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________________ २९४] घरणानुयोग-२ पात्र लेने की चार प्रतिमाएं सूत्र ६१५-६१६ तहप्पगारं उशियधम्मियं वयं सयं वा षं जाएज्जा, परो ऐसे छोड़े हुए वस्त्र की स्वयं याचना करे अथवा गृहस्थ दे या से वेज्जा, फासुर्य-जाव-पडिगाहेज्जा । चउत्था पडिमा। तो उसे प्रासुक जानकार-यावत्- ग्रहण करे । यह चौथी प्रतिमा है। इन्चेमासि चउण्हं पडिमाणं अण्णतरं परिमं परिवजमाणे इन चारों प्रतिमाओं में से किसी एक प्रतिमा को धारण -जाव-अण्णोण्णसमाहीए एवं च णं विहति । करने वाला साधु-यावत्-सभी अपनी-अपनी समाधि के -आ. सु २, अ. ५, उ. १. सु. ५५६-५६० अनुसार विचरण करते हैं। चत्तारि पत्तेसण पडिमाओ पात्र लेने की चार प्रतिमाएं६१६. इच्च्छयाई आयतणाई उवातिकम्म अह भिक्खू जाणेज्मा-- ६१६. पूर्वोक्त (वस्त्रषणा में वर्णित) दोषों का परित्याग करके इमाहि चहि पडिमाहिं पार्य एसित्तए। भिक्षु इन चार प्रतिमाओं से पात्र की एषणा करे-- १. तस्य खलु इमा पत्रमा पडिमा-से भिक्खू वा भिक्खूणी १. इनमें से पहली प्रतिमा यह है कि-भिक्ष या भिक्षुणी वा उद्दिसिय-उहिसिय पायं जाएज्जा, तं जहा नामोल्लेख पूर्वक प्रतिज्ञा करके पात्र की याचना करे, जैसे१. लाउयपायंडा, २. वारुपायं या, १. तुम्बे का पात्र, २. लकड़ी का पात्र, ३. मट्टियावावया, ३. मिट्टी का पात्र। तहप्पगारं पायं सयं वा णं जाएग्जा, परोया से वेज्जा, ऐसे पात्र की स्वयं याचना करे अथवा गृहस्थ दे तो प्रासुक फासुपं-जाव-पहिगाहेजा । पढमा पडिमा । जानकर. यावत्-ग्रहण करे । यह पहली प्रतिमा है। २. अहावरा बोचा पडिमा-से मिक्खू वा भिक्खूणी वा २. इसके बाद दूसरी प्रतिमा यह है--भिक्ष या भिक्षणी पेहाए पायं जाएज्जा तं जहा (सामने दिखते हुए पात्र को लेने की प्रतिज्ञा करके) पात्रों को गाहावति वा-जाव-कम्मकार वा, पहले हो देखकर गृहपति-यावत्- कर्मकारिणी आदि से इस प्रकार कहे, से पुण्यामेव मासोएज्जा-"आउसी । ति बा, मगिणी! 'हे आयुष्मन् गृहस्थ ! या बहन ! क्या मुझे इनमें से अमक ति पा, बाहिसि मे एत्तरे अण्णतर पाय, तं जहा पात्र दोगे?" जैसे किखाज्यपायं वा-जाव-मष्टियापायं वा, तुम्बा, काष्ठ या मिट्टी का पात्र, तहप्पगार पायं सयं था णं जाएज्जा परो वा से वेज्जा, इस प्रकार के पात्र की स्वयं वाचना करे या गृहस्थ स्वयं दे फासुयं-जाद-पबिगाहेज्जा । दोच्चा पडिमा। तो उसे प्रासुक जानकर-यावत्-ग्रहण करे। यह दूसरी प्रतिमा है। ३. अहायरा तच्चा पडिमा-से भिक्खुवा-जाव-समाणे से उजं ३ इसके बाद तीसरी प्रतिमा यह है-वह भिष-यावतपुर्ण पाय जाणेज्जा-संगतियं वा, वेजयंतियं वा, प्रवेश करने पर ऐसा पान जाने कि वह महस्व के द्वारा उपयोग में लिया जा चुका है या उपयोग में लिया जा रहा है। तहप्पगारं पायं सयं या णं जाएजा परो वा से देज्जा, ऐसे पात्र की स्वयं याचना करे अथवा वह गृहस्थ दे तो फासुग-जाव-पडिगाहेम्जा । तच्चा पडिमा । प्रासुक जानकर - यावत्-ग्रहण करे। यह तीसरी प्रतिमा है। ४. अहावरा घउत्था पडिमा-से भिक्खू बा-जाव-समाणे ४. इसके बाद चौथी प्रतिमा मह है -वह भिक्षु-यावत् - उसियधम्मियं पायं जाएज्जा-जं चणे बहवे सभण-जाव- प्रवेश करने पर यह जाने कि--गृहस्थ ने पात्र को उपयोग में वणीमगा णावखति, लेकर छोड़ दिया है। जिसे कि अन्य बहुत से श्रमण-यावत् भिखारी भी लेना नहीं चाहते, तहप्पगारं पायं सयं वा गं जाएज्जा, परो वा से देज्जा, ऐसे पात्र की स्वयं याचना करे अथवा गृहस्थ दे तो प्रासुक फामुयं-जाव-पडिगाहेज्जा घनत्या पडिमा। जानकर-यावत्-ग्रहण करे। यह चौथी प्रतिमा है। इन्चेयासि चजण्हं पडिमाणं अण्णतरं पडिमं पष्टिवज्जमाणे इन चारों प्रतिमाओं में से किसी एक प्रतिमा को धारण -जाव-अण्णोष्ण समाहिए एवं च णं विहरति । करने वाला साधु-यावत् भी अपनी-अपनी समाधि के -बा. सु. २, अ. ६, उ. १, सु. ५६४-५६५ अनुसार विचरण करते हैं। १. ठाणं. . ४, उ. ३, सु. ३३१
SR No.090120
Book TitleCharananuyoga Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year
Total Pages571
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Conduct, Agam, Canon, H000, H010, & agam_related_other_literature
File Size18 MB
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