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________________ सत्र ६५५ कपट सहित तथा कपट रहित आलोचक को प्रायश्चित्त देने की विधि तपाचार [३२५ अपलिउंत्रिय मालोएमाणस्स मासियं, पतिषिय आलोए. करके आलोचना करे तो उसे माया-रहित आलोचना करने पर माणस्स वोमासियं । एक मास का प्रायश्चित आता है और माया-सहित आलोचना करने पर दो मास का प्रायश्चित्त आता है। मिासको रिहाई पजिसेवित्ता झालोएग्जा, जो भिक्षु एक बार द्विमासिक परिहारस्थान की प्रतिसेवना अपलिउंघिय बालोएमाणस्स दो मासियं, पसिउचियं आलो- करके आलोचना करे तो उसे माया रहित आलोचना करने पर एमाणस तेमासियं। द्विमासिक प्रायश्चित्त आता है और माया-सहित आलोचना करने पर मासिक प्रायश्चित्त बाता है। जे भिक्खू तेमासिय परिहारद्वाणं पटिसेविता आलोएज्जा, जो भिक्षु एक बार त्रैमासिक परिहारस्थान की प्रतिसेवना अपलिउंचिय आलोएमाणस्स तेमासियं, पलिउंचिय आसो- करके बालोचना करे तो उसे माया-रहित बालोचना करने पर एमाणस्स चाउम्मालियं। त्रैमासिक प्रायश्चित्त आता है। और माया-सहिरा आलोचना करने पर चातुर्मासिक प्रायश्चित्त आता है। जे भिक्खू पाउम्मासिय परिहारट्ठाणं पडिसे वित्ता आलो- जो भिक्षु एक बार चातुर्मासिक परिहारस्थान की प्रतिसेवना एज्जा-अपलिउंघिय आलोएमाणस्स घाउम्मासियं, पलिउं- करके आलोचना करे तो उसे माया-रहित आलोचना करने पर निय भालोएमाणस्स पंचमासि । चातुर्मासिक प्रायश्चित्त भाता है और माया-सहित आलोचना करने पर पंचमासिक प्रायश्चित्त आता है। जे मिक्डू पंचमासिय परिहारट्टाणं पडिसेबित्ता आलोएज्जा, जो भिक्षु एक बार पंचमासिक परिहारस्थान की प्रतिसेदना अपरिचिय आलोएमागस्त पंचमासियं पलिउचिए आलो. करके आलोचना करे तो उसे माया-रहित आलोचना करने पर एमागस्स छम्मासिर्य। पंचमासिक प्रायश्चित्त आता है और माया-सहित मालोचना करने पर पाण्मासिक प्रायश्चित्त आता है। तेणं परं पलिखिए वा, अपलिउंथिए बाते व छम्मासा। इसके उपरान्त माया-सहित या माया-रहित आलोचना करने पर भी वही पाण्मासिक प्रायश्चित्त आता है। जे भिक्खू बहुसो वि मासिय परिहारहाणं पडिसेषित्ता आलो- जो भिक्षु अनेक बार मासिक परिहारस्थान की प्रतिसेवना एग्जा, अपलिउंचिय आलोएमाणस्स मासियं, पलिउचिप करके आलोचना करे तो उसे माया-रहित आलोचना करने पर आलोएमाणEस दो मासिपं । एक मास का प्रायश्चित्त आता है और माया सहित आलोचना करने पर द्विमासिक प्रायश्चित्त आता है। जे मिक्खू बहसो वि दो मासिय परिहारद्वाण पडिसेविता जो भिक्षु अनेक बार द्विमासिक परिहारस्थान की प्रतिसेवना आलोएग्जा, अपलिविय आलोएमाणस दो मासियं, करके आलोचना करे तो उसे माया-रहित आलोचना करने पर पलिजंचिय आलोएमाणस तेमासियं । द्विमासिक प्रायश्चित्त आता है और माया-सहित आलोचना करने पर मासिक प्रायश्चित्त आता है। जे भिक्खू बहसो विते मासियं परिहारहाणं पडिसे वित्ता जो भिक्षु अनेक धार त्रैमासिक परिहारस्थान की प्रतिसेवना आलोएग्जा, अपलिउंधिय आलोएमाणस ते मासियं, पलि- करके आलोचना करे तो उसे माया-रहित मालोचना करने पर उंधिय बालोएमाणस चाउम्मासियं । मासिक प्रायश्चित आता है और माया-सहित आलोचना करने पर चातुर्मासिक प्रायश्चित्त आता है। मिक्खू बहसो वि चाजम्मासियं परिहारद्वाण पडिसेबित्ता जो भिक्षु अनेक बार चातुर्मासिक परिहारस्थान की प्रतिआलोएज्जा, अपसिउंघिय आलोएमाणस्स चाउम्मासियं, शेषना करके आलोचना करे तो उसे माया-रहित आलोचना पलिउंघिय आलोएमाणस्स पंचमासियं । करने पर चातुर्मासिक प्रायश्चित्त आता है और माया-सहित आलोचना करने पर पंचमासिक प्रायश्चित्त आता है।
SR No.090120
Book TitleCharananuyoga Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year
Total Pages571
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Conduct, Agam, Canon, H000, H010, & agam_related_other_literature
File Size18 MB
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