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चरणानुयोग-...
रत्नाधिक को अग्रणी मानकर विचरने का विधान
सत्र ४६१
दो गगावच्छेहया एगयओ बिहरसि, नो में कप्पा अनमन्न दो गणावच्छेदक एक साथ विचरते हों तो उन्हें परस्पर उपसंपज्जित्ताणं विहरिसए.
एक दूसरे को समान स्वीकार कर साथ में विचरना नहीं
कल्पता है, काप आहाराइणियाए अनमन्न उपसंपग्जिसाणं विष्ट किन्सु रत्नाधिक को अग्रणी स्वीकार कर माथ विचरना रिसए।
कल्पता है। यो आयरिय-उबजताया एगयओ विहरंति, नो कप्पड़ दो आचार्य या दो उपाध्याय एक साथ विचरते हों तो उन्हें अग्नमन्नं उपसंपतिमत्तागं विहरित्तए।
परस्पर एक दूसरे को समान स्वीकार कर साथ विचरना नहीं
कल्पता है। कर अनाराभिगाए अलमन्नं सक्षमपजिजसाणं विह- किन्तु रत्नाधिन को अग्रणी स्वीकार कर साथ विपरना रित्तए।
कल्पता है। महवे मिक्खूणो एगयओ विहरंति, नोगं कप्पा अनमन्नं बहुत से भिक्षु एक साथ विचरते हों तो उन्हें परम्पर एक उपसंपजिजसाणं विश्रितए ।
दुसरे को ममान स्वीकार कर साथ विचरना नहीं कल्पता है,
दुसर का ममान कप्पदणं अहाराइणियाए अन्नमरनं उथसंपजिसाणं विह- किन्तु रत्नाधिक को अग्रणी स्वीकार कर माय विचरना रिसए।
कल्पता है। बहवे गणावपछेहया एगयो विहरति, नोपं कापा अनमन्न बहुत से गणावच्छेदक एक साथ विचरते हों तो उन्हें परजवसंपग्जिसा विहरिप्सए।
स्पर एक दूसरे को समान स्वीकार कर साथ विचरना नहीं
कल्पता है, कम्पच गं महाराणियाए अनमन्नं उपसंपज्जित्ताणं विह. किन्तु पलाधिक को अग्रणी स्वीकार कर साथ विचरना रित्तए।
कल्पता है। बहावे आयरिय-उवमाया एगपओ विहरति, मोकप्पड़ बहुत से आचार्य या उपाध्याय एक साथ विचरते हों तो अनमग्नं उपसंपग्जितागं विहरित्तए।
उन्हें परस्पर एक दूसरे को समान स्वीकार कर साथ विचरना
नहीं कल्पता है, कम्पद पं अहाराइणियाए अनमन्न उवर्सपग्जित्ताणं बिह- किन्तु रत्नाधिक को अग्रणी स्वीकार कर विचरना रिसए।
कल्पता है। बहवे मिगलूणो, यहवे गणापच्छे इ या, वहीं आयरिय-उर- बहुत से भिक्षु, बहुत से गणाबच्छेदक और बहुत से आचार्य
माया एगयो विहरन्ति, नो गं कप्पा अन्नमग्न अवसंप- पा उपाध्याय एक माय विचरते हों तो उन्हें परस्पर एक दूसरे ज्जिसाणं विहरित्तए।
को समान स्वीकार कर साय विचरना नहीं कल्पता है, कप्पा णं अहाराइणियाए अनमन्न उपसंपमित्ताणं बिह- किन्तु रत्नाधिक को अरणी स्वीकार कर रिमा रित्तए।
-दव. उ. ४, सु. २६-३२ कल्पता है।