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परणानयोग
पारचित ग्लान भिजु को लघु प्रायश्चित्त देने का विधान
पारंचिय गिलाणस्स लहुपायच्छित्त-दाण-विहाणं - पारंचित ग्लान भिक्षु को लघु प्रायश्चित्त देने का विधान - ६६३. पारंचिय भिक्खं गिलायमाणं नो कप्पड तस्स गणावच्छेद- ६६३. पारंचित भिक्षु (दशवे प्रायश्चित्त तप को बह्न करने
यस्स निहितए। अगिरनाए तस्स करणिज्ज वेयावडिय, वाला माधु) यदि रोगादि से पीड़ित हो जाय (उस पारश्चित्त -जाव तओ रोगायंकाओ विप्पमुक्को, तो पच्छा तस्स अहा- को बहन न कर सके) तो गणावच्छेदक को उसे गण से बाहर लहसए नाम ववहारे पट्टवियध्वे सिया।
करना नहीं कल्पता है। किन्तु जब तक बह रोग आतंक से मुक्त -ब. उ. २, सु. ८ न हो जाय तब तक उसकी अग्लान भाव से वैवावृत्व कगनी
चाहिए । बाद में (गणावच्छेदक) उस पारंचित भिक्षु को अत्यल्प
प्रायश्चित्त दें। लहपायपिछत्त जोग्गा -
लघु प्रायश्चित के योग्य६६४. खितचित्तं भिक्खं गिलायमागं नो कप्पई तस्स गणावच्छेद- ६६४. विक्षिप्त चित्त ग्लान भिक्षु को गण से बाहर निकालना
यस निम्नहितए अगिलाए तस्स करणिज्जं बेयावडियं, उसके गणावच्छेदक को नहीं वल्पता है। जब तक वह उस रोग -जाव-तओ रोगायंकाको विप्पमुषको तओ पच्छा तस्स अहा- आतंक से मुक्त न हो तब तक उसकी अग्लान भाव से सेवा करानी लहसए नाम ववहारे पवियध्ये सिया।
चाहिए। उसके बाद उसे (गणावच्छेदक) अत्यल्प प्रायश्चित्त में
प्रस्थापित करे। वित्तचित्तं भिक्षु गिलायमाणं नो कप्पड तस्स गमावच्छेद- दिप्त चित्त ग्लान भिक्षु को गण से बाहर निकालना उसके यस्स निहित्सए अगिलाए तस्स करणिज्ज व्यावडियं, गणावच्छेदक को नहीं कल्पता है। जब तक बह उस रोग आतंक -जाव-सओ रोगायंकाओ विप्पमुक्को तओ पछा तस्स अहा- से मुक्त न हो तब तक उसको अग्लान भाव से सेवा करानी सहसए नाम पवहारे पठ्ठषियम्वे सिया।
चाहिए। उसके बाद उसे (गणावच्छेदक) अत्यल्प प्रायश्चित्त में
प्रस्थापित करे। जक्खाइट्ठ भिक्खु गिलायमाणं नो कप्पा तस्स गणावच्छेद- यक्षाविष्ट ग्लान भिक्षु को गण से बाहर निकालना उसके पस्स निहित्तए । अगिलाए तस्स करणिरुजं वेयावडियं, गणावच्छेदक को नहीं कल्पता है। जब तक वह उस रोग आतंक -जाव-तओ रोगायंकाओ विप्पमुक्को तओ पछा तस्स अहा- से मुक्त न हो तब तक उसकी अम्लान भाव से सेवा करानी लहुसए नाम ववहारे पछवियम्वे सिया।
चाहिए। उसके बाद उसे (गणावच्छेदक) अत्यल्प प्रायश्चित्त में
प्रस्थापित करे। उम्माय-पत्तं भिषघु गिलायमाणं नो कापद तस्स गगावच्छ- उन्माद प्राप्त ग्लान भिक्षु को गण से बाहर निकालना उसके इयस्स निग्जहित्तए । अगिलाए तस्स करणिम्जं बेयावडियं, मणावच्छेदक को नहीं कल्पता है। जब तक वह उस रोग आलंक -जाव-सओ रोगायंकाओ विष्पमुम्को तओ पच्छा तस्स अहा- से मुक्त न हो तब तक उसकी अम्लान भाव से सेवा करानी लहसए नाम बबहारे पट्टविषयवे सिया ।
चाहिए। उसके बाद उसे (गणावच्छेदक) अत्यल्प प्रायश्चित्त में
प्रस्थापित करे। उक्सग पत्तं मिक्स गिलायमाणं नो कम्पद तस्स गण बच्छे- गरार्ग प्राप्त ग्लान भिक्षु को गण से बाहर निकालना इयरस निज्जूहित्तए । अगिलाए तस्स करणिज्जं वेयावडियं, उसके गणावोदक को नहीं कहलाता है। जब तक वह उस रोग -जाव-सओ रोगायकाओ विष्पमुक्को तओ पच्छा तस्स अहा- आतंक से मुक्त न हो तब तक उसकी अग्लान भाव से सेवा लहसए नाम ववहारे पट्ठविपल्वे सिया।
करानी चाहिए। उसके बाद उसे (गणावच्छेदक) अत्यल्प पाय
पिचत में प्रस्थापित करे। साहिगरणं भिषा गिलायमाणं नो कप्पड़ तस्स गणावच्छेइ- कलह युक्त ग्लान भिक्षु को रण से बाहर निकालना उसके यस्स निहितए अगिलाए तस्स करणिज्जं वेयावडिय, गणावच्छेदक को नहीं कल्पता है। जब तक वह उस रोग आतंक -जाब-तओ रोगायंकाओ दिप्पमुक्को तओ पच्छा तस्स अहा- से मुक्त न हो तब तक उसकी अग्लान भाव से सेवा कराती लहसए नाम ववहारे पट्टवियत्वे सिया।
चाहिए। उसके बाद उसे (गणाबदक) अत्यल्प प्रायश्चित्त में प्रस्थापित करे।