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________________ ३२२] धरणानुयोग -२ आलोचना न करने के कारण सूत्र ६५०-६५१ ३. आयाती गरहिता भवति ।। (३) भविष्य गहित होता है। ४. एगमवि मायी मायं कटु जो आलोएज्जा-जाव-अहारिह . (४) जो भायात्री एक भी मायापार करके आलोचना नहीं पायच्छित्तं तवोकम्मणी पडिवग्जेमा रिम तस्स आरक्षणा। करता है-यावत्-तपःकर्म स्वीकार नहीं करता है, उसके आराधना नहीं होती है।। ५. एगवि माथी माय कटटु आलोएज्जा-जाब-तबो कम्म (५) जो भायाधी एक बार भी मायाचार करके उसकी पविवज्जेम्जा, अस्यि तस्स आराहणा। आलोचना करता है-यावत्-यथायोग्य प्रायश्चित्त और तपः कर्म स्वीकार करता है, उसके आराधना होती है। ६. बहोवि मायी मार्ग कटु गो आलोएज्मा-जाव-सवोकम्म (६) जो मायावी अनेक बार मायाचार करके उसकी आलोणो परिवज्जेज्जा, णस्थि तस्स आराहणा। चना भहीं करता है-बावत्- तपःकर्म स्वीकार नहीं करता है। उसके आराधना नहीं होती है। ७. बहुओवि मायी मायं कटु आलोएज्जा-जाव-सबोफम्म (७) जो मायावी अनेक बार मायाचार करके उसकी आलोपडिवोज्जा, अस्थि तस्स आराहणा। चना करता है-यावत् - तप कर्म स्वीकार करता है, उसके आराधना होती हैं। ८ आयरिय उवमायस्स वा गे अतिसेसे गाणसणे समष्ण- चारी या मायाय को अतिशय ज्ञान और ज्जेज्जा से य मममालोएज्जा मायी णं एसे । दर्शन उत्पन्न हो जाय तो वे जान लेंगे कि यह मायावी है। -ठाणं. अ.८, सु. ५६७ (ख) आलोयणा अकरण कारणाई आलोचना न करने के कारण६५१. तिहि ठाणेहि मायो मायं कटु णो आलोएज्जा, जो पडि- ६५१. तीन कारणों से मायावी माया करके न उसकी आलोचना बकमेम्जा, जो णिवेज्जा, णो गरहेज्जा, गो विउ ज्जा, णो करता है, न प्रतिक्रमण करता है, न निन्दा करता है, नगीं विसोहेज्जा, णो अकरणयाए अम्मुट्ठीमा, णो अहारिहं करता है, न ज्यावृत्ति करता है, न विशुद्धि करता है, न पुनः पायपिछत्तं तवोकम्म पडिवोज्जा, तं जहा -- वैसा नहीं करूंगा ऐसा कहने को उद्यत होता है, न यथायोग्य प्रायश्चित्त रूप तप कर्म को स्वीकार करता है । यथा१. अरिसु चाहं, (१) मैंने अकरणीय कार्य किया है। २. करेमि शाह, (२) मैं अकरणीय कार्य कर रहा हूँ। ३. करिस्सामि चाहं, (३) मैं अकरणीय कार्य करूंगा। तिहि ठाणेहि मापी माय कट्ट गो आलोएज्जा-जाव-तयो. तीन कारणों से मायावी माया करके न उसकी आलोचना कम्म गो परिवम्जेज्जा, तं जहा करता है-पावत्-न तपःकर्म को स्वीकार करता है । यथा१. अकित्ती वा मे सिया, (१) मेरी अकीति होगी, २. अवणे वा मे सिया, (२) मेरा अवर्णवाद होगा । ३. अविणए वा मे सिया। (३) मेरा अविनय होगा। तिहि ठाणेहि भायी मायं कटटु णो आलोएन्जा-जाव-सबो- तीन कारणों से मायावी माया करके न उसकी आलोचना कम्मं जो पडियज्जेम्जा, तं जहा करता है-यावत्-न तपःकर्म को स्वीकार करता है, यथा१. कित्ती वा मे परिहाइस्सह, (१) मेरी कीर्ति कम हो जाएगी । २. जसे वा मे परिहाइस (२) मेरा यश कम हो जाएगा। ३. पूयासबकारे वा मे परिहाइस्सह । (३) मेरा पूजा-सत्कार कम हो जायगा। --ठाणं. अ. ३, उ. ३, सु. १७६ १ ठाणं, अ. ३, उ.३, सु. १७६ २ ठाणं. अ.८, सु. ५६७(क)
SR No.090120
Book TitleCharananuyoga Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year
Total Pages571
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Conduct, Agam, Canon, H000, H010, & agam_related_other_literature
File Size18 MB
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