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________________ २६८] धरणानुयोग-२ भाष-अवमोवरिका सूत्र ५५६-५६२ अहवा तइयाए पोरिसीए, ना भासमेसत्रो । अथवा तीसरे पहर में ही चतुर्थ भाग आदि न्यून करके चउमाणाए वा, एवं कालेण ऊ भवे ।। शेष काल में जो भिक्षा की एषणा करता है, ऐसा करने पर भी -उस. अ. ३०, गा. २०-२१ काल से अवमौदर्य तप होता है। भाव ओभोयरिया भाव-अवमोदरिका५६०. इत्यो वा पुरिसो वा, अतंकिओवाऽणसकिओ वा वि। ५६०. स्त्री या पुरुष, अलंकृत या अनलंकृत, अमुक वय वाले या अन्नयरवयस्थो वा, अन्नवरेणं व वत्येणं ।। अमुक वस्थ वाले, अमुक वर्ण वाले या अमुक भाव वाले, इत्यादि बन्नेण बिसेसेणं, बाणेणं माबमणुमुयन्ते उ । किसी भी विशेषता से युक्त हो ऐसे दाता से भिक्षा ग्रहण करूँगा एवं घरमाणो खतु, भावोमाणं मुणेयथ्यो । अन्यथा नहीं इस प्रकार की प्रतिज्ञा से चर्या करने वाले मुनि -उत्त. अ. ३०, गा, २२-२३ के भाव से अवमोदयं तप होता है। ५०-से कि त भावोमोयरिया ? प्र.-भाव-अवमोदरिका क्या है? उ.-भावीयोयरिया अणेगविहा पणत्ता, तं जहा : 30--भाव-बबमोदरिका अनेक प्रकार की बतलाई गई है, यथा--- अप्पकोहे, अप्पमाणे, अप्पमाए, अप्पलोहे, अप्पस, क्रोध, मान, माया और लोभ की प्रवृत्ति कम करना, क्रोध अप्पझने, अप्पनुमंतुमे। से तं भावोमोयरिया। आदि के आवेश से होने वाली शब्द प्रवृत्ति को, कलहोत्पादक से तं ओमोयरिया ।-वि. स. २५, उ.७, सु. २०७ वचन को लथा तुमन्तुम की प्रवृत्ति को कम करना । मह भाव अवमोदरिका का स्वरूप है, यह अवमोदरिका है। पज्जव ओमोयरिया पर्यव अवमोदरिका५६१. बब्वे खेत्ते काले भावम्मि य, आहिया उजे मावा। ५६१. द्रव्य, क्षेत्र, काल और भाव ऊणोदरी में जो भाव कहे एएहि ओमचरो, पज्जषचरो भवे मिक्स् ॥ गए हैं, जो भिक्ष एक साथ इन पारों प्रकार की ऊणोदरी से -उत्त. अ. ३०, गा. २४ चर्या करता है उसके पर्यव अवमौवर्य तप होता है। YATRE भिक्षाचर्या-४ मिक्खायरियासहवं भिक्षाचर्या का स्वरूप५६२. अविहगोयरगं तु, तहा सत्तेव एसगा । ५६२. आठ प्रकार की भिक्षाचरी, सात प्रकार की पिढेषणा तथा अभिग्गहा य जे अन्ने, मिक्खायरियमाहिया ।। और भी जो अन्य अभिग्नह हैं, उन्हें भिक्षाचर्या तप कहा -उत्त. अ. ३०, गा. २५ जाता है । १ (क) उव. सू. ३० (ख) विवाहपाणती एवं उपवाई सूत्र में "गोदरी" तप के दो भेद हैं और उत्तराध्ययन में "ऊणोदरी" तप के संक्षेप में ५ भेद हैं, यद्यपि ५ की अपेक्षा दो संख्या अल्प है फिर भी विवाहपण्णत्ती एवं उबवाई सूत्र के दो भेदों में आहार, उपकरण और कपाय आदि से सभी प्रकार की ऊणोदरी का कथन है और उत्तराध्ययन में केवल आहार की अपेक्षा ही पांचों भेदों का विवेचन किया गया है । उपकरण और कषाय ऊणोदरी का कथन नहीं किया है। २ उत्त. अ. ३० गा. १९ में क्षेत्र अवमोदरिका में गोचरी के ६ प्रकार कहे हैं। दशा. द. ७, सु. ६ में प्रतिमाघारी भिक्ष के ६ प्रकार की गोचरी कही है । उसे ही यहाँ एक अपेक्षा से आठ प्रकार की भिक्षाचरी कहा है। संखावत के आभ्यंतर व बाह्य दो भेद करने से तथा गंतप्रत्यागता के 'जाते समय' और 'आते समय' यों दो भेद करने से ये गोचरी के आठ प्रकार होते हैं।
SR No.090120
Book TitleCharananuyoga Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year
Total Pages571
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Conduct, Agam, Canon, H000, H010, & agam_related_other_literature
File Size18 MB
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