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________________ सूत्र ४२३-४२१ १. उसावर नामगे, नो वाणारिए अंतेवासिस्स पगारा ४२४. सारि अंतेयासी पण्णत्ता, तं जहा- १ २. नामे नोउ सारिए ३. एये उचारिए थिए, ४. एगे नो उद्दसणायरिए तो वायगारिए-धम्मारिए । -- जय. उ. १०. सु. १४-१५ १.नामी, २. जवद्वावणंतेवासी नामेगे, नो पव्यावणंतेवासी, ५. एगे पाववासी विवि. ४. नवासी नरे उबवणंतेवासी, पम्मतेवासी। चारि अंतेवासी पष्णता, तं जहा १. उ सतवासी नामेने, नो वायतेवासी, २. वासामेगे, मी उई समवासी, ३. एगे उद्देसणंतवासी व वायवासी वि , शिष्य के प्रकार विविहा गणवेयावरच करा ४२५. बारि पुरिसजाया पसा जहा १. अटुकरे नाम एगे, नो भागकरे, २. मानकरे नाम एगे, नो अटुकरे. ३. एगे अनुकरे वि. माणक वि ४. एगे नो अद्रुकरे, नो माणकरे। ४. एगेनो उद्दे सणतेवासी, नो वायणंतेवासी, धम्मंतेवासी । - वव. अ. १०, सु. १६-१७ ठा. अ. ४, उ. सु. ३२० (2) कोई आचार्य देने की आज्ञा देने वाले होते हैं। (२) कोई आचार्य संघ व्यवस्था नहीं है । [२०३ (किसी एक शिष्य की अपेक्षा वाचना होते हैं, किन्तु वाचना देने वाले नहीं वाचता येते हासे होते हैं किन्तु वाचना देने की आज्ञा देने वाले नहीं होते हैं । (३) कोई आचार्य नाचना देने वाले भी होते हैं और वाचना देने की आज्ञा देने वाले भी होते हैं । (४) कोई आचार्य वाचना देने वाले भी नहीं होते हैं और वाचना देने की आज्ञा देने वाले भी नहीं होते हैं वे केवल धर्माचार्य होते हैं। शिष्य के प्रकार ४२४. अन्तेवासी (शिष्य) चार प्रकार के कहे गये हैं। जैसे( १ ) कोई प्रव्रज्या शिष्य है, परन्तु उपस्थापना शिव्य नहीं है। (२) कोई उपस्थापना शिष्य है, परन्तु प्रव्रज्या शिष्य नहीं है। (३) कोई प्रव्रज्या शिष्य भी है और उपस्थापना शिष्य भी है। (४) कोई न प्रव्रज्या शिष्य है और न उपस्थापना शिष्य है । किन्तु धर्मोपदेश से प्रतिबोधित शिष्य है । पुनः अन्तेवासी चार प्रकार के कहे गये हैं, जैसे(१) कोई उन अवासी है, परन्तु राना (२) कोई वाचना अन्तेवासी है परन्तु उद्देशन अन्तेवासी नहीं है। (३) कोई उमन अन्तेवासी भी है और वाचना-बन्तेवासी भी है। (४) कोई न उद्देशन अन्तेवासी है और न मानना अन्तेवामी है। बिन् धर्मोपदेश से प्रतिबोधितमिष्य है। विविध प्रकार के गण की वैयावृत्य करने वाले - ४२५. चार प्रकार के साधु पुरुष कहे गये हैं । जैसे— ( १ ) कोई साधु कार्य करता है किन्तु मान नहीं करता है । (२) कोई मान करता है किन्तु कार्य नहीं करता है। (३) कोई कार्य भी करता है और मान भी करता है । (४) कोई कार्य भी नहीं करता है और मान भी नहीं करता है । २ ठाणं. अ. ४, उ. ३, सु. ३२०
SR No.090120
Book TitleCharananuyoga Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year
Total Pages571
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Conduct, Agam, Canon, H000, H010, & agam_related_other_literature
File Size18 MB
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