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एक मास प्रायश्चित्त की स्थापिता क्षारोपणा
सबसराय-तैमासियं परिहारार्थ किए अणगारे अंतरा दो माल परिहाराणं पडिसेवित्ता आलोएम्ता अहा यश बोसइराहया आरोषणा आदिमन्क्षावसाये सअहं सहे सकारणं अहोणमइरितं तेण परं चतारि मासा |
भाउमाथि परिहारानं पढलिए चमारे अंतरा मासि परिहाराणं पडिसेविता आलोएब्जा - अहावरा वीसइराइया आरोवणार आदिमज्ज्ञावसाने स सह सकारणं अहोषमरितं तेण परं सबोसड़ाइया पत्तारि
मासा ।
सवीसराय चाउमा सियं परिहारट्ठाणं पविए अणगारे अंतरा दो मास परिहाराणं परिसेविता] आमाआलोएज्जाअहावरा वीसहराइया आरोषणा आदिमन्शासा सअर्द्ध सहेज सकारण अहीणमस्ति तेण परं सदसराया पंचमासा |
सराय पंचमारियं परिहाराणं पविए अणगारे अंतरा दो गालि परिहाराणं पडिसेविता आलोएडाबहावरा बसराया आरोवणा आदिममा वसा सहेडं कारणं बहीणमरितं तेण परं छम्मासा | - नि.उ. २०, सु. २७-३१
चार मास और बीत रात्रि का प्रायश्वित्त वहन करने वाला वणनार यदि प्रायश्चित काल के आरम्भ में मध्य वहन प्रारम्भ में या अन्न में प्रयोजन हेतु या कारण से दो मास प्रायश्चित्त योग्य दोष का सेवन करके आलोचना करे तो उसे कम न अधिक रात्रि की आपका आता है जिसे संयुक्त करने से पाँच मास और दस दिन की प्रस्थापना होती है ।
पत्र मास और दस रात्रि का प्रायश्चित्त वहन करने वाला अणगार यदि प्रायश्वित बहन काल के प्रारम्भ में मध्य में या समन्त में प्रयोजन हेतु या कारण से दो महत वश्चित योग्य दोष का सेवन करके आलोचना करे तो उसे न कम न अधिक बीस रात्रि की आरोपणा का प्रायश्चित आता है। जिसे संयुक्त करने से छ: मास की प्रस्थापना होती हैं ।
मासिस्स ठविया आशेषणा
६४० छम्मासिवं परिहाराणं पविए अणगारे अंतरा मामियं परिहाराणं पश्लेिविता आएका महावरा परिणया वारोवा आदिमाता सद्धं सहेज सकारणं ही मरिण पर दिमा
पंच मासि परिहाराणं पठविए अणगारे अंतरा मासि यं परिहाराणं पचिविता आलोएना बहावरा परिचय आरोवना आदिमज्भावसणे समट्ठे सहेजें सकारण अहीण मरिशते परं चास
सूत्र ६३६-६४०
मास परिहाराणं पट लिए अणगारे अंतरा मासि परिहारट्ठाण परिसेविता आलोएब्ज- अहावरा पत्रिसया
तीन मास और दस रात्रि का प्रायविचत्त बहूत करने वाला अमगार यदि प्रायश्चित बहन काल के प्रारम्भ में मध्य में या अन्त में प्रयोजन हेतु या कारण से दो मास प्रायश्चित योग्य दोष का सेवन करके आलोचना करे तो उसे न कमन अधिक बीस रात्रि की आरोपणा का प्रायश्वित आता है जिसे संयुक्त करने पर चार मास की प्रस्थापना होती है।
चातुर्मासिक प्रायश्चित वहन करने वाला अणगार यदि प्रायश्वित बहन काल के प्रारम्भ में, मध्य में या अन्त में प्रयो जन हेतु या कारण से दो मास प्रायश्चित योग्य दोष का सेवन करके आलोचना करे तो उसे न कमन अधिक बस रात्रि की आरोपणा का प्रायश्चित्त आता है। जिसे संयुक्त करने से चार मास और बीस दिन की प्रस्थापना होती है ।
एक मास प्रायश्चित्त की स्थापिता आरोपणा६४० : मासिक प्रायश्वित वहन करने वाला अजगार यदि प्रायश्चित्त बहुत काल के प्रारम्भ में मध्य में या अन्य में प्रयो जन हेतु या कारण से मार्मिक प्रायश्वित्त योग्य दोष का सेवन करके आलोचना करे तो उसे न कम न अधिक एक पक्ष की आरोपणा का प्रायश्चित्त आता है। उसके बाद पुनः दोष सेवन कर ले तो डेढ़ मास का प्रायश्चित्त आता है ।
पंच मासिक प्रायश्चित्त वहन करने वाला अणगार यदि प्रायश्वित बहन काल के प्रारम्भ में, मध्य में या अन्त में प्रयोजन हेतु या कारण से मासिक प्रायश्चित योग्य दोष का सेवन करके आलोचना करे तो उसे न कम न अधिक एक पक्ष की आरोपणा का प्रायश्चित आता है। उसके बाद पुनः दोष सेवन करले तो डेढ़ मास का प्रायश्चित्त आता है।
चातुर्मासिक प्रायश्चित वहन करने वाला अणगार यदि प्रायश्चित्त बहुत काल के प्रारम्भ में, मध्य में या अन्त में प्रयो