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________________ सूत्र ५१४-५१६ नित्यक को देने लेने के प्रायश्चित्त सूत्र संघ-व्यवस्था [२४९ तं सेवमाणे आवज्जइ मासिय परिहारहाणं उग्धाइयं । उसे उद्वातिक मासिक परिहारस्थान (प्रायश्चित्त) -नि.उ. ४, सु. ३६-३७ बाता है । जे मिक्ल संसप्तस्क असणं चा-जाव-साइमं या बेह, उतं वा जो भिक्षु संसक्त को अशन-पावसु-स्वाद्य देता है, साइज्जई। दिलवाता है या देने वाले का अनुमोदन करता है। जे भिक्खू संसात्तस्स असणं वा-जाब-साइमं वा परिचछा, जो भिक्षु संसक्त से अशन-यावत्-स्वाद्य लेता है, लिवाता परिच्छत वा साइज्जई। है या लेने वाले का अनुमोदन करता है। तं सेवमाणे मावज्जइ चाउम्मासियं परिहारहाणं उघाइय। उसे उद्घातिक चातुर्मासिक परिहारस्थान (प्रायश्चित्त) -नि. उ, १५, सु. ८३-८४ आता है। जे भिक्खू संमत्तस्स वरथं वा, पडिागहंसा, कंवल था, जो भिक्षु संसक्त को बस्त्र, पात्र, कम्बल या पादोंछन पायछणं वा बेद, बेंतं वा साइजाइ । देता है, दिलवाता है या देने वाले का अनुमोदन करता है। जे भिक्बू संससस्स वत्यं वा, पडिग्गहं वा, कंबल का, पाय जो भिक्ष संसक्त का वस्त्र, पात्र, कम्बल या पादपोंछन लेता छणं वा, पढिन्छ, पडिच्छतं वा साइज्जइ । है, लिवाता है या लेने वाले का अनुमोदन करता है। तं सेवमाणे आवज्जद चाउम्मासियं परिहारदाण उग्घाइयं। उसे उद्घातिक चातुर्मासिक परिहारस्थान (प्रायश्चित्त) -नि. उ. १५, सु. ६७-६८ आता है। णितियस्स आयाण-पयाण करण पायसिछत्त सुत्ताई- नित्यक को देने-लेने के प्रायश्चित्त सूत्र५१६. जे भिक्खू नितियस्स संघाक्यं देह, देसवा साइजद। ५१६. जो मिक्ष नित्यक को संघाडा देता है, दिलवाता है या ने शले का अनुमोदन करता है। जे मिक्खू नितियस्स संघाडयं परिच्छइ, परिपछतं वा जो भिक्ष नित्यक से संघाडा लेता है, लिवाता है या लेने साइजइ। वाले का अनुमोदन करता है। सं सेवमाणे आवजह मासिवं परिहारट्राणं उग्धाइयं । उसे उद्घातिक मासिक परिहारस्थान (प्रायश्चिस) बाता है। -नि. उ. ४, सु. ३४.३५ जै भिक्ख णितियस्स असणं वा-जाब-साइमं वा देड, बेंतं वा जो भिक्ष नित्यक को अशन-यावत-स्वाध देता है. साइजजा। दिलवाता है या देने वाले का अनुमोदन करता है। जे मिक्स णितियस्स असणं वा-जाय साइमं या पडिच्छा, जो भिक्ष, नित्यक से अशन-यावत्-स्वाद्य लेता है, पडिन्छत वा साइज्जह। लिवाता है या लेने वाले का अनुमोदन करता है। त सेवमाणे आवाइ चाउम्मासिय परिहारद्वाणं उग्घाइयं । उसे उद्घातिक चातुर्मासिक परिहारस्थान (प्रायश्चित्त) -नि. उ. १५, सु. ८५-८६ आता है। जे मिक्खू णितियस्स वत्थं वा, पजिग्गहं वा, कंबलं वा, जो भिक्ष नित्यक को वस्त्र, पात्र, कम्बल या पादप्रोष्ठन पायपुंछणं वा बेइ, देत वा साइज्जइ । देता है, दिलवाता है या देने वाले का अनुमोदन करता है। जे भिक्खू मिलियस वत्यं वा, पडिग्गहं वा, कंबल वा, पाय- जो भिक्ष, नित्यक का वस्त्र, पात्र, कम्बल या पादपोंछन पुंछणं वा पडिन्छइ, पडिच्छतं वा साइज्जद ।' लेता है, लिवाता है या लेने वाले का अनुमोदन करता है। १ निशीथ उद्देशक १३ में पाश्र्वस्थ आदि ६ प्रकार के शिथिलाचारियों को वंदनादि करने के १८ प्रायश्चित्त सूत्र दर्शनाचार में लिये हैं। प्रस्तुत इस संब व्यवस्था प्रकरण में भी वे सूत्र प्रसंग संगत हैं अतः उन सूत्रों को यहाँ भी समझ लेना चाहिए। (शेष टिप्पण अगले पृष्ठ पर)
SR No.090120
Book TitleCharananuyoga Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year
Total Pages571
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Conduct, Agam, Canon, H000, H010, & agam_related_other_literature
File Size18 MB
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