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________________ सूष ४६५-४६७. प्रतिम आदि के साथ विचरने वाली निधियों की संख्या www पवतिथि आईनं सहविहरमाणी थियो संखा सेनापतियोगं अध्यचस्मा, वह गगावच्छ होणं अध्य-पंचमार्ग कप वासावास दर अ संघ व्यवस्था प्रवर्तिनी आदि के साथ विचरने वाली निर्ग्रन्थियों की संख्या ४६५. नो कप्पइ पवत्तिणीए अप्प बिइयाए हेमंत हा भारए । ४६५. हेमन्त और ग्रीष्म ऋतु में प्रवर्तिनी साध्वी को एक अन्य गाव को साथ लेकर विहार करना नहीं कल्पता है । कम्प पतिगए अप्प तयार हेमंत हा चारए । तो कम्प गणाची अध्य-तरवाए हेमंतनिहा किन्तु हेमन्त और ग्रीष्म ऋतु में प्रति को अन्य दो रावी साथ लेकर विहार करना कल्पता है । हेमन्त और ग्रीष्म ऋतु में गणावच्छे दिनी को अन्य दो साध्वी साथ लेकर विहार करना नहीं कल्पता है । चार eers गणावच्छे इणीए अव्यवस्थाए हेमंत गिम्हासु चारए । किन्तु हेमस्त और ग्रीष्म ऋतु में गणावच्छे दिनी को अन्य तीन साध्वी साथ लेकर विहार करना कल्पता है । नो कप पवत्तिणीए अप्प-तइयाए वासावासं जत्थए । are में प्रवर्तिनी को अन्य दो साध्वियों के साथ रहना नहीं कार है। कपइ पर्यात्तिणीए अप्प च उत्याए वासावासं वत्थए । feng वर्षावाम में पतनी को अन्य तीन साध्वियों के साथ रहना कल्पना है। तो कप्पड़ गणावच्छ इणीए अप्प चउत्थाए वासावासं वत्थए । Safare में गणाच्छेदिनी को अन्य तीन साध्वियों के साथ रहना नहीं कल्पता है। कप्पर गणाच्छो हणीए अन्य पंचमाए वासावासं वत्थए । सेनामा हावा पतीगंधतयाणं, बहूणं गणायच्छेपोर्ण अध्ययउत्थानं कप्पर हेमंत महालु चारए अन्नं नाए। किन्तु वर्षावास में गणावच्छ दिनी को अन्य चार साध्वियों के साथ रहना कलाता है । हेम और में अनेक दिन को ग्राम यावत्राजधानी में अपनी-अपनी निश्रा में दो-दो अन्य साध्वियों के साय और अनेक गणावच्छे दिनी को तीन-तीन अन्य साध्वियों के साथ रहकर विहार करता कलाता है । वर्षावास में अनेक प्रवर्तन साध्वियों को ग्राम पावत् राजधानी में अपनी अपनी नेवा में तीन सीन बन्य बाध्वियों के साथ और अनेक गणावच्छे दिनी साध्वियों को चार-चार अन्य - उ. ५, सु. १-१० साध्वियों के साथ रहना कल्पता है । अकेलो नियन्थी को जाने का निषेध — नो sure निम्गंधीए एगाजियाए बहिया वियारभूमि वा बिहारभूमिका वा परिवा नो रुप निम्चीए एगणियाए-वामानामं वि वासावास वा वत्थए । - कप्प. . ६, सु. १६-१८ णिग्गंध विग्गंधीण बिहार बेस मेरा४१७. कप्पद निरगंधाण या निमगंीण वा पुरत्थमेणं जाव- अंगमगहाओ एसए. कोलम्बो एसए पत्थिमे जाय-पूणाविसयाओ एसए [२२५ गाथियाए निधीए नमण थिसेहो ४६६. निबंधोए एवाशियाए ग्राहाकुलं पिण्डवा ४६६. अकेली निधी को आहार के लिए गृहस्थ के घर में पहियाएवापत वा आना-जाना नहीं कल्पता है । अकेली निग्रंथी को शौच के लिए तथा स्वाध्याय के लिए उपाश्रय से बाहर जाना आना नहीं कल्पता है । अकेली निर्ग्रन्थी को एक गाँव से दूसरे गाँव जाना तथा वर्षाचाम करना नहीं कल्पता है । नियंम्पनि थिय के विचरण क्षेत्र को मर्यादा ४६७. निर्ग्रन्थों को और निर्ग्रन्थियों को, पूर्व दिशा में गतक दक्षिण दिशा में कोशास्त्री तक, विदिशा में देश क
SR No.090120
Book TitleCharananuyoga Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year
Total Pages571
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Conduct, Agam, Canon, H000, H010, & agam_related_other_literature
File Size18 MB
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