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________________ २२४] वरणानुयोग-श आधार प्रकल्प के अध्ययन योग्य बय का विधि-निषेध सूत्र ४६३-४६४ आयारपकप्पस्स अज्झयण जोग्गो वओ आचार प्रकल्प के अध्ययन योग्य वय का विधि निषेध४६३ नो कप्पइ निग्गंथाण वा निग्गंधीण वा खुपस्स वा स्वृद्धि- ४६३. अध्यंजनजात (अप्राप्त यौवन) बाल भिक्षु या भिक्षुणी को याए वा अवंजगजायस्स आयारपकप्पे णामं अजमय रहि- आचारप्रकल्प नामक अध्ययन पढ़ाना निर्ग्रन्थ और निग्रंथियों को सित्तए। नहीं कल्पता है। प्पद निगंयाण वा निगाण था खास था खुड्डियाए विन्तु यौवन प्राप्त भिन्न-भिक्षुणी को चार-प्रकल्प नामक वा बंजणजायस आधारपकप्पे णाम अजमणे उदिमित्तए। अध्ययन पढ़ाना निग्रन्थ और निन्थियों को कल्पता है । -बब. उ. १०, सु. २२-२३ विवरण-व्यवस्था-७ आयरियाई सह णिग्गंयाण संस्था आचार्यादि के साथ रहने वाले निर्ग्रन्थों की संख्या४६ ४. मो कप्पड आयरिय-उवमायल्स एमाणियस्स हेमन्त-गिम्हासु ४६४. हेमन्त और श्रीष्म ऋतु में आचार्य या उपाध्याय को चारए। अकेला विहार करना नहीं कल्पता है ।। कप्पर आयरिय-उवनायस्स अपविद्धयस्स हेमन्त-गिम्हासु किन्तु हेमन्त और ग्रीष्म ऋतु में आचार्य या उपाध्याय को पारए। एक साधु साथ लेकर विहार करता कल्पता है । मो कप्पड़ गणावच्छेहयस्स अप्पविइयस्स हेमन्त-गिम्हासु हेमन्त और ग्रीष्म ऋतु में गणावच्छेदक को एक ही साधु धारए। के साथ विहार करना नहीं कल्पता है। कप्पइ गणावच्छोइ यस्स अप्पतइयरस हेमन्त-गिम्हासु चारए। किन्तु हेमन्त और नीष्म ऋतु में गणावच्छेदक को दो अन्य साधु को साथ लेकर विहार करना कल्पता है। नो कप्पा आयरिय उवमायस्स अप्पश्चिइयरस थासावासं वर्षाकाल में आचार्य या उपाध्याय को एक साव के साथ यस्थए। रहना नहीं कल्पता है। कापड आयरिय-उवमायस्स अप्पतह यस्स वासावास बस्थए। किन्तु वर्षा काल में आचार्य या उपाध्याय को अन्य दो साधुओं के साथ रहना कल्पता है ।। नो कप्पद गणावच इयस्स अप्पतयस्स वासावासं पत्थए। वर्षाकाल में गणावच्छेदक को दो साधुवों के साथ रहना नहीं कल्पता है। कप्पद गणावच्छ इयत्स अपचउत्थस्स वासावास जत्थए। किन्तु वर्षाकाल में गणावच्छेदक को अन्य तीन साधुओं के माथ रहना कल्पता है। से गामसि वा-जाद-रायहाणिसि वा-बहूर्ण आयरिय-उज्मा- हेमन्त और ग्रीष्म ऋतु में अनेक आचार्य या उपाध्यायों को याणं अपबियाणं, वहण गणायचछइयाण अप्पतइयाणं ग्राम-पावत्-- राजधानी में अपनी-अपनी मेश्राय में एक-एक कप्पद हेमंत-गिम्हासु चारए अनमन्नं निस्साए । साधु के साथ और अनेक गणावच्छेदकों को दो-दो साधुओं के साथ रहकर विहार करना कल्पता है । से गामंसि या-जाद-रायणिसि घा, महूर्ण आयरिय-उव- वर्षा ऋतु में अनेक आवार्य या उपाध्यायों को ग्राम-यावत्मायाणं अस्पसहयाणं बरणं गणावसायाणं आपचउस्थाणं राजधानी में अपनी-अपनी नेत्राय में तीन-तीन साधुओं के साथ कण वासावास वस्पए अन्नमम्न निस्साए। और अनेक गणावच्छेदकों को चार-चार साधुओं के साथ रहना --वन. उ. ३, सु. १-१. कल्पता है।
SR No.090120
Book TitleCharananuyoga Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year
Total Pages571
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Conduct, Agam, Canon, H000, H010, & agam_related_other_literature
File Size18 MB
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