SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 313
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ सूत्र ४५८-४६१ प्रवज्या पर्याय के अनुक्रम से बम्हना का विधान संघ-व्यवस्था (२२१ तसि च णं कारगंसि निष्टुिति परो बएग्जा--"वसाहि रोगादि के समाप्त होने पर यदि कोई कहे किअज्जे ! एगरायं वा दुरायं वा", एवं से कप्पड़ एगरायं वा हे आर्य ! एक या दो रात और ठहगे तो उसे एमा या दो दुरायं वा बत्थए । नो से कप्पड़ परं एगरायाओ वा दुरा- रात और ठहरना कल्पता है। किन्तु एक या दो रात से अधिक याओ वा बल्थए । जा तत्थ एगरायाओ वा दुरायाओ वा ठहरना नहीं कल्पता है । जो साध्वी एक या दो रात से अधिक पर वस सासंतरा छए मा परिहारे या।। ठहरती है वह मर्यादा उल्लंघन के कारण दीक्षा-फेद या परिहार --बर. अ ५, सु. ११.१२ प्रायश्चित की पात्र होती है। विनय-व्यवहार-५ पञ्चज्जा परियायाणुक्कमेण बंदणा विहाणो प्रवज्या पर्याय के अनुक्रम से बन्दना का विधान४५६. कापड निम्याण वा निग्गंधीग वा-महारायणियाए ४५६. निग्रन्थों और निग्रन्थियों को पारित्र पर्याय के क्रम से किडकम्मं करेलए। -कल्प, उ. ३, सु. २० वन्दन करना कल्पता है । सेहस्स राइणियस्स य बबहारा शैक्ष और रत्नाधिक का व्यवहार४६०. दो साहम्मिया एगयो विहरति, सं जहा-हे य, राइ- ४६७. दो सार्मिक भिक्षु एक साथ विचरते हों यथा- अल्प पिए य। दीक्षा पर्याय वाला और अधिक दीक्षा पर्याय वाला । तस्थ सेहतराए पलिच्छन्ने, राइणिए अपलि छन्ने । उनमें यदि अल्प दीक्षा पर्याय वाला श्रुत सम्पन्न तथा शिष्य सम्पन्न हो और अधिक दीक्षा पर्याय वाला श्रुत सम्पन्न तथा शिष्य सम्पन्न न हो। सेहसराएणं राइणिए उक्संपजियम्वे, मिसोबवायं च फिर भी अल्प दीक्षा पर्याय वाले को अधिक दीक्षा पर्याय इलय कप्पागं। बाले की विनय वैयावृत्य करना, आहार लाकर देना, समीप में रहना और अलग विचरने के लिए शिष्य देना आदि कर्तव्य पालन करना चाहिये। दो साहम्मिया एण्यओ विहरंति, तं जहा--सेहे ५, दो साधर्मिक भिक्षु एक साथ विचरते हों, यथा-अल्प राइणिए । दीक्षा पर्याय वाला और अधिक दीक्षा पर्याय बाला । तत्य राइणिए पलिच्छन्ने, मेहतराए थपलिस्छन्ने । उनमें यदि अधिक दीक्षा पर्याय बाला श्रुत सम्पन्न तथा शिष्य सम्पन्न हो और अल्प दीक्षा पर्याय वाला श्रुत सम्पन्न तथा शिप्य सम्पन्न न हो। इच्छा राणिए सेहतरागं उबसंपपनेजा, इपछा नो उपसंप- तो अधिक दीक्षा पर्याय वाला इच्छा हो तो अल्प वीक्षा म्जेम्जा, हम्छा भिक्सोवा बलेज्जा कापागं, इन्छा नो पर्याय वाले की वैयावृत्य करे इच्छा न हो तो न करे । इच्छा हो वलेज्जा कप्पा । -वव. उ. ४, सु. २४-२५ तो आहार लाकर दे इच्छा न हो तो न दे। इच्छा हो सो समीप में रखे इच्छा न हो तो न रखे। इच्छा हो तो अलग विचरने के लिये पिष्व दे इच्छा न हो तो न दे। राइणियं उबसंपज्जिता विहार विहाणं रलाधिक को अग्रणी मानकर विचरने का विधान४६१. दो भिक्खुणो एगपओ विहरति, नो णं कप्पइ अनमन्नं उष- ४६१. दो भिक्षु एक साथ विचरते हों तो उन्हें परस्पर एक दूसरे संपज्जिताणं विहरितए; को समान स्वीकार कर साथ में विचरना नहीं कल्पता है, कप्पडणं अहाराइणियाए अनमन्नं उपसंपग्जित्ताणं विह- किन्तु रत्नाधिक को अग्रणी स्वीकार कर साथ विधरना रिसए । कल्पता है।
SR No.090120
Book TitleCharananuyoga Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year
Total Pages571
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Conduct, Agam, Canon, H000, H010, & agam_related_other_literature
File Size18 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy