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________________ सूत्र ६२४.६२५ वज्रमध्य चन्न प्रतिमा तपाचार [३०१ एक्कारसभीए से कप्पइ चढ दत्तोश्रो भोयणस्स पहिगाहेत्तए, ग्यारस के दिन भोजन और पानी की चार-चार दत्तियाँ चउ पागस्स-जान-एयाए एसपाए एसमाणे लभेज्जा आहा- ग्रहण करना कल्पता है-यावत-इस प्रकार के अभिग्रह से रेज्जा, एयाए एसणाए एसमाणे णो लभेजा नो आहारज्जा। एषणा करते हुए आहार प्राप्त हो तो ले, यदि इस प्रकार के नियमों से एषणा करते हुए आहार प्राप्त न हो तोभ ले। बारसमोए से कप्पा तिष्णि वत्तीओ भोयणस पडिगाहेसए, बारम के दिन भोजन और पानी की तीन-तीन दत्तियां ग्रहण तिषिण पाणस्स-जाव-एयाए एसणाए एममाणे लभेज्जा करना कल्पता है -यावत् .. इस प्रकार के अभित्रह से एपणा आहारेज्जा, एयाए एसणाए एसमाणे को लज्जा नो करते हुए आहार प्राप्त हो तो ले, यदि इस प्रकार के नियमों से आहारेषजा। एषणा करते हुए आहार प्राप्त न हो तो न ले। तेरसमीए से रप्पन दो यत्तीओ मोयणस्स पडिगाहेत्तए. यो तेरस के दिन भोजन और पानी की दो दो दत्तियाँ ग्रहण पाणस-जाव-एयाए एसगाए एसमाणे सभेज्जा आहारज्जा. करना कल्पता है-वायत्-इस प्रकार के अभिग्रह से एषणा एयाए एसणाए एसमाणे णो लभेजा नो माहारेज्जा। करते हुए आहार प्राप्त हो तो ले, यदि इस प्रकार के नियमों से एषणा करते हुए आहार प्राप्त न हो तो न ले । चउवसमीए से कप्पड़ एगा दत्तो भोषणस्स पडिमाहेत्तए, चौदस के दिन भोजन और पानी की एक-एक दत्ती ग्रहण एगा पाणस्स-जाव-एयाए एसणाए एसमाणे लभेज्जा आहा- करना करना कल्पता है -यावत्-इस प्रकार के भिग्रह से रेन्जा, एपाए एसणाए एसमाणे णो लज्जा नो आहारज्जा। एषणा करते हुए आहार प्राप्त हो तो ले, यदि इस प्रकार के नियमों से एपणा करते हुए आहार प्राप्त न हो तो न ले । आमावासाए से य अभत्तटुभवह। अमावस के दिन वह उपवास करता है। एवं खतु एसा अवमज्जा चंदपडिमा अहासुत्त-जाव-आणाए इस प्रकार यह जवमध्य चन्द्र प्रतिमा सूत्रानुसार-यावत्-- अणुपालिया भवइ । - वव.उ. १०, सु. १.२ जिनाज्ञा के अनुसार पालन की जाती है। यहरमझा चंदपडिमा वजमध्य चन्द्र प्रतिमा६२५. बदरममं गं चंदपडियं पठिबन्नस्स अणगाररस निच्चं मास ६२५. वचमध्य चन्द्र प्रतिमा स्वीकार करने वाला अणगार एक बोसट्टकाए घियत्तदेहे जे केइ परीसहोवसग्गा समुप्पज्जेज्जा मास तक शरीर के परिकम से तथा शरीर के ममत्व से रहित -जाव-अहियासेज्जा। होकर रहे और जो कोई परीषह एवं उपसर्ग होवे-यावत् उन्हें शान्ति से सहन करे। वहरमासं जं चंदपडिम पजिवनस्स अणगारस्स, वजमध्य-चन्द्र-प्रतिमा स्वीकार करने वाले अणकार को, बहुलपक्खस्स पाडिवए से कप्पद पन्नरस दत्तीओ भोयणस्स कृष्ण पक्ष की प्रतिपदा के दिन पन्द्रह-पन्द्रह दत्तिया भोजन पडिगाहेत्तए पन्नरस पाणस्स-जाव-एयाए एसणाए एसमाणे और पानी की लेना कल्पता है--यावत् -इस प्रकार के अभिग्रह लभेज्जा आहारेन्जा, एपाए एसणाए एसमाणे णो लभेज्जा से एषणा करते हुए आहार प्राप्त हो तो ग्रहण करे यदि इस जो आहारज्जा। प्रकार के अभिग्रह से एषणा करते हुए बाहार प्राप्त न हो ग्रहण न करे। जियाए से कप्पड़ चउड्स वसीओ भोयणस्स पडिगाहेसए, द्वितीया के दिन भोजन और पानी की चौदह-चौदह दत्तियाँ चउद्दस पाणस्स-जाव-एयाए एसगाए एमाणे लमेजा ग्रहण करना कल्पता है -थावत्---इस प्रकार के अभिग्रह से आहारेज्जा, एवाए एसणाए एसमाणे णो लज्मा णो एषणा करते हुए आहार प्राप्त हो तो ग्रहण करे, यदि इस प्रकार आहारेजा। के अभिमह से एषणा करते हुए आहार प्राप्त न हो तो ग्रहण न करे। तइयाए से कम्पह तेरस वसीयो भोयणस्स पडिगाहेत्तए, तीज के दिन भोजन और पानी की तेरह-तेरह दत्तियाँ ग्रहण तेरस पागस्त-जाव-एपाए एसगाए एसमाणे लग्ना आहा- करना कल्यता है-यावत्-इस प्रकार के अभिग्रह से एपणा रेज्जा, एयाए एसणाए एसमाणे णो लभेजा को आहा- करते हुए आहार प्राप्त हो तो ब्रह्म करे, यदि इस प्रकार के अभिग्रह से एषणा करते हुए आहार प्राप्त न हो ग्रहण न करे।
SR No.090120
Book TitleCharananuyoga Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year
Total Pages571
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Conduct, Agam, Canon, H000, H010, & agam_related_other_literature
File Size18 MB
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