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सूत्र ४६६
भिक्वणा गणपरिचाओ
४२६.
गणावश्रुमणे दम तं जहा १. सव्यधम्मा रोमि ।
२. एगइया रोएम, एगइया णो रोमि ।
३. धम्मा वितिच्छिामि ।
४. एक्या वितिगिच्छामि, एगइया नो वितिमिच्छामि ।
५. सध्वधम्मा कुहुगामि ।
६. एम एपमा यो मानि
७. इच्छामि णं मंते ! एगल्लविहारपडिमं उपसंपत्ति विहरिए । - ठा. अ. ७ . २४१ आयरिय वज्रएहि गणपरिचाओ४६७. पंचहानेह अपरिय-उवमायस्स गप्पावक्कमये पण्णसे, तं जहा
१. परियार गत आणं वा धारणं वा सम्भ परंजिला भवति ।
२. रिसाए व अधाराभिवाद कितिक बेजयं णो सम्मं परंजिला भवति ।
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गणापक्रमण - ११
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३. आयरिया गसिके जाते धारेति ते काले गो सम्ममणवादेता भवति ।
४. आयरियाए पति सगनियाए वा परनियाए माग्मिी महिलेले प्रयति ।
द्वारा गण-परिस्थाग
५. मिले नामिका से गणाओं अवकमेवाि या गणावकमणे पणते ।
संघ व्यवस्था
भिक्षु द्वारा गणपरित्याग
४६६, सात प्रकार का गणपरित्याग कहा गया है, यथा
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हूँ) इस गण में ऐसा योग्य पात्र परित्याग करना चाहता हूँ ।)
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(१) सर्व श्रुत चारित्र धर्मों के पालन की रुचि रखना है (इल गण में सम्भव नहीं है अतः इन का परित्याग करता हूँ ।) (२) इस गण के कुछ श्रुत चारित्र धर्मो के पालन में रुचि रखता हूँ और कुछ के पालन में रुचि नहीं रखता हूँ ( अत: इस
गण का परित्याग करता हूँ)
(३) इस गण के सभी श्रुत चारित्र धर्मों के पालन में संशय रखता हूँ ( अतः इस गण का परित्याग करता हूँ)
(४) इस गण के कुछ श्रुत वारित्र धर्मो के पालन में संशय रखता हूं और कुछ के पालन में संशय नहीं रखता हूँ ( अतः इस गण का परित्याग करता हूँ)
(५) सभी श्रुत चारित्र धर्म (योग्य पात्र को देना चाहता कोई नहीं है अतः इस गण का
(६) कुछ श्रुत चारित्र धर्म योग्य पात्र को देना चाहता हूँ और कुछ नहीं देना चाहता हूँ (इस गण में ऐसा कोई योग्य पात्र नहीं है अतः इस गण का परित्याग करना चाहता हूँ)
(७) भन्ते ! मैं एकल विहार पडिमा स्वीकार करना चाहता है अतः इस बग का परित्याग करता हूँ) आचार्य उपाध्याय द्वारा गणपरित्याग-४६७. पाँच कारणों से आचार्य - उपाध्याय का गण परित्याग कहा गया है
(१) गण में आचार्य या उपाध्याय की आज्ञा या धारणा का पूर्ण पाजन न होता हो तो वे गण का परित्याग करते हैं ।
(२) मण में दीक्षा पर्याय के क्रम से विनय तथा वन्दन व्यवहार न होता हो तो आचार्य या उपाध्याय गण का परित्याग कर देते हैं ।
(३) गण में जितने श्रुतधर हैं वे समय-समय पर ( शिष्य समुदाय को ) आगम वाचना न देते हों तो आचार्य या उपाध्याय गण का परित्याग कर देते हैं ।
(४) गण में स्वगण या परगण को निर्ग्रन्थी में आसक्ति रखने वाला कोई हो तो आचार्य या उपाध्याय गण का परिश्याग कर देते हैं ।
(५) आचार्य वा उपाध्याय के मित्र या स्वजन गण का परित्याग कर दें तो वे उन्हें गण में लाने के लिए या उन पर - ठाणं. म. ५, उ. २, सु. ४३९ उपकार करने के लिए गण का परित्याग करते हैं ।