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चरणानुयोग – २
एतं जहा १. आधारथं,
२. आहार,
आलोयणा सवन जोगा
आलोचना श्रवण के योग्य
४६. सहा संपणे आणणारे अरिहति आलोय पछि ६४६. दानों से सम्पन्न अगार आलोचना सुनने के योग्य
होता है, यथा
(१) आचारवान् शान आदि पंचाचार से युक्त हो । (२) आधारमा आलोचना लेने वाले के द्वारा आलोचना किये जाने वाले समस्त दोषों का जानने वाला हो । (३) व्यवहारवान् बाला हो ।
भगम आदि पाँच व्यवहारों का जानने
(४) अपीडक लज्जा या संकोच छुड़ाने में कुशल हो । (५) प्रकुर्वक आलोचना कराने में समर्थ हो।
(६) अविभाषी आलोचना करने वाले के दोष दूसरों के सामने प्रकट करने वाला न हो।
२.बहार
४. ओवीलए,
५. पकुवाए, ६. अपरिस्सा.
७. निज्जाए
वायसी
६. पिम्मे,
१०. दशमे ।
(७) निर्यायक - प्रायश्चित्त के अनुसार तपाचरण कर सके ऐसा प्रायश्वित देने वाला हो ।
(c) अपायवर्ती आलोचना न करने के फलों को बताने में समर्थ हो ।
(६) प्रियधर्मा-धर्म से प्रेम रखने वाला हो, धर्म में अमन्त अनुराग हो।
(१०) बुद्धधर्मा - आपत्तिकाल में भी धर्म में दृढ़ रहने वाला हो ।
जो अनेक शास्त्रों के विज्ञाता, आलोचना करने वाले के मन सोउं ॥ में समाधि उत्पन्न करने वाले और गुणग्राही होते हैं. ये अपने इन्हीं ३९ वा. २६२ गुणों के कारण बालोचना सुनने के अधिकारी होते हैं। आलोचना करने के योग्य
आलोयणा करण जोगा
६४. दसह ठाणे संपणे अणगारे अरिहद अत्तदोसं आलो ६४७. दस गुणों से युक्त मालोचना करने योग्य होते हैं, यथा
इस तं जहा १. जाणे, २. विजय
५. दंसणपणे,
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आगमविणा पाहावा पाही ।
एए कारणेणं अरिहा वो
७.
वंते, ६. अमावी,
१ (क) ठाणं. अ. २क) ठाणं. अ.
आलोचना श्रवण के योग्य
- ठाणं. अ. १०, सु. ७३२
सु. ६०४ सु. ६०४
२. कुलप ४. पाण
६. परिसंपन्
८.
दंते,
१० अपच्छाता
-ठाणं. अ. १०, सु. ७३२ साहम्मियाणं आलोयणा तह पढवणा विही ६४८. दो सामिया एगयओ विहरति, एगे तस्थ अन्नयरं अकिच्च द्वाणं पडिविता आलोएडा, बलिं बता कर बेयारिं ।
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सूत्र ६४६-६४८
(१) जाति सम्प
(3) विनय सम्पन
(५) वन सम्प
(2) जमानी,
सामिकों की आलोचना तथा प्रस्थापना विधि६४८. दो साथमिक साधु एक साथ विवरते हों और उनमें से यदि एक सा किसी महत्व स्थानको प्रतिसेवता करके का चना करे तो उसे प्रायश्चित्त तप में स्थापित करके अन्य साघमित्र भिक्षु को उसकी चैवास्य करनी चाहिए।
(ख) वि. स. २५, उ. ७, सु. १९३
(ख) वि. स. २५ उ ७, सु. १६२
(२) कुल सम्पन्न,
(४) ज्ञान सम्पन्न,
(६) चारित्र सम्पन्न,
(५) दान्त, (१०)।