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________________ ३१२] घरगानुयोग-२ आरोपणा के अट्ठाईस प्रकार सूत्र ६३६-६३८ ५. हाडहा। अण.. सु. पर आरोप- प्रायश्चित्त प्राप्त होने के समय से ही कराई जाने वाली आरोपणा । अट्ठावीसइ-बिहा आरोवणा आरोपणा के अट्ठाईस प्रकार६३७. अठ्ठाविसतिबिहे आयारपकप्पे पण्णत्ते, तं जहा - ६३५. भाचार प्रकल्प अट्ठाईस प्रकार का है, यथा-- १. मासिया आरोवणा, (१) एक मास की आरोपणा, २. सपंचरायमाझिया आरोवणा, (२) एक मास पांच दिन की आरोपणा, ३, सदसरायमासिया आरोषणा. (३) एक मास दस दिन की आरोपणा, ४. सपण्णरसरायमासिया आरोवणा, (४) एक स पन्द्रह दिन की आरोपणा, ५. सवीसहरायमासिया आरोवणा, (५) एक मास बीस दिन की आरोपणा, ६. सपंचयोसहराय मासिया आरोवणा, (६) एक मास पच्चीम दिन की आरोपणा, ७. दोमासिया आरोवणा, (७) दो मास की आरोपणा, ५. सपंचरायदोमासिया आरोवणा, (८) दो मास पांच दिन की आरोपणा, ६. सदसरायदोमालिया आरोवणा, (e) दो मास दस दिन को आरोषणा, १०. सपाणरसरायदोमासिया आरोवणा, (१०) दो मास पन्द्रह दिन को भारांपणा, ११. सोमवायदोमासिया आरोवणा, (११) दो मास बीस दिन की आरोपणा, १२. संपचवीसहरायदोमासिया आरोदगा, (१२) दो मास पच्चीस दिन की आरोपणा, १३. तेमासिया आरोवणा, (१३) तीन मास की आरोपणा, १४. सपंधरायतेमासिया मारोवणा, (१०) तीन मास पांच दिन को आरोपणा, १५. सवसरायतेमासिया आरोवणा, (१५) तीन मास दस दिन की आरोपणा, १६. सपण्णरसरायतेमासिया आरोवणा, (१६) तीन मास पन्द्रह दिन की आरोपणा, १७. सवीसहरायतेमासिया आरोवणा (१७) तीन मास बीस दिन को आरोपणा, १५. सपंचवीसरायतेमासिया आरोवणा, (१८) तीन माम पच्चीस दिन बी आरोपणा, १६. उमासिय आरोवणा, (१६) चार मारा की आरोपणा. २० सपंचरायचउमासिया आरोवणा, (२०) चार मास पाँच दिन को आरोपणा, २१. सदसरायचउमासिया आरोषणा, (२१) घार मास दस दिन की आरोपणा, २२. सपण्णरसरायचउमासिया भारोवणा, (२२) चार मास पन्द्रह दिन की आरोपणा २३. सवोसहरायचउमासिया आरोवणा, (२३) चार मास बीस दिन की आरोपणा, २४. सपंचवीसइरायचजमानिया आरोवणा, (२४) चार मास पच्चीस दिन की आरोपणा, २५. उग्घाझ्या आरोवणा, (२५) उद्घातिकी आरोपणा, २६. अणुरघाइया आरोवणा, (२६) अनुदघातिको आरोपणा, ३७. कलिणा आरोवणा, (२७) कसना आरोपणा, २५. अकसिणा आरोवणा 1 -सम. सम, २८, सु. १ (२८) अकृरूमा आरोपणा। वो मासियरस ठविया-आरोवणा दो मास प्रायश्चित्त की स्थापिता आरोपणा६३८. छम्मासियं परिहारट्टाणं पढविए अणगारे अंतरा दो मासिय ६३८. छः मासिक प्रायश्चित्त बहन करने वाला अणगार यदि परिहारद्वाणं पडिसेवित्ता आलोएज्जा-अहावरा वीसरा- प्रायश्चित्त वहन काल के प्रारम्भ में, मध्य में या अन्त में प्रयोजन 'या मारोवणा आदिमजयावसाणे सभट्ट सहेउं सकारणं हेतु या कारण से दो मास प्रायश्चित्त योग्य दोष का सेवन करके बहीणमहरित सेण पर सवीसइशपया दोमासा। आलोचना करे तो उसे न कम न अधिक बीस रात्रि की आरोपणा का प्रायश्चित्त आता है, उसके बाद पुनः दोष सेवन करले तो दो मास और बीस रात्रि का प्रायश्चित्त आता है।
SR No.090120
Book TitleCharananuyoga Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year
Total Pages571
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Conduct, Agam, Canon, H000, H010, & agam_related_other_literature
File Size18 MB
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