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घरगानुयोग-२
गहस्थ से उपधि वहन कराने के प्रायश्चित्त मूत्र
सूत्र ४६२-४६५
जे भिक्खू आगंतारेसु वा-जाव-परियावसहेसु वा अण्णउत्यि- जो भिक्षु धर्मशालाओं में यावत्-आथमों में, अन्यतीर्थिक एहि वा गारत्यिएहि बा असणं वा-जाक-साइमं वा अभिहर या गृहस्थों के द्वारा अशन -. यावत्- स्वाद्य सागने कर देते आहट्ट विज्जमाणं पडिसेहेत्ता तमेव अणुवत्तिय अगुवत्तिय हुए का निषेध करके पुन: उसी के पीछे-पीछे जाकर-यावत्-जाव-ओभासिय ओमासिय जायइ, जायंतं वा सायुज्जह।। मांग-मांग कर याचना करना है, करवाता है या करने वाले का
अनुमोदन करता है। जे भिक्यू आतारेसु वा-जाब-परियावसहेसु वा अण्णस्थि- जो भिक्षु धर्मशालाओं में-- यावत् - आश्रमों में अन्यतीथिक जीए वा गारस्थिणीए वा असणं वा-जाव-साइमं वा अभिहर या गृहस्थ स्थी के द्वारा अशन -- यावत्-स्वाद्य सामने लाकर आहट्ट दिज्जमागं घडिसेहेत्ता तमेव अणुवत्तिय अणुवतिय देते हुए का निषेध करके पुनः उसी के पीछे-पीछे जाकर -जाद-ओभासिय ओमासिय जायइ जायत वा साहजड। -याव! - मांग-मांग कर याचना करता है; करवाता है या
करने वाले का अनुमोदन करता है। जे भिक्खू आगंतारेसु वा-जाव परियावसहेसु वा अग्णस्थि- जो भिक्षु धर्मशालाओं में-यावत् - आश्रमों में अन्यतीथिक मीहि वा गारत्षिणीहि वा असणं वा-जाव-साइम वा अभिया गृहस्थ स्त्री के द्वारा अशन यावत्-स्वाद्य सामने लाकर हवं आह? विज्जमागं पडिसेहेता तमेष अणुवत्तिय-अणु- देते हुए का निषेध करके पुन: उसी के पीछे-पीछे जाकर बत्तिय-जाब-ओमासिय-ओभासिय जाया जायतं वा साइजह। ---यावत्-मांग-मांग कर याचना करता है, करवाता है या
करने वाले का अनुमोदन करता है। तं सेवमाणे आधज्जा मासियं परिहारवाणं उग्धाहयं । उसे उद्घातिक मासिक परिहारस्थान (प्रायश्चित्त) आता है।
-नि. उ. ३, सु. १-१२ भारथिएहि उहि बहावण पायच्छित्त सुत्ताई- गृहस्थ से उपधि वहन कराने के प्रायश्चित्त सूत्र४६३.जे भिक्षू अन्नउत्थिएण वा गारस्थिएण वा उहि वहावे, ४६३. जो भिक्षु अन्यतीथिक या गृहस्थ से उपधि बहन करवाता वहावेत वा साहस
है, या करवाने वाले का अनुमोदन करता है। जे भिक्खू तग्णीसाए असणं वा-जाथ-साइमं वा वेड देतं वा जो भिक्षु अन्यतोथिक या गृहस्थ को उपधि वहन कराने के साइज्जा।
बदले में अशन पावत्-स्त्राद्य देता है, दिलवाता है या देने
वाले का अनुमोदन करता है। त सेवमागे मावज्जइ चाजम्मासियं परिहारट्ठागं उग्धाइयं । उसे उद्घातिक चातुर्मासिक परिहारस्थान (प्रायश्चित)
-नि. उ. १२, सु. ४०-४१ आता है। गारस्थिया आहार दाण पायच्छित्त सुत्तं
गृहस्थ को आहार देने का प्रायश्चित्त सूत्र४६४. जे मिक्खू अण्णउस्थियस्स वा, मारस्थियस्स या असणं वा ४६४. जो भिक्षु अन्यतीथिक या गृहस्थ को अशन - यावत् - -जाव-साइमं वा बेहतं का साइज्जइ।
स्वाद्य देता है, दिलवाता है या देने वाले का अनुमोदन करता है। त सेवमाणे आवजह चाउम्भासियं परिहारट्टाणं उग्याइयं। उसे सद्घातिक रातुर्मासिक परिहारस्यान (प्रायश्चित्त)
-नि.उ.१५, सु.७५ आता है। गारस्यिय सद्धि आहार करण पायच्छित्त सुत्ताई- गृहस्थों के साथ आहार करने के प्रायश्चित्त सुत्र४६५. भिक्खू अण्णस्थिहि वा भारत्तिएहि वा सदि मुंजइ ४६५. जो भिक्षु अन्यतीथिकों या गृहस्थों के साथ (समीप में मुंजंतं वा साइज्जड़।
बैठकर) आहार करता है, करवाता है या करने वाले का भनु
मोदन करता है। जे भिक्खू अण्णउथिएहि वा गारथिएहि वा आवेदिय-परि- जो भिक्षु अन्यतीथिकों या गृहस्थों से घिरखर (कुछ दूर वेलिय मुंजइ भुंजत वा साइज्जा ।
बैठे या खड़े हों तो) आहार करता है, करवाता है या करने वाले
का अनुमोदन करता है। तं सेवमाणे आवाज चाउम्मासियं परिहारद्वाणं घायं। उसे उद्घातिक चातुर्मासिक परिहारस्थान (प्रायश्चित्त)
-नि.उ. १६, सु. ३७-३८ आता है।