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६१४-६१५
वस्त्र लेने को चार प्रतिमाएं
४. अहावरा उत्पा पडिमा से भिक्खू या मिक्की वा अहासंचडमेव संधारणं जाएगा जहा
विसिया वा हापमेव या संचार,
तस्स लाभे संवसेज्जा तस्स अलाभे उक्कुडए वा सज्जिए या विहरेज्जा । चजत्था पडिमा ।
इच्येयाणं च परिमाणं अभ्गतरं परिमं पविम - जाव अण्णोष्णसमाहीए एवं चणं विहरति ।
-- आ. सु. २, अ. २, ३, सु. ४५६-४५७ बसारि त्यसण पडिमान
२. अहाब वा पहिमभिक्खू या मिनी वा पेहाए त्वं जाएया हाताना कम्मर या से पुरषामेव आलोएज्जा- ''आउसो ति वा भगिणि ! ति वा वाहिति मे एसी अन्तर पत् तहप्पारं वश्यं सयं वा णं जाएजा परो वा से बेज्जा, फालुपं जाव-डिगाहेज्जा । बोच्चा पडिमा । ३. महावरा तथा पराभवा-जाव-समाने सेजं गुणवत्थं जज्जा तं जहा अंतर या उता
तहष्यगारं वत्थं स वर णं जाएउजा, परो वा से वेजा कार्य जाव पडिगाहेज्जा । तच्चा पडिमा |
४. अहावरा व उस्था पडिमा --- से भिक्खू वा-- जाव- समाणे म्यं यत्
जं च बहवे समम जाव-वणीमगा णावकं खंति,
१. ठाणं. भ. ४, उ. ३, सु. २३१
तयाचार
६१५ माई आयतणाई जवातिकम्म अह् भिक्खू जाणेज्जा- ६१५. पूर्वोक्त (वस्त्रपणा में वर्णित ) दोषों को छोड़कर भिक्षु माहि परिमारहे वत्यं एसिए इन चार प्रतिमाओं से वस्त्र की एषणा करे -
सिनाए २. भंगियं वा,
१. तत्य खलु न पढना पडिमा से मिक् या भिक्खूणी या उस तं महा१. जंगियं वा, ३. वा ४. पोत्तमं वा ५. खोमियं वा, ६. तुला । हत्यारं वत्यं स या पंजाएमा, परो या से देन्जा, फासुगा पहना परिमा
६. इनमें से ही यह है- भिक्षु वा भिक्षुणी नामोल्ने कर-करके वस्त्र की याचना करे जैसे -.. १. जांगलिक २. भोगिक, ४. पोत्रक, ५. सोमिक, ऐसे वस्त्र की स्वयं याचना करे अथवा गृहस्थ स्वयं दे तो प्राक जानकर - यावत्
३. सानज, ६.
ग्रहण करें। यह प्रथम प्रतिमा है ।
२. उसके बाद दूसरी प्रतिमा यह है- भिक्षु या भिक्षुणी बस्त्र को पहले ही देखकर गृहस्वामी-पावनौकरानी वादि से इस प्रकार कहे "हे आयुष्मन् गृहस्थ ! या बहन ! क्या तुम इन वस्त्रों में से कोई वस्त्र मुझे दोगे ?"
इस प्रकार स्वयं वस्त्र की या ना करे अथवा वह गृहस्थ दे तो प्राक जानकर - यावत् ग्रहण करे। यह दूसरी प्रतिमा है। २. इसके बाद तीसरी प्रतिमा यह है वह भिक्षु पावत्प्रवेश करने पर वस्त्र के सम्बन्ध में यह जाने-जैसे किनीचे के भाग में पहना हुआ वस्त्र या ऊपर के भाग में पहना हुआ वस्त्र ।
ऐसे वस्त्र की स्वयं याचना करे या गृहस्थ स्वयं दे तो उसे प्राक जानकर - यावत् ग्रहण करे। यह तीसरी प्रतिमा है । ४. इसके बाद चीनी यह है-वह भिक्षु यत्प्रवेश करने पर यह जाने कि गृहस्थ ने वस्त्र को पहन कर छोड़ दिया है।
जिसे कि बहुत से अन्य श्रमण यावत्-- भिखारी लोग भी लेना न चाहते हों,
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४. इसके बाद लोधी प्रतिमा यह है भिक्षु या भिक्षुमी उपाश्रय में पहले से ही बिछे हुए संस्तारक की यात्रा करें।
यथा--...
पत्थर की शिला, लकड़ी का पाट या बिछा हुआ तृण मय संस्तारक
इनके प्राप्त होने पर आज्ञा लेकर उस पर शयन करे। न मिले तो उत्कटुकासन या निषेचन आदि आसनों से बैठकर रात्रि व्यतीत करे यह चौथी प्रतिमा है।
इन चारों प्रतिमाओं में से किसी एक प्रतिमा को धारण करने वाला साधु बाबत् सभी अपनी-अपनी समाधि के अनुसार विचरण करते हैं ।
वस्त्र लेने की चार प्रतिमाएं
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