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________________ सूत्र ५४६-५४७ पण्डिस मरण के प्रकार तपाचार [२६१ अह कालमि संपत्ते, आघायाय समुस्सयं । सकाम-मरणं मरइ, तिहमध्नयरं पुणी॥ --उत्त. अ.५, गा. ३१-३२ पंडिय मरणप्पगारा--- ५४७. प०-से कि तं वडियमरणे? उ.-पंडियमरणे दुधिहे पण्णते. तं जहा १. पाओवगमणे य, २. मत्तपञ्चवलागे य।' प०-से कि तं पाओवगमणे ? उ०-पाओवगमणे दुबिहे पणते, तं जहा १. नीहारिमे य, २. अनीहारिमे य, नियमा अप्पकिम्मे से तं पानोवगमणे । मुनि मरण-काल प्राप्त होने पर संलेखना के द्वारा शरीर का त्याग करता है, भक्त प्रत्याख्यान, इंगित मरण या पादोपगमन इन तीनों में से किसी एक को स्वीकार कर सकाम-मरण से मरता है। पण्डित मरण के प्रकार५४७.३०-पण्डित मरण क्या है? उ०—पण्डित मरण दो प्रकार का कहा गया है, यथा (१) पादोपगमन-वृक्ष की कटी हुई शाखा की तरह निश्चल रहना। (२) भक्त-प्रत्याख्यान ----यावज्जीवन तीन या चारों आहारों का स्वाग करना । प्र०-पादोपगमन (मरण) क्या है ? 3०-पादोपगमन दो प्रकार का कहा गया है, यथा(१) निहरिम-प्रामादि में किया जाने वाला, (२) अनिहारिम-जंगल गुफा आदि में किया जाने वाला। ये दोनों नियम से अप्रतिकर्म होते हैं। यह पादोपगमन का स्वरूप है। प्र०-भक्तप्रत्याख्यान (मरण) क्या है? उ.-भक्तप्रत्याख्यान मरण दो प्रकार का कहा गया है. यथा (१) निहारिम, (२) अनिरिम । ये दोनों नियम से सप्रतिकर्म होते हैं। यह भक्तप्रत्याख्यान का स्वरूप है। प्र.-पादोपगमन क्या है उसके कितने भेद हैं ? उ०-पादोषयमन दो प्रकार का कहा गया है, यथा(१) व्याघातिम-(उपद्रव के कारण किया जाने वाला) (२) मिाघातिम---(बिना उपद्रव के किया जाने वाला) ये दोनों नियम से अप्रतिकर्म होते हैं। यह पादोपगमन है। प्र...- भक्त प्रत्याख्यान क्या है ? उसके कितने भेद हैं ? ३०-भक्त प्रत्याख्यान दो प्रकार का कहा गया है, यथा-- १०---से कि तं भत्तपच्चक्खाणे? ज०-भत्तपच्चक्खाणे विहे पण्णते, त महा १. नीहारिमे य, २. अनीहारिमे य, नियमा सपनिकम्मे । सेभसपच्चक्खाणे।' -विया. स. २, उ. १, सु. २७-२६ १०-से कि तपाओगमणे ? उ० --पाओवगमणे दुविहे पण, त जहा १. वाघाइमे य, २. निध्याचाइमे य । नियमा अप्पडिकम्मे । सेतं पाओवगमणे । प०-से कि त भत्तपच्चक्खाले? उ०-भत्तपच्चफ्लाणे दुविहे पण्णसे, त जहा १ पण्डित मरण के ये दो प्रकार यावत्कथिक तप के ही दो भेद हैं। जिनका कथन भगवती सूत्र स. २५, उ. ७ तथा उबवाई सूत्र में इस प्रकार है(क) प.-से किं तं आवकहिए? उ.--आवकहिए दुविहे पण्णते, तं जहा (१) पागोवगमणे य, (२) मसपच्चक्त्राणे य । --बिया. स. २५, उ.७, सु.२०० (ख) उव. सु. ३० २ (क) विया. स. १३. उ. ७, सु. ४२-४४ (ख) विया. स. २५, उ. ७. सु. २०१-२०२ (म) ठाणं. अ. २, उ. ४, सु. ११३
SR No.090120
Book TitleCharananuyoga Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year
Total Pages571
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Conduct, Agam, Canon, H000, H010, & agam_related_other_literature
File Size18 MB
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