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________________ सूत्र ५११-५१३ पारिहारिक के साथ मिक्षापं जाने का प्रायश्चित्त सूत्र संघ-व्यवस्था [२४७ पार्श्वस्थ आदि के साथ व्यवहार व्यवस्था-१३ पारिहारिएण सह भिक्खट्टा गमण पायच्छित सुत्तं- पारिहारिक के साथ भिक्षार्थ जाने का प्रायश्चित्त सूत्र५११. जे भिक्खू अपरिहारिएणं' परिहारियं व्या ५११. जो अपरिहारिक भिक्षु पारिहारिक भिक्षु को कहे किएहि अम्जो! तुम च अहं च एगो असणं वा-जाव-साइमं "हे बायें चलो ! तुम और मैं एक साय अशन-यावत् - वा पहिगाहेसा तो पच्छ। पत्तेयं-पत्तेयं मोक्खामो वा स्वाद्य लेकर आयें, उसके बाद अलग-अलग खायेंगे पीयेंगे", जो पाहामो वा बेतं एवं बंटर नवतं वा साइजह । ऐसा कहता है, कहलवाता है या कहने वाले का अनुमोदन करता है। तं सेवमाणे बावज्जद मासिय परिहारद्वाणं उधाइये। उसे उघातिक मासिक परिहारस्थान (प्रायधिवत्स) आता है। -नि.उ ४, सु. ११२ पासत्थस्स आयाण-पयाण करण पायच्छित्त सुत्ताई - पाश्वस्थ के साथ देव-लेन करने के प्रायश्चित्त सूत्र५१२. जे भिक्खू पासत्थस्स संघाडयं देव देत वा साइज्जा । ५१२. जो भिक्षु पार्श्वस्य को संवाहा (साधु) देता है, दिलवाता है या देने वाले का अनुमोदन करता है। जे भिक्खू पासस्थस्स संघाडयं पडिपछड पडिच्छतं वा जो भिक्षु पापवस्थ से संवाडा लेता है, लिवाता है या लेने साहजह। वाले का अनुमोदन करता है। तं सेवमाणे आवस्जद मासियं परिहारट्ठाणं उग्धाइयं । उसे उद्घातिक मासिक परिहारस्थान (प्रायश्चित्त) --नि. उ. ४, सु. २८-२९ भाता है। जे भिक्खू पासस्थस्स असणं वा-जाब-साइमं वा वेह देंतं वा जो भिक्षु पार्यस्थ को अगन-पावत्-स्वाद्य देता है, साइम्जड़। दिलवाता है या देने वाले का अनुमोदन करता है। जे मिक्खू पासत्थस्स असणं वा-जाब-साइमं वा पडिच्छा जो भिक्षु पार्श्वस्थ से अशन-यावत्-स्वाध लेता है, परिच्छतं वा साइज्जन । लिवाता है या लेने वाले का अनुमोदन करता है। सेवमाणे आवज घाउम्मासियं परिहारट्टाणं उग्घाइयं । उसे उद्घातिक चातुर्मासिक परिहारस्थान (प्रायश्चित्त -नि. उ. १५. सु. ७७-७८ आता है। जे भिक्खू पासवास वत्थं वा, पडिग्गहं वा, कंवल वा पाय- जो भिक्षु पार्श्वस्थ को वस्त्र, पात्र, कंबल या पादपोंछन पंछग वा, वेइ देतं वा साइजह । देता है, दिलवाता है या देने वाले का अनुमोदन करता है। जे भिक्खू पासत्वस्स वरयं वा, पढिगहं वा, कंबलं बा, जो भिक्षु पार्श्वस्थ का वस्त्र, पात्र, कंबल या पादोंछन पायछण वा पडिमछाड पच्छित वा साहज्जद। लेता है, लिवाता है या लेने वाले का अनुमोदन करता है। तं सेवमाणे आवज्जइ चाउम्मासियं एरिहारटुाणं उग्धाइय। उसे उघातिक चातुर्मासिक परिहारस्थान (प्रायश्चित्त) -नि. उ. १५, सु. ६६-६ आता है। ओसण्णरस आयाग-पयाण करण पायच्छित्त सुत्ताई- अबसन्न के साथ देन-लेन करने के प्रायश्चित्त सूत्र५१३. जे भिक्खू ओसणस्स संघाजयं देह, उत वा साइजह । ५१३. जो भिक्षु अबसन्न को संघाडा देता है, दिलवाता है या देने वाले का अनुमोदन करता है। जे भिक्खू ओसम्णस्स संघाज्यं परिपछइ, परिच्छंत था जो भिक्ष अबसन्न से संघाठा लेता है, लिवाता है या लेने साइज्जत। वाले का अनुमोदन करता है। १. पारिहारिक-महाव्रतों के या समिति-गुप्ति आदि के अतिचारों का पूर्ण नरिहार करने वाला पारिहारिक कहलाता है। अथवा परिहार तप रूप प्रायश्चित वहन करने वाला भी पारिहारिक कहलाता है। अपारिहारिक-महायतों के या समिति गुप्ति आदि के अतिचारों का पूर्ण परिहार नहीं करने वाला अपारिहारिक कहलाता है अथवा परिहार तप रूप प्रायश्चिस को वहन न करने वाला अपारिहारिक कहलाता है।
SR No.090120
Book TitleCharananuyoga Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year
Total Pages571
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Conduct, Agam, Canon, H000, H010, & agam_related_other_literature
File Size18 MB
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