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________________ सूत्र' ६३८-६३६ दो मास प्रायश्चित्त की प्रस्थापिता आरोपणा वृद्धि तपाचार [३१३ पंचमासियं परिहारहाणं पदविए अणगारे अंतरा दो मासियं पंचमासिक प्रायश्चित्त वहन करने वाला अणगार यदि परिहारट्टाणं एडिसेबित्ता आलोएज्जा - अहावरा वीसराइया प्रायश्चित्त वहन काल के प्रारम्भ में, मध्य में या अन्त में प्रयोजन आरोवणा आविमभावसाणे सअट्ट सहेजं सकारणं महीण- हेतु या कारण से दो मास प्रायश्चित्त योग्य दोष का सेवन करके महरितं तेग परं सवीराइराइया बो मासा । आलोचना करे तो उसे न कम न अधिक वीरा रात्रि की आरोपणा का प्रायश्चित्त आता है, उसके बाद पुनः दोष सेवन कर ले तो दो मास और बीस रात्रि का प्रायश्चित्त आसा है। चाउम्मासियं परिहारट्टाणं पट्टविए अणणारे अंतरा दो मासियं चातुर्मासिक प्रायश्चित्त वहन करने वाला अणगार यदि परिहारद्वाण पडिसेबित्ता आलोगजा-अहावरा योसमराहमा पपिचत्त वहन काल के प्रारम्भ में, मध्य में या अन्त में प्रयोआरोवणा आदिमझावसाणे सअट्ठ सहेजें सकारणं अहीण- जन हेत या कारण से दो मास प्रायश्चित्त योग्य दोष का सेवन महरित तेण परं सवीसनराइया दो मासा । करके आलोचना करे तो उसे न कम न अधिक बीस रात्रि की आरोपणा का प्रायश्चित्त आता है, उसके बाद पुन: दोष सेवन करले तो दो मास और वीस रात्रि का प्रायश्चित्त आता है। तेमासियं परिहारट्ठाणं पट्टबिए अणगारे अंतरा दो मासियं मासिक प्रायश्चित्त वहन करने वाला अणगार यदि प्रायपरिहारवाणं पडिसेवित्ता आलोएन्जा-बहावरा बीसह- श्चित्त वहन काल के प्रारम्भ में, मध्य में या अन्त में प्रयोजन राश्या आरोवणा आदिमजमावसाणे सअट्ठं सहेङ सकारणं हेतु या कारण से दो मास प्रायश्चित्त योग्य दोष का सेवन करके अहीणमइरिसं तेण पर सवीसइराइया दो मासा । आलोचना करे तो उसे न कम न अधिक बीस रात्रि की आरोपणा का प्रायश्चित्त आता है, उसके बाद पुन: दोष सेवन करले तो दो मास और बीस रात्रि का प्रायश्चित्त आता है। वो मासियं परिहारट्ठाणं पविए अणगारे असरा दो दो मासिक प्रायश्चिन बहन करने वाला अणगार यदि मासियं परिहारहाणं पठिसेवित्ता आलोएज्जा अहावरा प्रायश्चित्त वहन काल के प्रारम्भ में, मध्य में या अन्त में प्रयोपोसइराइया आरोवणा आदिममावसाणे सअट्ठ सहे जन हेतु या कारण से दो माम प्रायश्चित्त योग्य दोष का सेवन सकारणं अहीणमहरितं तेण परं सवालइराख्या दो मासा। करके आलोचना करे तो उसे न कम न अधिक वीस रात्रि की आरोपणा का प्रायश्चित्त आता है, उसके बाद पुनः दोष सेवन करले तो दो मास और बीस रात्रि का प्रायश्चित्त आता है। मासियं परिहारट्ठाणं पठविए अणगारे अंतरा दो मासिय मासिक प्रायश्चित्त बहन करने वाला अणगार यदि प्रायपरिहारट्ठाणं पडिसे बित्ता आलोएज्जा-- अहावरा बोसइ- श्चित्त यहन बाल के प्रारम्भ में, मध्य में या अन्त में प्रयोजन राइया आरोवणा आदिमज्यावसाणे सअट्ठं सहेजे सकारगं हेतु कारण से दो मास प्रायश्चित्त योग्य दोष का सेवन करके अहीणमहरित तेण परं सबोसइराइया दो मासा । आलोचना करे तो उसे न कम न अधिक बीस राषि की आरो नि. उ २०, सु २१-२६ पणा का प्रायश्चित्त आता है, उसके बाद पुनः दोष सेवन करले लो दो मास और बीस रात्रि का प्रायश्चित्त आता है। दो मासियस पट्टविया आरोवणा बुढि-- दो मास प्रायश्चित्त की प्रस्थापिता आरोषणा वृद्धि - ६३६. सवीसइराइयं दो मासियं परिहारट्ठाणं पढविए अणमारे ६३६. दो मास और वीस रात्रि का प्रायश्चित्त वहन करने अंतरा दो मासिय परिहारट्ठाणं परिसे वित्ता आलोएज्जा - वाला अणगार यदि प्रायश्चित्त बहन काल के प्राम्भ में, मध्य अहावरा वोसइराइया आरोवणा आदिमजावसाणे सअट्ढे में या अन्त में प्रयोजन, हेतु या कारण मे दो मास प्रायश्चित्त सहेजें सकारणं अहोणमहरित सेण परं सदसराया तिष्णि- योग्य दोष का रोवन करके आलोचना करे तो उसे न कम न मासा । अधिक बीस रात्रि की आरोपणा का प्रायश्चित्त आता है। जिसे संयुक्त करने पर तीन मास और दस रात्रि की प्रस्थापना होती है।
SR No.090120
Book TitleCharananuyoga Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year
Total Pages571
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Conduct, Agam, Canon, H000, H010, & agam_related_other_literature
File Size18 MB
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