________________
३२६]
चरणानुयोग- २
कथा कपट रहित आलोचक को प्रायश्चित्त देने की विधि
जे भिलू बहुसो वि पंचमासियं परिहारट्ठाणं पडिसेवित्ता आलोएज्जा. अपलिउंचिय आलोएमाणस्स पंचमासियं पनि एमाणस्स उम्बासिय
तेथ परं पनिया एका रा
जे भिक्खु मासि वा जाव यंत्रमासिगं वा एएस परिहारद्वाणं अध्ययरं परिहाराणं परिसेविता आलोएना
अपलिचि आलो एमाणस्स मासियं वा जाव पंथमासि वा पलिउंचिय आलोएमाणस्स दो मासियं वा जाव - छम्मा सिमं वा ।
ते परं पलिचिय वा अपलिउंचिए वा ते जेब छम्मासा ।
मासि यायाम-बहुवि पंचम
वा, एएस परिहारद्वाणानं अण्णयरं परिहारट्ठाणं परिसेविता आलोया
अपनिचिय आलोएमा माति वा जाव पतिचि आलोमास से मालियामा सियं था ।
तेग परं पनिचिएका अलिचिए वा ते देव मासा |
जे भिक्खू चाजम्मा सियं वर, साइरेग चाउम्मासि वा मासिक सारे पंचमालिया एस परिहारट्ठा पाणं अण्णपरं परिहारद्वाणं परिसेविता आलोएग्जाअपचय मानोएमा चारयामियं वा साइ था
पंचमाया
परिचय आएमाणात पंचमात या सारे पंचभासियं वर, छम्मासि या,
सेण परं पलिउंचिए वा अपलिजेचिए या ते चैव धम्मासा |
जेवावा चाम्मासयं वा बहुसो षि पंचभरसियं या साइरेग- पंचमासि वर एएस परिहारद्वाणानं परिहाराणं परिसेविसा अलोएडा-
व इ बहुसो वि अण्णयरं
जो भिक्षु अनेक दार पंचमासिक परिहारस्थान की प्रति सेवना करके आलोचना करे तो उसे माया रहित मालोचना करने पता और मायाति आलोचना करने पर प्रमादा है।
इसके उपरान्त माया सहित या माया -रहित आलोचना करने पर भी वही षाण्मासिक प्रायश्चित्त आता है ।
जो भिक्षु मासिक - यावत् — पंचमासिक - इन परिहारस्थानों में से किसी परिस्थान की एक बार प्रतिसेवना करके आलोचना करे तो उसे
-
सूत्र ६५५
माया-रहित मालोचना करने पर आवेदित परिहारस्थान के अनुसार मासिक- यावत्-पंचमासिक प्रायश्चित्त आता है और यह आलोचना करने पर परिहारस्थान के अनुसार ईनामिकात्यकिप्रायश्चित भाता है। इसके उपरान्त माया-या मायाति आसीना करते पर नहीं पाया प्रायश्चित माता है।
जी भिक्षु मानिकाय पंचमासिक इन परिहारान में से किसी एक परिहारस्थान की अनेक बार प्रतिसेवना करके आलोचना करे तो उसे
-
माया-रहित आलोचना करने पर वासेवित परिहारस्थान के अनुसार मासिकायाति प्रारस्थित आता है और माया सहित आलोचना करने पर आसेवित परिहारस्थान के अनुसार दूँ मासिक - यावत् षाण्मासिक प्रायश्चित्त आता है ।
इसके उपरान्त माया-महिमा माया-रहित आलोचना करते पर वही पाण्मासिक प्रायश्वित जाता है।
मालिक या कुछ नासिक इन परिहारथानों में से जो मासिक या कुछ अधिक नातुर्मासिक, पंचकिसी एक परिहारस्थान की एक बार प्रतिसेवना करके आलोचना करे तो उसे
मायारहित आलोचना करने पर आसेवित परिहारस्थान के अनुसार चातुर्मासिक या कुछ अधिक चातुर्मासिक, पंचमासिक या कुछ अधिक वातिक प्रति आता है और
माया सहित मालोचना करने पर आरोपित परिहारस्थान के अनुसार पंचमारिक या कुछ अधिक नमानिक या सामासिक प्रायश्चित आता है।
इसके उपरान्त माया सहित पापाति आलोचना करने पर वही षाण्मासिक प्रायश्चित्त आता है।
चातुर्मासिक, अनेक बार पंचमासिक या अनेक बार कुछ अधिक जो भिक्षु अनेक बार चातुर्मासिक या अनेक बार कुछ अधिक पंचमासिक परिहारस्थानों में से किसी एक परिहारस्थान की प्रतिसेवना करके आलोचना करे तो उसे