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सूत्र ५५७-५५६
१.मागमेसे करते बाहारं आहारेमाने अपारे ।
२.कृपाणये कमले आहार आहारेमाणे अवढ मोयरिया
२. कुक्कुममेकवले बाहार आहारेमाणे मागपत्तोमोयरिया ।
४. वो कुकुडिअडगप्यमाणमेत्ते कयले बाहारं आहारेमा भागपत्ते, असिया ओमोपरिया । ५. एक्कतीसं कुक्कुडिमंड गप्पमाणमेते कवले आहार आहारेमाणे किचूणोमोयरिया ।
प्यमाणमेते कसे आहार
६. आहारमार्ग पमाणपत्ते ।
७. एतो एगेण वि घासेणं कणयं बहारमाहारेमा समणे णिग्गंधे णो पकामभोइति यत्तथ्यं सिया । सेतं मत्तपाण- दध्योमोयरिया से तं दध्योमोयरिया । वि. स. २५, उ. ७, सु. २०४ २०६
खेत्त ओमोरिया
।
५५८. गामे नगरे तह रायहाणि, निगमे व आगरे पल्ली । डेढे कब्बड दोषमुह, पट्टण - मडम्ब संवाहे ॥ माम विहारे, सत्रिये समायो पलि सेवा खंधारे, वाडे व रच्छासु व कम्पs उ एवमाई
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पेडा य अपेडा, वागंतु
काल ओमोपरिया-
५५.
सत्ये संबद्ध-कोट्ट थ ॥ घरेलु वा एवमित्तियं तेषं । एवं खेतेण ऊ
भवे ॥
गोमुत्ति-पयंगवीहिया चेत्र । छडा ॥*
पकवागया
परिसी एवं चरमाणो ख
क्षेत्र भवमोरिका
- उत्स. अ. ३०, गा. १६-१३
जितियो भने कालो कालोमाणं मुणेयब्वो ||
१ (क) वि. स. ७, उ, १, सु. १९ २ (क) अ. अ. ६.४१४
तपाचार
(१) अपने मुख प्रमाण आठ कवल आहार करने से अल्पाहार कहा जाता है ।
( २ ) अपने मुख प्रमाण बारह कवल आहार करने से कुछ कम अर्ध अनोदरिका कही जाती है।
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(३) अपने
प्रमाण सोलह नमन आहार करने के द्विभाग प्राप्त अर्थ कणोदरी कही जाती है।
( ४ ) अपने मुख प्रमाण चौबीस कवल आहार करने से विभाग प्राप्त आहार और एक भाग अलीदरिका कही जाती है।
(५) अपने मुख प्रमाण एकतीस कवल आहार करने से किचित् मोरिका कही जाती है।
(६) अपने मुख प्रमाण वसीस कवल आहार करने से प्रमाण प्राप्त आहार कहा जाता है ।
(७) इससे एक ग्रास भी कम आहार करने वाला श्रमणनिकामभोगी नहीं कहा जा सकता है।
यह भक्तपान द्रव्य अवमोदरिका है। यह द्रव्य अनमो दरिका है।
क्षेत्र अवमोदरिका
५५८. ग्राम, नगर, राजधानी, निगम, आकर, पल्ली, खेड़ा, कर्बट, द्रोणमुख, पत्तन, मण्डप, संबाध,
आश्रम पद, विहार, सन्निवेश, समाज, घोष, स्थली, सेना का शिविर, सार्थ, संवर्त, कोट,
पाड़ा, गदियां अथवा घर आदि में "मुझे अमुक निर्धारित क्षेत्र में शिक्षा के लिए जाना कल्पता है।" ऐसी प्रतिज्ञा करने पर क्षेत्र से अमोद तप होता है।
( प्रकारान्तर से ) - ( १ ) पेटा, (४)
(३) गोमूत्रिका, (४) पतंग बीथिका, और (६) जाते या पुनः आते ।
(क) उ.सु. २०
(ग) वद. उ. ८ सु. १७ (ख) दसा. द. ७, सु. ६
इन छह प्रकार की प्रतिज्ञा से आहार ग्रहण करना भी क्षेत्र से अवसौदर्य उप है।
काल प्रथमोदरिका
(२) अर्ज पेटा, (५) शम्बूकावर्ता
५५९. दिवस के चार प्रहरों में जितना अभिग्रह - काल किया है, उसमें ही भिक्षा के लिए विवरण करने वाले मुनि के काल से अवमोदयं तप होता है ।