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सूत्र ४३.४४४
आचार प्रकल्प विस्मृत को पद देने का विधि-निषेध
संघ-व्यवस्था
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गाढेभु कारणेसु माई, सुसावाई, असुई, पावजीवी, जाव- होने पर पदि अनेक बार मायापूर्वक मृषा बोले या पापश्रतों से ज्जीवाए तेसि तप्पत्तियं नो कम्पइ आयरियत्तं वा-जाव. बाजीविका करे तो उन्हें उक्त कारणो से यावज्जीवन आचार्य गणावच्छेइयत्तं वा उद्दिसिसए वा धारेत्तए था।
.-यावत्-पाणावच्छेदक पद देना या धारण करना नहीं
कल्पता है। बहवे गणावच्छे इया बहुस्सुया, बम्मागमा, बहसो बहु- बहुश्रुत, बहुभागमज्ञ अनेक गणावच्छेदक अनेक प्रगाह आगाढा गाढेसु कारणेसु माई. मुसाबाई, असुई, पापजोषी, कारणों के होने पर पदि अनेक बार मायापूर्वक मृषा बोले या जावज्जीवाए सेसि तप्पत्तियं नो कप्पड आयरियतं या-जाव- पापश्रुतों से आजीविका करे तो उन्हें उक्त कारणों से यावज्जीवन गणापयत वा उदिसिसए चा धारेत्तए था। आचार्य-यावत्-गणावच्छेदक पद देना या धारण करना नही
कल्पता है। बहवे आयरिय-उवमाया बहुस्सुया सम्भागमा बटुसो बहु- बहुश्रुत, बहुआगमन अनेक आचार्य या अनेक उपाध्याय आगाढा गाउँसु कारमेसु माई, मुसाबाई असुई, पापजीबी, अनेक प्रगाढ़ कारणों के होने पर यदि अनेक बार मायापूर्वक जावज्जीवाए तेसिं तप्पत्तिर्य मो कप्पर आयरियतं या-जाव- मृषा वोने या पापच तों से आजीविका करे तो उन्हें उक्त कारणों गणावइयत्त या उद्दिसिप्सए चा धारेतए था । से यावज्जीवन आचार्य-यावत् -गणावच्छेदक पद देना या
धारण करना नहीं कल्पता है । बहवे भिक्खुणो, बहवे गणाबछेइया बहवे आयरिय-उव. बहुश्रुत, बहुआगमज अनेक भिक्षा अनेक गणावच्छेवक या माया बहुस्सुथा बम्भागमा अgसो बढ़-आगाढा गाढेतु अनेक आचार्य उपाध्याय अनेक प्रगाढ़ कारणों के होने पर यदि कारणेतु, माई, मुसाबाई, असुई, पापजोको, आवाजीपाए अनेक बार मायापूर्वक मृषा बोले या पापश्रुतों से आजीविका तेसि-तम्पत्तिय नो कप्पइ आयरियतं या-जाव गणावच्छेइयत्तं करे तो उन्हें उक्त कारणों से यावज्जीवन आचार्य-पावत् -- वा उद्दिसिसए वा धारेत्तए का।
गणावच्छेदक पद देना या धारण करना नहीं कल्पता है।
:-वब. उ. ३, सु. २३-२६ आयारकप्पपरिभट्रस्स पद वाण विहि-णिसेहो
आचार प्रकल्प विस्मृत को पद देने का विधि-निषेध४४४. निर्गयस्स गं नव-हर-तरुणस्स आयारकप्पे नाम अमायणे ४४४. नव दीक्षित बास एवं तरुण निर्ग्रन्थ यदि आचारप्रकल्प परिभट्ट सिया, सेम पुच्छियो
(निशीम आदि) का अध्ययन विस्मृत हो जाए तो उसे पूछना
चाहिए कि--- केणं ते कारणेण अज्जो ! आयारपकम्पे नाम-अमायणे "हे आर्य ! तुम किस कारण से आधार प्रकल्प अध्ययन को परिम्भ?? कि आबाहेण उदाह पमाए ?"
भूल गए हो क्या व्याधि से भले हो या प्रमाद से?" से य वएज्जा नो आबाहेणं, पमाएणं, जायजीव तस्स यदि वह कहे कि --"व्याधि से नहीं अपिनु प्रमाद से विस्मृत तप्पत्तियं नो कप्पई आयरियतं वा-जाब-गणावच्छेनयतं हमा" तो उसे उक्त कारण से जीवन पर्यन्त आचार्य-यावत्वा उद्दिसित्तए था धारेत्तए वा।
गणावच्छेदक पद देना या धारण करना नहीं कल्पता है। से य वएज्जा-"आबाहेणं, नो यमाएणं, से य "संठवेस्सा- यदि वह कहे कि- "व्याधि से विस्मृत हुआ हूँ प्रमाद से मित्ति" संख्येन्जा एवं से कप्पर आयरितं वा-जाव- नहीं । अब मैं आचार प्रकल्प पुनः कण्ठस्थ कर लूंगा"--ऐसा गणावच्छेश्यसं या उद्दिसित्तए वा धारेत्तए वा ।
कहकर कण्ठस्थ कर ले तो उसे आचार्य-यावत-गणावच्छेदक
पद देना या धारण करना कल्पता है। से पसंठवेसामि" तिनो संठवेज्जा, एवं से नो कम्पह यदि वह आचार प्रकल्प को पुनः कण्ठस्थ कर लेने का कह आयरियसं वा-जाब-गणावच्छेदयत्तं वा उद्दिसित्तए वा कर भी कण्ठस्थ न करे तो उसे आचार्य-यावत्-- गणावच्छेदक धारेत्तए वा।
-वय, उ.५, मु. १५ पद देना या धारण करना नही कल्पता है। पेरा धेरभूमिपत्तागं आयार-पकप्पे नामं नाजायणे परि- स्थविरत्व प्राप्त स्थविर यदि आचार प्रकल्प अध्ययन विस्मृत भट्ठ सिया, कप्पड तेसिं संठवेसाणं वा, असंठवेसाणं था हो जाये और पुनः कण्ठस्थ करे या न करे तो भी उन्हें आचार्य आयरियस बा-जाय-गणावच्छेइयत्तं वा उहिसित्तए वा -पावत-गणावच्छेदकः पद देना या धारण करना कल्पता है। धारेत्तए वा।