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२६४ चरणानुयोग २
अणुपुश्येण आहार संहिता कसाए पर किया समाहिबच्चे फलाबी उठाव भिक्खू अभिनिष्युये।
अणातीते,
पादोपगमन अनशन प्रहण विधि
चेन्ना भित्र कार्य बियि विल्वस्ये पो अस्सिविभगवाए भैरवमचिन्ने,
तत्यादि तस्स कालपरियाए से वि सत्य वियंतिकारए,
असताना बाजार-हावा
अनशन का इच्छुक भिक्षु प्रवेश करके घास की वाचना करे,
तपाइ जाइत्ता सेत्तमायाए एवंतमवक्कमिज्जा एवंतभवक्क मिला अपना सडा-संतरण पडिले
ग्राम- यावत्- राजधानी में घास की याचना करके उसे एकान्त में बसा जाए, एकान्त स्थान में जाकर वण्डे पनि मजिय तथा संघरेजा, तथा संपला एवं बाड़ी के जाले रहित स्थान का भली भाँति प्रतिवि समए 'इतरियं' कुज्जा । लेखन तथा प्रमार्जन करके पास को विधाने पास बिठाकर वहाँ उचित अवसर देखकर इत्वरिक अनशन स्वीकार करे ।
वादी ओए कि आतीत
इच्चे विमोहाय तणं-हियं, सुहं, खमं, जिस्सेयसं आगुगामियं । आ. दु. १, अ, ६, सु. २२४
पाओवगमण अणसय गहण विही २५१ जना
विस्व एवं भवति
" से गिनामि च खलु अहं हमम्मि समए इनं सरीरगं अणुपुत्वेष परिवहित" से अनुपुख्ये आहार स
अणुपुय्येव आहार संघट्ट्टेसर बसाए पयए विमा यचे, फलगावयट्ठी, उट्ठाय भिक्खू अभिषिच्चें,
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अपविता
जाव रायहानि वा लगाई जाएवा -जात्र तणाई संयरेता एत्थ वि समए कार्य च जोगं च इरियं व पच्चक्ला एज्जा ।
सादिमोहाय हवं सुहं वर्म जिसे
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यसं आणुगामियं
क्रमशः बाहार को संक्षेप करते आत्मा को समाधि में स्थापित करे। पण्डभर के लिये उद्यत होकर
- आ. सु. १, अ. ६, उ.७, सु. २२८
सूत्र ५५०-५५२
हुए कषायों को कुश कर फलकचत् सहनशील बनकर शरीर के संताप से रहित बने ।
वह अनशन सत्य है । वह अनशन स्वीकार करने वाला सत्यवादी है । राग द्वेष रहित है, संसार-सागर को पार करने वाला है संशयों से मुक्त है। सर्वा कृतार्थ है, परिस्थितियों से अप्रभावित रहता है ।
वह शरीर को क्षणभंगुर जानकर विविध परीयों और उपसर्गों को सहन कर जिनवचन में श्रद्धा रखता हुआ अति कठिन रंगितमरण अनशन का अनुपालन करता है।
इस अनशन की आराधना से वह मृत्यु को प्राप्त करता है और उस मृत्यु से वह अन्तक्रिया करने वाला होता है ।
यह मोह से मुक्त कराने वाला अनशन भिक्षु को हिकर, सुखकर कर्मक्षय करने में समर्थ, कल्याणकारी और भवान्तर में (द) साथ चलने वाला होता है। पादपोपगमन अनसन ग्रहण विधि
२५१. जिस भिक्षु के मन में यह संकल्प होता है कि
''मैं इस समय इस शरीर को श्रमशः वहन करने में असमर्थ हो रहा हूं", तो वह भिक्षु क्रमश: आहार का संक्षेप करे ।
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महार को क्रमशः घटता हुआ कषायों को स्वल्प कर आत्मा को समाधि में स्थापित करे, फलकवत् सहनशील बनकर पण्डित मरण के लिए उद्यत होकर शरीर के सन्ताप से रहित बने ।
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अनशन का इच्छुक भिक्षु ग्राम- यावत्- राजधानी में प्रवेश करके घास को याचना करे यावत्- घास का बिछौना बिछाकर उसी समय शरीर शरीर की प्रवृति और गमनागमन आदि का प्रत्याख्यान करे ।
यह अनशन सत्य है— यावत् - यह मोह से मुक्त कराने जाता है । यह भिक्षु को हितकर, सुखकर, कर्मक्षय करने में समर्थ कल्याणकारी और भवान्तर में ( फलदायी ) साथ चलने वाला होता है।