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________________ २०२] चरणानुयोग-२ पदत्याग के प्रकार सूत्र ४१६-४२३ १. आयरियताए, २. उवायत्ताए, (१) आचार्य की, (२) उपाध्याय की, ३. गणित्ताए। ठाणं, अ, ३, उ. ३, सु. १८० (३) गणी की। विजणा पगारा पदत्याग के प्रकार४२०.तिविधा विजहणा पण्णता, तं जहा ४२०. पद का परित्याग तीन प्रकार का कहा गया है, यया१, आयरियताए, २. उवमायत्ताए, (१) आचार्य का, (२) उपाध्याय का, ३. गणिताए । -ठाणं.अ. ३... ३, सु. १८० (३) गणी का। सिविहा आयरक्खा तीन प्रकार से आत्म-रक्षा--. ४२१. तओ आपरक्षा परमत्ता, सं जहा ४२१. तीन प्रकार से आत्म-रक्षा हेती है, यथा-- १. धम्मियाए परिचोयणाए पडिचोएसा भवति, (१) अकरणीय कार्य में प्रवृत व्यक्ति को धार्मिक बुद्धि से प्रेरित करने से। २.तुसिनीए वा सिया। (२) प्रेरणा न देने की स्थिति में मौन धारण करने से। ३. उद्वित्ता वा आताए एगंतमवरक मेज्जा । (३) मौन और उपेक्षा न करने की स्थिति में वहाँ से उठठाणं. ब. ३, उ. ३, सु. १८० कर स्वयं एकान्त स्थान में चला जाने से । हरदसमो आयरियो जलाशय जैसे आचार्य -- ४२२. से बेमि, तं जहा ४२२. भगवान् ने आचार्य के गुणों का जैसा वर्णन किया वैसा मैं कहता हूँ। जैसेअखि हरए पविपुणे चिट्ठति समंसि भोमे उपसंतरए एक जलाशय जो जल से परिपूर्ण है, समभूभाग में स्थित सारक्खमाणे । से चिटुति सोतमन्मए । है, कीचड़ रहित है अनेक जलचर जीवों का संरक्षण करता हुआ स्रोत के मध्य में स्थित हैं। से पास सध्यतो गुत्ते । पास लोए महेमिणो । जे य पण्णाण- हे शिष्य तु देख कि ऐसे ही आचार्य भी अनेक सद्गुणों से मंता । पमुखा आरंभोवरता सम्ममेतं ति पासहा । कालस्स परिपूर्ण होते हैं तथा सर्व प्रकार से गुप्त होते हैं। हे शिष्य तू कंखाए परिवति । लोक में उन महर्षियों को देख ! जो उत्कृष्ट ज्ञानवान हैं, प्रबुद्ध -आ. सु १, अ. ५, 3. ५, सु. १६६ हैं और आरम्भ से विरत हैं । वे ही सम्यक आराधना करने वाले हैं और पण्डित मरण की आकांक्षा करते हुए संयन्त्र में विचरण करते हैं। जारियप्पगारा-- आचार्य के प्रकार ४२३. चत्तारि जायरिया पणत्ता, तं जहा ४२३. चार प्रकार के आचार्य कहे गए हैं, यथा१. पवाबणायरिए नामेगे, नोउवट्ठावगारिए, (१) कोई आचार्य (किसी एक शिष्य की अपेक्षा) प्रवज्य' देने वाले होते हैं किन्तु महाव्रतों का आरोपण करने वाले नहीं होते हैं। २. उवद्वावणायरिए नामेगे, नो पषावणापरिए, (२) कोई आचार्य महावतों का आरोपण करने वाले होते है किन्तु प्रवज्या देने वाले नहीं होते हैं। ३. एगे पम्पावणायरिए ति, उबट्टावणायरिए वि, (३) कोई आचार्य प्रवज्या देने वाले भी होते हैं और महा. व्रतों का आरोपण करने वाले भी होते हैं। ४. एगे नो पदबावमारिए, नोउपटावणायरिए-धम्मायरिए । (४) कोई आचार्य न प्रवज्या देने वाले होते हैं और न महा व्रतों का बारोपण करने वाले होते हैं। किन्तु केवल धर्मोपदेश देने वाले होते हैं। चत्सारि आयरिया पण्णता, सं महा चार प्रकार के प्राचार्य कहे गए है, यथा
SR No.090120
Book TitleCharananuyoga Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year
Total Pages571
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Conduct, Agam, Canon, H000, H010, & agam_related_other_literature
File Size18 MB
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