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________________ २४८] घरगानुयोग-२ कुशील के साथ देन-सेन करने के प्रायश्चित सूत्र सूत्र ५१३-५१५ तं सेवमाणे आवज्जइ मासिवं परिहारहाणं उग्धाइयं । उसे उद्घातिक मासिक परिहारस्थान (प्रायश्चित्त) -नि. उ. ४, सु. ३०-३१ आता है। जे भिक्खू ओसण्णस्स असणं वा-जाव-साइम बा बैद, वेंतं वा जो भिक्ष अवसन को अशन-यावत्---स्थाद्य देता है। साइज्ज। दिलवाता है या देने वाले का अनुमोदन करता है। जे भिक्खू ओसण्णस्स असगं वा-जाव-साइम वा पडिन्छाइ जो भिक्षु अवसन से अशन-यावत् -स्वाद्य लेता है, पडिच्छत वा साइजइ । लिवाता है या लेने वाले का अनुमोदन करता है। त सेवमाणे भावज्जइ पालम्मासि परिहारहाण उघाइयं । उसे उद्घातिक चातुर्मासिक परिहारस्थान (प्रायश्चित्त) -नि. उ. १५, सु. ७६.८० आता है। जे भिक्खू ओसण्णस्स वत्थं था, एडिग्गहं वा, कंबलं वा, जो भिक्षु अवसन्न साधु को वस्त्र, पात्र, कम्बल या पादपायपुंछग वा, वेद, वेतं का साइजर। पोछन देता है, दिलवाता है या देने वाले का अनुमोदन करता है। जे भिक्खू ओसग्णस्स वत्यं वा, पडिगर या, कंबलं वा, जो भिक्षु अवमन्न साधु के वस्त्र, पान, कम्बल या पादनोंछन पायपुंछणं वा पहिच्छा, पडिळतं वा साइज्जद। लेता है, लिवाता है या लेने वाले का अनुमोदन करता है। तं सेवमाणे आषजइ चाउम्मासियं परिहारहाणं उग्घायं। उसे चातुर्मासिक उद्घातिक परिहारस्थान (प्रायश्चित्त) -नि. उ.१५, सु. ६१-६२ आता है। कुसोलस्स आयाण-पयाण करण पायच्छित्त सुत्ताई-.- कूशील के साथ देन-लेन करने के प्रायश्चित्त सूत्र५१४. जे भिक्खू कुसीलस्स संघाऽयं वेद देतं का साइज्जइ । ५.१४, जो भिक्षु कुशीन को संघाड़ा देता है, दिलवाता है या देने वाले का अनुमोदन करता है। जे भिक्खू कुसीलस्स संघाजयं परिच्छद्र परिच्छतं वा जो भिक्ष कुशील से संघाडा लेता है, लिवाता है या लेने वाले साइज्जई। का अनुमोदन करता है। तं सेवमाणे आवज्जद मासियं परिहारदाणं जग्घाइयं। उसे उद्घातिक मासिकः परिहारस्थान (प्रायश्चित्त) -नि.उ.४, सु.३२-३३ आता है। जे भिक्खू कुसीलस्स असणं वा-जाव-साइमं का देह, उत वा जो भिक्षु कुशील को अशन-यावत्-स्वाद्य देता है, साइब्जा। दिलवाता है या देने वाले का अनुमोदन करता है। जे भिक्खू कुसीलस्स असणं वा-जाव-साइम वा पडिच्छइ, जो भिक्षु कुशील से अशन-यावत् - स्वाध लेता है, पहिचछतं वा साइजह । लिवाता है या लेने वाले का अनुमोदन करता है। त सेवमाणं आवज्जद चाउम्मासियं परिहारट्टाणं घाइयं । उसे उद्वातिक चातुर्मासिक परिहारस्थान (प्रायश्चित्त) -नि. उ. १५, सु. ८१.८२ आता है। जे भिक्खू कुसीलस्स बत्वं वा, पडिग्गह वा, कंबल वा पाय- जो भिक्षु कुशील साधु को वस्त्र, पात्र, कम्बल या पादपोंछन पुंछणं देइ , वेतं वा साइज्जइ । देता है, दिलवाता है या देने वाले का अनुमोदन करता है। जे मिक्लू कुसौलस्स वत्थं वा, पडिगहं वा, कंबस वा पाय- जो भिक्षु कुशील साधु का वस्त्र, पाव, कम्बल या पादपोंछन पुंछणं वा परिच्छा, परिच्छत वा साइडइ । लेता है, लिवाता है या लेने बाजे का अनुमोदन करता है। त सेवमाणे आवज्जइ चाउम्मासियं परिहारट्ठाग उग्याइये। उसे उद्घातिक चातुर्मासिक परिहारस्थान (प्रायश्चित्त) -नि. उ. १५, सु. ६३-६४ आता है। संसत्तस्स आयाण-पयाण करण पायच्छिस मुत्ताई- संसक्त के साथ देन-लेन करने के प्रायश्चित्त सूत्र५१५: जे मिक्खू संसप्तास संघाग्य ३६, बेत वा माइन। ५१५. ने भिक्षु संसक्त को संघाडा देता है, दिलवाता है या देने वाले का अनुमोदन करता है। जे भिक्खू संसप्तस्स संघाडय पछि , परिच्छतं वा जो भिक्षु संसक्त से संघाडा लेता है, लिवाता है या लेने वाले साइज्जह। का अनुमोदन करता है।
SR No.090120
Book TitleCharananuyoga Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year
Total Pages571
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Conduct, Agam, Canon, H000, H010, & agam_related_other_literature
File Size18 MB
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