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________________ सूत्र ५४२-५४३ तपस्वी भिक्षु के कल्पनीय पानी समाचार [२५६ उ०-इत्तरिए अणेगविहे एण्णसे, तं जहा उ.-इत्वरिक तप अनेक प्रकार का कहा गया है, यथा१. चउत्थभत्ते, (१) चतुर्थ भक्त-उपवास, २. छटुभत्ते, (२) वष्ठभक्त-दो उपवास-बेला, ३. अद्रुमभत्ते (३) अष्टमक्त-तीन उपवास-तेला, ४. वसमते, (४) दशमभक्त-चार दिन के उपवास, ५. बुधाल , (५) द्वादशभक्त ---- पांच दिन के उपवास, ६. चउद्दसमते, (६) चतुर्दशभक्त-छह दिन के उपवास, ७. सोससमत्ते (७) षोडशमक्त-सात दिन के उपवास, ८. अबमासिएमत्ते, (5) मई मासिकमक्त-पन्द्रह दिन के उपवास, ६. मासिएभत्ते, (8) मासिक भक्त-एक महीने के उपवास, १०. दोमासिएभत्ते, (१०) मासिक भक्त -दो महीने के उपवास, ११. तेमासिएमसे, (११) त्रैमासिक भक्त-तीन महीने के उपवास, १२. चउमासिमले, (१२) चातुर्मासिक भक्त -चार महीने के उपवास, १३. पंचमासिएभत्ते, (१३) पंचमासिक मक्त---पांच महीने के उपवास, १४. छम्ममासिएमले, (१४) षण्मासिक भक्त-छह महीने के उपवास । से सं हत्तरिए। -उव. सु. ३० यह इत्वरिक तप है। ओ सो इत्तरिय तवो, सो समासेण छविहो । जो इत्वरिक तप है वह संक्षेप में छह प्रकार का हैसेठितवो पयरतयो, घणो य तह होर वग्यो य ।। (१) श्रेणि-तप, (२) प्रतर-तप, तत्तो य वावग्गो उ, पंचमो छ?ओ पदण्णतयो । (३) धन-तप, (४) वर्ग-तप मणहच्छिय वित्तत्यो, नायाब होइ इत्तरिओ ॥ (३) वर्ग-वर्ग-तप, (६) प्रकीर्ण-तप । -उस, अ. ३०, गा. १०-११ इस प्रकार अपनी इच्छानुसार किया जाने वाला अनेक प्रकार का यह इत्वरिक तप जानना चाहिये । सवस्सो भिक्खुस्स कप्पणिज्ज पाणगाई तपस्वी भिक्षु के कल्पनीय पानी५४३. घउत्पत्तियस्स गं भिक्खुस्स कप्पंति तो पाणगाई पशि- ५४३. चतुर्थ भक्त (एक उपवास) करने वाले भिक्षु को तीन गाहित्तए, तं जहा प्रकार के पानी ग्रहण करना कल्पता है, यथा१. उस्सेइमे, (१) उत्स्वेदिम- आटे का घोवन ।। २. संसेइमे, (२) संस्वेदिम–सिनामे हुए कर आदि का धोया हुआ पानी। ३. पालघोषणे। (३) तम्बुलोबक-चावलों का धोवन । छट्टपतियहस गं भिक्स्स कम्पति सओ पाणगाई पडिगा- षष्ठ भक्त (दो उपयास) करने वाले भिक्षु को तीन प्रकार हितए, तं जहा के पानी ग्रहण करना कल्पता है१.तिलोदए, (१) तिलोरक-तिलों का धोया हुआ जल । २. तुसोदए, (२) तुषोदक-तुष-भूसे का घोया हुआ जल । ३. जवोदए। (३) यवोवक-जी का धोया हुआ जल । १ वि. स. २५, ३.७, सु. १६६ २ भगवती सूत्र तथा उदवाई सूत्र में "इत्तरिम" तप के अनेक भेद है ऐना कहा गया है पर किसी विशेष संख्या का उल्लेख नहीं है । यहाँ उसराध्ययन' सूत्र में 'इत्तरिय" तप के भेदों की संख्या ६ बताकर आगे इस संकलन में अनेक प्रकार के होते हैं यह भी कहा गया है । अतः रत्नावली आदि तपों का उल्लेख इत्वरिक तप में ही समझना चाहिए। इन रत्नावली, कनकावली आदि महातपों के लिए धर्मकथानुयोग-स्कन्ध ३, सूत्र २६८ से २७६ तक पृ. ११७-१२० देखें ।
SR No.090120
Book TitleCharananuyoga Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year
Total Pages571
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Conduct, Agam, Canon, H000, H010, & agam_related_other_literature
File Size18 MB
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