुत की
बट्टइ। सुयस्स अणासायणाए वट्टमाणे तित्थधम्म आशातना के दोष से बच जाता है । श्रत की आशातना से बचने अवलम्बइ । तिस्थधम्म अवलम्बमाणे महानिजरे वाला तीर्थ-धर्म का अवलम्बन करता है, तीर्थ धर्म का अवलम्बन महापजवसाणे भवइ। -उत्त. अ, २६, सु, २१ करने वाला जीव कर्मों की महा निर्जरा और संसार का अन्त
फरने वाला होता है। दुगंछिय कुले-वायणादाणादाण पायच्छित्त सुत्ताई- घृणिस कुल में वाचना देने-लेने के प्रायश्चित्त सूत्र६६१. जे भिक्खू दुर्गछिय कुलेसु सम्झायं बाएइ, वाएतं वा ६६१. जो मिक्ष घृणित कुलों में स्वाध्याय की बाचना (सूत्रार्थ) साइजइ।
देता है, दिलवाता है या देने वाले का अनुमोदन करता है। जे भिक्खू तुगंछिय कुलेसु समायं पडिल्छाइ, पटिसछंत या जो भिक्ष घृणित कुलों में स्वाध्याय की वाचना लेता है, साइज्जह।
लियाता है या लेने वाले का अनुमोदन करता है। तं सेवमाणे आवज्जइ चाउम्मासिय परिहारट्टाफ उग्घाइयं । उसे चातुर्मासिक उघातिक परिहारस्थान प्रायश्चित्त)
-नि. उ. १६. सु. ३१.३२ आता है। अविहीए वायणा-दाणे पायच्छित्त-सुत्ताई
अविधि से वाचना देने के प्रायश्चित्त सूत्र--- ६६२. जे मिक्खू हेदिल्लाई समोसरणाहं अवाएसा उरिल्लाई ६९२. जो मिक्ष प्रारम्भ के समोसरण (अंग सूत्र, श्रुतस्कन्ध, समोसरणाई बाएइ वार्यतं वा साइम्जा ।
अध्ययन, उद्देशक) की वाचना न देकर बाद के समोसरण (अध्ययन उद्देशों) की वाचना देता है, दिलवाता हैं या देने वाले
का अनुमोदन करता है। जे मिक्खू णवयंभचेराई अवाएसा उत्तम सुयं याएद वायत जो भिस, नव ब्रह्मचर्य (आचारांग सूत्र प्रथम श्रुतस्वन्ध) वा साइजा
की बाचना न देकर छेद सूत्र आदि की वाचना देता है, दिलवाता
है या देने वाले का अनुमोदन करता है। जे भिक्खू अपतं वाएर वाएंतं वा साइजह ।
जो भिक्ष अपात्र (अयोग्य) को वाचना देता है, दिलवाता
है या देने वाले का अनुमोदन करता है। जे मिक्ल पत्तं पाएइ गं पाएतं वा साइजइ ।
जो भिक्ष पात्र (योग्य) को याचना नहीं देता है, नहीं दिल
वाता है या नहीं देने वाले का अनुमोदन करता है। १ (क) तओ नो कप्पति वाएत्ता, तं जहा(१) विणीए, (२) विगए पडिबढे, (३) अविसत्रिय पाहुडे ।
-कण उ. ४, सु. १० (ख) ठाणं. अ. ३, उ. ४. सु. २०४
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