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सूत्र ४७१-४७४
अन्तःपुर में प्रवेश के कारण
संघ-व्यवस्था
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तं सेवमाण आवजइ घाउम्मासि परिहारट्ठाणं अणुग्याइयं । उसे चातुर्मासिक उपातिक परिवारस्थान (प्रायश्चित्त)
-नि. उ. ८, सु. ११ आता है। अंतेजर पवेसे कारणाई
अन्तःपुर में प्रवेश के कारण४७२. पंहिं ठाणे हि समणे णिग्गंथे रायतेउरमणुपविसमाणे गाइ- ४७२. पाँच कारणों से श्रमण निर्ग्रन्थ राजा के अन्तःपुर में प्रवेश क्कमति, तं जहा
करता हुआ जिनाज्ञा का अतिक्रमण नहीं करता है। जैसे१. गगरे सिया सम्वतो समता गुत्ते, गुत्तदुवारे, बहवे समण (१) यदि नगर सब ओर से घिरा हो, उसके द्वार बन्द हो. भारणा को संचाएंति भत्ताए वा पाणाए पा जिक्खमित्तए बहुत से श्रमण माहण भक्त-पान के लिए नगर से बाहर न निकल वा पविसित्तए वा तेसि विष्णवणटुयाए रायंतेउरमणुपवि- सकें या न प्रवेश कर सके, तब उनका प्रयोजन बतलाने के लिए सेज्जा ।
राजा के अन्तःपुर में प्रवेश कर सकता है। २. पाम्हिारियं वा पीत-फलग-सेम्जा-संधारग पञ्चप्पिणमाग (२) प्रातिहारिक पीठ, फलक, शय्या संस्तारक को वापिस रायंसेजरमणपलिज्त्रा ।
देने के लिए राजा के अन्तःपुर में प्रवेश कर सकता है। ३. यस्स श गयस्स वा दुट्ठस्स आगच्छमाणस्स भीते (३) दुष्ट बोड़ें या हाथी के सामने आने पर भयभीत साधु रायंतेउरमपविसेजजा।
रक्षा के लिए राजा के अन्तःपुर में प्रवेश कर सकता है। ४. परो वा गं सहसा वा, बलसा वा, बाहाए गहाप-रायते- (४) कोई अन्य व्यक्ति सहसा या बलपूर्वक पकड़कर ले जाए उरमणुपविसेमा।
तो राजा के अन्तःपुर में प्रवेश कर सकता है। ५. बहिया वा गं आरामययं वा, उज्जाणगय वा रायतेउर- (५) कोई साधु बाहर पुष्पोद्यान या वृक्षोद्यान में ठहरा हो जणो सम्वतो समंता संपरिक्तित्ता नं संणिवेसिज्जा। कौर यहाँ राजा का अन्तःपुर (राजा की रानियाँ) ना जावे तथा
सर्व ओर से घेर कर बैठ जाये तो वहाँ बैठ सकता है। चेतेहि पाहि ठाणेहि समणे जिग्गंथे रायतेउरमगुपविस- इन पाँच कारणों से श्रमण-नियन्य राजा के अन्तःपुर में माणे नाइक्कमति। -ठाणं. अ. ५, उ. २, सु. ४१५ प्रवेश करता हुआ जिनाशा का अतिक्रमण नहीं करता है।
निर्ग्रन्थ-निर्ग्रन्थी के सामूहिक व्यवहार---
णिगंथ-णिग्गंथोणं आलाव-संलाव कारणाई-- साधु-साध्वी के वार्तालाप करने के कारण४७३. चहि ठाणेहि णिगंथे णिग्गंधि आलयमाणे वा संलवमाणे ४७३. निग्रन्थ चार कारणों से निर्यन्थी के साथ अलाप-संलाप वा गाइसकमइ. तं जहा
करता हुआ जिनाज्ञा का उल्लंघन नहीं करता है । जैसे१. पंर्थ पुच्छमाणे वा, २. पंथ देसमाण वा, (१) मार्ग पूछता हुआ, (२) मार्ग बताता हुआ, ३. असणं वा-जाव-साइमं या बलयमाणे वा,
(३) अशन · यावत् - स्वाद्य देता हुआ। ४. असणं वा-जाव-साइम वा बलावेमाणे या ।
(४) गृहस्थों के घर से अशन-यावत्-स्वाद्य दिलाता -ठाणं. अ. ४,उ. २, सु. २६० हुआ। जिग्गंथ-णिग्गंधीणं एगत्थ आवास कारणाई- साधु-साध्वी के एक स्थान पर ठहरने के कारण४७४. पंचहि ठाणेहि णिगया जिग्गंथीओ य एगयओ ठाणे वा, ४७४. पाँच कारणों से नियन्य और नियंन्थियां एक स्थान पर सेज्ज वा, मिसीहियं वा चैतेमाणा णातिककर्मति, तंजहा- अवस्थान (ठहरना), शयन और स्वाध्याय करते हुए जिनामा का
अतिक्रमण नही करते हैं। जैसे