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घरणानुयोग-२
निन्थि-निग्रंथियों के विहार करने का विधि-निषेध
सूत्र ४६७-७१
उत्तरेणं-जाव-कुणालाविसयाओ एतए
उत्तर दिशा में कुणाल देश तक विधरना कल्पता है। एतावताय कप्वाद,
इतना ही विचरना कल्पता है। एतावताव आरिए खेत्ते,
इतना ही आर्य क्षेत्र है। नो से कप्पड़ एतो बाहि,
इससे बाहर विचरना नहीं कल्पता है । तेणं परं जरथ नाण-वंसक-चरिताई उस्सप्पन्ति
इस के उपरान्त भी जहाँ ज्ञान, दर्शन एवं चारित्र अर्थात
-कप्प. उ. १, सु. ३१ संयम की उन्नति हो वहां विचरना कल्पता है। णिगंथ-णिग्गंथोणं बिहार करण विहि-णिसेहो
निग्रन्थ-निम्रन्थियों के विहार करने का विधि-निषेध४६८. नो कप्पा निग्गंधाण वा, निगयीण वा, वासावासासु ४६८. निर्ग्रन्थ और निम्रन्थियों को वर्षावास में विहार करना चारए।
नहीं कल्पता है। कप्पइ निग्गंयाण वा, निग्गयीण वा हेमन्म-गिम्हासु चारए। निर्घन्य और निर्गन्थियों को हेमन्न और ग्रीष्म ऋतु में
-कण. उ. १, सु. ३७-३८ विहार करना कल्पला है। विकिद्रिय खेत्ते गमण विहि-णिसंही
विराट मेल में जाने का विधि-निषेध ४६६. नो कप्पद निग्गंधोणं विइकिट्टियं विसंवा अणुदिसं वा उद्दि- ४६६. निग्रन्थियों को दूरस्प या अति दुरस्थ बिकट क्षेत्र की सित्तए वा धारेसए था।
और स्वयं जाना या अन्य को अनुज्ञा देना नहीं फल्पना है। फप्पड निम्नथागं विइकिट्ठियं दिसं वा अणुविसं वा उद्दिसित्तए किन्नु निम्रन्थ को दूरस्थ या अति दूरस्थ विकट क्षेत्र की दा धारेत्तए वा।
-बब. उ.७, सु.१०-११ ओर स्वयं जाना या अन्य को जाने के लिए अनुज्ञा देना
कल्पता है। राइए बाहि गमणस्स विहि-णिसेहो
रात्रि में उपाश्रय से बाहर जाने का विधि-निषेध - ४७०. नो कप्पइ निगंथस्स एमाणियस्स राओ वा वियाले वा ४७७. अकेले निर्ग्रन्थ को रात्रि में या विकाल में शौच के लिए
अहिया वियारभूमि या विहारभूमि वा निक्वमित्तए वा पवि. या स्वाध्याय के लिए उपाश्रय से बाहर जाना-आना नहीं सिसए था।
__कल्पता है। कप्पर से अप्पखिइयरस वा, अप्पसइयस्स वा, र.ओ वा किन्तु उसे एक या दो निग्रंथों को साथ लेकर रात्रि में या वियाले वा, बहिया बियारभूमि वा बिहारभूमि का निक्ख- विकाल में शौच के लिए या स्वाध्याय के लिए उपाश्रय से बाहर मित्तए वा पश्विसित्तए वा।
जाना-आना कल्पता है। नो कप्पद निग्गयोए एगाणियाए रामो वा वियाले वा, अकेली निर्ग्रन्थी को रात्रि में या विकाल में शौच के लिए बहिया बियारभूमि वा विहारभूमि षा निक्खमित्तए वा या स्वाध्याय के लिए उपाश्रय से बाहर जाना-आना नहीं पविसित्तए वा।
कल्पता है। कप्पई से अप्पविदयाए वा, अप्पतइयाए वा, अप्पचउत्पीए एक दो या तीन निर्ग्रन्थियों को साथ लेकर रात्रि में या वा राओ वा चियाले, वा बहिया विधारभूमि षा, विहार- विकाल में शौच के लिए पा स्वाध्याय के लिए उपाश्रय से बाहर भूमि वा निक्षमित्तए वा पविसित्तए वा।
जाना-आना कल्पता है ।
-कप्प. उ. १.सु. ४-५१ णिग्गंथ-णिग्गंथोणं सहविहार पायच्छित्त सुतं- निन्थ-निन्थी के साथ विहार करने का प्रायश्चित्त
४७१. जे भित्र समणिचियाए वा, परगणिचियाए वा, जिग- ४७१. जो भिक्षु स्वगण की या अन्य गण की साध्वी के साथ
थीए सदि गामाशुगाम इन्जमागे पुरसओ मच्छमागे, पिठुलो आगे या पीछे प्रामानुग्राम बिहार करते हुए संकल्प विकल्प करता रोयमाणे, ओहयमणसंकप्ये चिता-सोयसागरसंपविट्ठ, कर- है, चिंतातुर रहता है, शोक सागर में डूबा हुआ रहता है, हथेली पलपल्हत्यमुहे, अट्ठमाणोवगए, विहारं था करेइ-जाव- पर मह रखकर आर्त ध्यान करता रहता है यावत्-साधु असमणपाउग्गं फहं कहेइ, कहेंतं वा साइज्जइ ।
के न कहने योग्य काम कथा कहता है या कहने वाले का मनुमोदन करता है।