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________________ जिन के प्रकार संघ व्यवस्था [१९६ उ०-गोयमा ! जावतिए णं उसमस्स अरहमो कोसलियस उ.---गौतम ! कौशलदेशोत्पन्न ऋषभदेव बरहात का जिगपरियाए तावतियाई संखेन्नाई वासाई आग- जितना जिनपर्याय है उत्तने (एक हजार वर्ष कम एक लाख पूर्व) मेस्साणं चरिमतित्थररस्स तित्थे अणुसज्जिस्तति। वर्ष तक भावी तीर्थकरों में से अन्तिम तीर्थकर का तीर्थ रहेगा । -वि. स. २०, उ, ८, सु. १२-१३ जिणप्पगारा जिन के प्रकार४०८. तओं जिणा पण्णसा, तं जहा ४०८. जिन तीन प्रकार के कहे गये हैं-पथा-- १. ओहिणागजिणे, २. प्रणपज्जवणाणजिणे, (१) अवधिज्ञानी जिन, (२) मनःपर्यवज्ञामी जिन, ३. केवलणाण जिणे। -ठा. अ. ३, उ. ४, मु. २२० (३) केवलज्ञानी जिन ।। केवली-पगारा केवली के प्रकार४०६.समो केवली पणसा, तं जहा ४०६. केवली तीन प्रकार के कहे गये हैं, यथा१. ओहिणाण केवली, २. मणपज्जवणाण फेवली. (१) अवधिज्ञान केवली, (२) मनःपर्यवज्ञान केवली. ३.केवलणागपशी। -डा.ब . २२० ) केवलज्ञान केवली। अरिहन्तपगारा अरिहन्त के प्रकार४१.. सओ अरहा पण्णसा, तं जहा ४१०. अहंन्त तीन प्रकार के कहे गये हैं, यथा१. ओहिणाण अरहा, २. मणपजवणाण अरहा, (१) अवधिज्ञानी अर्हन्त, (२) मनःपर्यवज्ञानी महन्त ३. केवलणाण अरहा। -ठाणं. ब. ३, उ. ४. सु. २२० (३) केवलज्ञानी अहंन्त ।। रायणिय पुरिसप्पगारा रानिक पुरुषों के प्रकार४११. तो पुरिसज्जाया पग्णता, तं जहा ४११. पुरुष तीन प्रकार के कहे गये हैं; यथा-- १. गाणपुरिसे, २. सणपुरिसे, (१) शान पुरुष, (२) दर्शन पुरुष, ३. चरितपुरिसे। -ठाणं. अ. ३, उ. १, सु. १३७ (३) चारित्र पुरुष । रायणियिदप्पगारा रालिक इन्द्रों के प्रकार४१२. तओ हा पण्णता, तं जहा ४१२. इन्द्र तीन प्रकार के कहे गये हैं, यथा१.गाणिवे, (१) ज्ञानेन्द्र (विशिष्ट श्रुतज्ञानी या केवली), २. सणिवे, (२) दर्शनेन्द्र (क्षायिक सम्यग्दृष्टि), ३, बरितिवे। -ठाणं. अ. ३. उ. १, सु. १२७ (३) चारित्रन्द्र (यथाख्यात चारित्रवान् ।) थविरपगारा स्थविर के प्रकार४१३. तमो थेरमिओ पण्णताओ, तं जहा ४१३. स्थविर तीन प्रकार के कहे गये हैं, यथा१. जाइयेरे, २. सुथ-वेरे, (१) बय-स्थविर, (२) श्रुत-स्थविर, ३. परियाय-थेरे। (३) पर्याय-स्थविर। १. सट्टिबासजाए समणे निग्गये जाइ-थेरे। (१) साठ वर्ष की आयु वाले श्रमण-निर्ग्रन्थ षय स्थविर है । २. ठाण समवायांगधरे समणे निग्यपे सुप-बेरे। (२) स्थानांग ममवायांग के धारक श्रमण निन्य श्रुत स्थविर हैं। ३ बीसवासपरियाए समणे निगाथे परिवाय-घरे । (३) बीस वर्ष की दीक्षा पर्याय के धारक श्रमण निर्ग्रन्थ --बव. उ. १०, सु. १८ पर्याय स्थविर हैं । बस घेरा पापत्ता, तं जहा स्थविर दस प्रकार के होते हैं१. गाममेरा, २. नगरबेरा, (१) ग्रामस्थविर, (२) नगरस्थविर, उप
SR No.090120
Book TitleCharananuyoga Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year
Total Pages571
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Conduct, Agam, Canon, H000, H010, & agam_related_other_literature
File Size18 MB
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