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________________ २३८) चरणानुयोग-२ भूत पहण करने के लिये अन्य गग में जाने का विधि-निषेध सूत्र ४६८ करना न सुय गहणट्ठा अण्ण-गण गमण विहि-णिसेहो श्रत ग्रहण के लिये अन्य गण में जाने का विधि-निषेध-- ४६८, मिक्ल व गणाओ अवश्काम इच्छेज्जा अन्नं गण उवसंप. ४६८, यदि कोई भिक्षु स्वगण को छोड़कर अन्यगण को श्रुत ज्जित्ता गं विहरिसए, नो से कप्पह अणापुच्छिता-- ग्रहण के लिए स्वीकार करना चाहे तो उसे -- १. आयरियं वा. २. उवज्शाय वा, ३. पक्षप्तय वा, (१) आचार्य, (२) उपाध्याय, (३) प्रवर्तक, ४. पेरं वा. ५. गणि वा, ६. गणहर वा, (४) स्थविर, (२) गणी, (६) गणधर या ७. गणाधकछेइयं वा अन्नं गणं उनसंपन्जिता ग विहरितए। (७) गणावच्छेदक को पूछे बिना अन्य गण को स्वीकार करना नहीं कल्पता है। कप्पद से आपुग्छिता आयरियं वा-जाव-गणावच्छेदयं वा किन्तु आचार्ययावत्-गणावच्छेदक को पूछकर अन्य अन्नं गगं उपसंपज्जित्ता गं बिहरिसए । गण स्वीकार करना कल्पता है। ते य से विपरेग्जा, एवं से कम्पद अन्नं गणं उपसंपजित्ता यदि वे आज्ञा दें तो अन्य गण को स्वीकार करना ण बिहरितए। कल्पता है। ते य से नो वियरेज्जा, एवं से नो कप्पड अन्नं गण उपसंय- यदि वे आज्ञा न दें तो अन्य गण को स्वीकार करना नहीं जिसा विहरितए। कल्पता है। गणावच्छेया वगणाओ का लग्नं गण यदि गणावच्छेदक स्वगण को छोड़कर श्रुत ग्रहण के लिये उपसंपरिजना विहरिसए अन्य गण को स्वीकार करना चाहे तोनो से कप्पद गणावच्छेायत्त अनिक्खिवित्ता अन्नं गणं - उसे अपने पद का त्याग किए बिना अन्य गण को स्वीकार संपज्जिता गं विहरितए। करना नहीं कल्पता है। कप्पा से गगावच्छेइयत्त निषितवित्ता अन्न उपसंपग्जिताउरो अपने पद का त्याग करके अन्य गण को स्वीकार करना णं विहरिसए । कल्पता है। नो से कप्पा अगापुरिछसा आयरियं वा-जाव-गणावपछइयं आचार्य यावत्-गणावच्छेदक को पूछे बिना उसे अन्य वा अन्नं गगं उपसंपञ्जित्ता विहरित्तए । गण को स्वीकार करना नहीं कस्पता है। कप्पद से आपुच्छित्ता आयरियं वा-जाव-पणावच्छेहयं वा किन्तु आचार्य-यावत् -गणावच्छेदक को पूछकर अन्य अन्नं गगं उवसंपरिजसा विहरिप्तए । गण को स्वीकार करना कल्पता है। ते य से वियरेजा, एवं से कप्पाइ अन्न गणं उपसंपज्जिता यदि वे धाज्ञा दें तो उसे अन्य गण को स्वीकार करना विहरिसए। कल्पता है। ते य से नो वियरेक्जा एवं से नो कापड अन्नं गणं उपसंप- यदि वे आज्ञा न दें तो उसे अन्य गण को स्वीकार करना ग्जिसा विहरित्तए। नहीं वल्पता है। आयरिय-उवज्झाए म गणाओ अवक्कम्म इन्छेज्जा मन्नं गणं आचार्य या उपाध्याय यदि स्व गण को छोड़कर अन्य गण उपसंपग्जिता मं विहरितए को श्रुत ग्रहण के लिये स्वीकार करना चाहे तोनो से कप्पा आधरिय-उवमायत्तं अनिक्लिवित्ता अन्नं गणं उन्हें अपने पद का त्याग किये बिना अन्य गण को स्वीकार उपसंपज्जित्ता विहरितए। करना नहीं कल्पता है। कप्पड से आयरिय-उवमायतं निक्खिवित्ता अन्नं गणं उय- अपने पद का त्याग करके अन्य गण को स्वीकार करना संपश्जिता गं विहरितए । कल्पता है। मो से कम्पद अणापुच्छिता आयरियं वा-जाव-गणावच्छेदयं आचार्य-यावत्-गणादच्छेदक को पूछे बिना उन्हें अन्य वा अन्नं गण उपसंपज्जित्ता णं विहरितए । मण को स्वीकार करना मही कल्पता है। कप्पह से आपुच्छित्ता आयरियं वा-जाक्-गणावच्छेइयं वा किन्तु आचार्य-यावत्-गणावच्छेदक को पूछकर अन्य अन्म गण उपसंपज्जित्ता ण विहरित्तए। गण को स्वीकार करना कल्पता है। ते प से वियरेज्ना, एवं से कप्पड अन्नं गणं उपसंपजिसा यदि वे आज्ञा दे तो उन्हें अन्य गण को स्वीकार करना पं विहरित्तए। करपता है।
SR No.090120
Book TitleCharananuyoga Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year
Total Pages571
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Conduct, Agam, Canon, H000, H010, & agam_related_other_literature
File Size18 MB
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