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________________ २१४] वरणानुयोग-२ अब्रासेवी को पद देने के विधि-निषेध सूत्र ४४४-४४५ थेराण थेरभूमिपत्ताणं आयार-पकरपे नाम अग्न्तयणे परि स्थविरत्व प्राप्त स्थविर यदि याचार प्रकल्प अध्ययन उमटू मिया कप्पह सेसि सनिसणाणं बा, संतुपट्टाणं वा, विस्मृत हो जाये तो उन्हें बैठे हुए, शयन किये हुए, अर्धशयन उत्तणयाण वा, पासिल्लयाण वा आयारपफप्पं नाम किये हुए या पार्श्वमा म गयन किये हुए को भी पुनः आचार अश्मयण दोच्चपि तच्चपि परिपुच्छित्तए वा, पडिसारे. प्रकल्प अध्ययन का दो-तीन बार पूछकर श्रवण करना और याद तए था। -वन.उ.५, सु. १७-15 करना कल्पता है । अबभसेवोणं पय-दाण विहि-णिसेहो अब्रह्मसेवी को पद देने के विधि-निषेध -. ४४५. भिक्यू य गणाओ अवक्कम मेहुण धम्म पडिसेबेज्जा, तिणि ४८५. यदि कोई भिक्षु गण को छोडकर मैचन--धर्म का प्रति संबछराणि लस्स तप्पत्तियं नो कप्पह आयरियत वा जाव- सेवन करे तो उसे उक्त कारण से तीन वर्ष पर्यन्त आचार्य गणावच्छेदयत्तं वा उदिसित्तए वा धारेसए वा । -यावत्-- गणावच्छेदक पद देना या धारण करना नहीं कल्पता है। लिहि संवरफरेहि वीइक्कतर घउत्यगंसि संबछारसि पांढ- तीन वा व्यतीत होने पर और चौथे वर्ष में प्रवेश करने पर सिठियस्स उवसंतस्स, उबरयस्स, पडिविरयम्स, निगिट- यदि वह बेदोदय से उपशान्त, मैथुन से निवृत्त, मैथुन सेवन से फारम्स एवं से कास्पद आयरियत्तं वा-जाव-गगावच्छोइयत्तं म्नानि प्राप्त और विषय-वासना रहित हो जाए तो उसे आचार्य या उद्दिसित्तए वा धारेत्तए वा। -यावत् - गणावच्छेदक पद देना या धारण करना कल्पता है। गणावच्छेदए गणापच्छेहयत्तं अनिक्खिविसा मेहुणधम्म पडि- यदि कोई गणावच्छेदक अपना पद छोड़े दिना मैथुन धर्म का सेवेम्जा, जायजीवाए तस्स तत्पत्तिय नो कप्पइ आपरिवत्तं प्रतिसबन करे तो उसे उक्त कारण से सावज्जीवन आचार्य-पावत्वा-जाव-गावच्छेदयत्तंबा, उहिसित्तए वा धारेतए वा। गणादिक पद देना या धारण करना नहीं कल्पता है। गणावच्छेदए गणावच्छेदयत्तं निक्लिविता मेहणधम्म पडि- यदि कोई गणावच्छेदक अपना पद छोड़कर मथुन धर्म का सेवेजा, तिषित संबच्छराणि तस्स तप्पत्तियं नो कप्प६ प्रतिसेवन करे तो उसे उक्त कारण से तीन वर्ष पर्यन्त आचार्य आयरियसं वा-जाव-गणावच्छोयतं वा उदिसित्तए वा धारे. -यावत् --गणावच्छेदक पद देना या धारण करना नही सए वा। कल्पता है। तिषि संबस्छरेहि बीइक्कतेहि चउत्यगंसि संवाछरंसि पटि- तीन वर्ष व्यतीत होने पर और चौथे वर्ष में प्रवेश करने पंसि ठियस्स उपसंतस्स, उवरयस्स पडिविरयस्स, लिब्धि. पर यदि वह उपशान्त, उपरत, प्रतिबिरत और निर्विकार हो गारस्स एवं से कप्पड आयरियतं बा-जाब-गणावच्छेदमत्तंबा जाए तो उसे आचार्य-यावत् -गणावच्छेदक पद देना या उहिसित्तए वा धारेतए वा। धारण करना कल्पता है। आयरिय-उबजाए आयरिय-उवसायसं अनिक्सिविता यदि कोई आचार्य या उपाध्याय अपने पद को छोड़े बिना मेहुणधम्म पडिसेवेज्जा, जावज्जीवाए तस्स अप्पत्तियं नो मधुन धर्म का प्रतिसेवन करे तो उसे उक्त कारण से यावज्जीवन कप्पद आयरियतं या-जावणावच्छेदयत्तं वा हिसित्तए आचार्य - पावन - गणावच्छेदक पद देना या धारण करना नहीं वा धारेत्तए वा। कल्पता है। आयरिय-उघडझाए आयरिय-उवमायत्त निक्विवित्ता मेहुण- यदि कोई आचार्य या उपाध्याय अपने पद को छोड़कर धम्म पजिसेवजा, तिमि संवच्छराणि तस्स तप्पत्तिय नो मैन धर्म का प्रतिसेवन करे तो उसे उक्त कारण से तीन वर्ष कप्पा आयरिश्तं वा-जाव-गगावच्छेइयतं वा उद्दिसित्तए पर्यन्त आचार्य--यावत्-गणावच्छेदक पद देना या धारण वा धारेत्तए वा। करना नहीं कल्पता है। तिहि संबच्छरेहि बोहरकतेहि चउत्थगंसि संवच्छरंलि पट्टि- तीन वर्ष व्यतीत होने पर और चौथे वर्ष में प्रवेश करने यंसि ठियस्म, उपसंतस्स, उबरयस्स, पतिविरयस्स, निवि. पर यदि वह उपशान्त, उपरत, प्रतिविरत और निर्विकार हो पारस्स, एवं से कप्पइ आयरियतं वा-जाव-गणावच्छेइयत्तं जाए तो उसे आचार्य -यावत्-गणाबच्छेदक पद देना या या उद्दिसित्तए वा धारेसए वा । -- वब, उ. ३, सु. १३-१७ धारण करना कल्पता है। अल्पकाल का दीक्षित साधु स्थविर को चार प्रकल्म अध्ययन का स्मरण कराए-इसकी "परिसारण" संज्ञा है और स्थविर द्वारा स्मरण करने की "प्रतिच्छन" संज्ञा है।
SR No.090120
Book TitleCharananuyoga Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year
Total Pages571
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Conduct, Agam, Canon, H000, H010, & agam_related_other_literature
File Size18 MB
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