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________________ सूत्र ४०० -४०४ निमित्त कथन के प्रायश्वित सूत्र निमित्त वागरणस्स पायच्छित्त सुताई ४००. जे भिक्खू तीयं णिमितं वागरेह वागतं वा साइज्जइ । मागे वावज चाउमावि परिहारार्थ । . . . १३ . २१ जे भिक्यं निमित्तं वागरेड वागतं या साइज जे अणायं निमित्तं वागरेद्र वागतं वा साइज्जइ । तं सेवमा अणुभ्धाप्रयं । बोमावणरस पायति-सुताई ४०१. जे भिक्खू अप्पाणं योभावे खोभावतं वा साइज । जे भिक्खू परं यीभावे बीभाषेत पर साइनइ । परिहाराणं - नि. उ. १०, सु. ७-८ आषज्ज चाउम्मासिय चाउम्मासि सेवमाने आज चाउमावि परिहारार्ण अणुग्धा । - नि. उ. ११, सु. ६४-६५ विहायणस्स पायच्छित गुसाई४०२. मागं विग्हावेद विहाय वा साइ दहावे यासा तं सेवमाणे आवश्जद चान्मासि परिहार अणुग्याह । -नि. उ. ११, सु. ६६-६७ विपपरिया सणास पायसुताई१०३. जे भिक्खू अप्पानं विप्यरियासह विपपरिया संत वा साइजइ । जे भिक्खू परं विपरियासे विप्परिपातं वा साह | सं सेवमाणे आज अनु तं देवमागे वह नाउम्माथि परिहाराणं अणुस्वाइयं । -नि. ज. ११. सु. ६८-६६ अगतित्थिय पसंरकरणस्स पायच्छित सुत्तं४०४. जे भिक्खू मुवर्ण करेद्र करें या साइज् । चाम्पासिय परिहाराचं - नि. उ. ११, सु. ७० अनाचार [88'9 निमित्त कथन के प्रायश्चित्त सूत्र ४००. जो भिक्षू अन्यतोर्थिकों या गृहस्थों को भूत काल सम्बन्धी निमित्त बताता है या बताने वाले का अनुमोदन करता है । उसे उद्घातिक चातुर्मासिक परिहारस्थान ( प्रायश्चित्त) जाता है। जो भिक्षु वर्तमान का सम्बन्धी निमित्त कहता है, कहल जाता है या कहने वाले का अनुमोदन करता है। जो भिक्षु भविष्य काल सम्बन्धी निमित्त कहता है, कहल वाता है या कहने वाले का अनुमोदन करता है । उसे अनुद्घातिक चातुर्मासिक परिहारस्थान ( प्रायश्चित्त ) आता है। भयभीत करने के प्रायश्वित्त सूत्र ४०१. जो भिक्षु स्वयं को डराता है, डरवाता है या डराने वाले का अनुमोदन करता है । जो भिक्षु दूसरे को डराता है, इरवाता है या डराने वाले का अनुमोदन करता है । उसे अनुद्घातिक चातुर्मासिक परिहारस्थान ( प्रायश्चित्त) आता है । विस्मित करने के प्रायश्वित्त सूत्र ४०२. जो भिक्षु स्वयं को विस्मित करता है, विस्मित करवाता हैं या विस्मित करने वाले का अनुमोदन करता है । ओ भिक्षु दूसरे को विस्मित करता है, विस्मित करवाता है या विस्मित करने वाले का अनुमोदन करता है । उसे अनुद्घातिक चातुर्मासिक परिहारस्थान (प्रायश्चित्त) जाता है । विपर्यासकरण प्रायश्चित ४०३. जो भिक्षु स्त्रयं को विपरीत बनाता है, विपरीत बनवाता या विपरीत बनाने वाले का अनुमोदन करता है। जो भदूसरे को विपरीत बनाता है, परीस बनवाता है यापरीत बनाने वाले का अनुमोदन करता है । उसे अनुद्घातिक चातुर्मासिक परिहारस्थान ( प्रायश्चित्त ) आता है । अन्यतीधिकों की प्रशंसा करने का प्रायश्चित्त सूत्र४०४. जो भिक्षु अन्य धर्म प्रवर्तकों को प्रशंसा करता है, करवाता है या करने वाले का अनुमोदन करता है। उसे अनुद्घातिक चातुर्मासिक परिहारस्थान ( प्रायश्चित्त ) बाता है।
SR No.090120
Book TitleCharananuyoga Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year
Total Pages571
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Conduct, Agam, Canon, H000, H010, & agam_related_other_literature
File Size18 MB
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