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घरणानुयोग-२
विद्यादि का प्रयोग करने के प्रायश्चित्त सूत्र
सत्र ३९५-३६६
साधर चाउम्मासि परिहारदाण उपधारय। उसे चातुर्मासिक उदधातिक परिहारस्थान (प्रायश्चित
-नि. उ. १३, सु. २२-२४ आता है। विज्जाइ पउंजणस्स पार्याछत्त सुत्ताई
विद्यादि का प्रयोग करने के प्रायश्चित्त सूत्र३६६.जे मिक्ख अण्णस्थियाण या गारत्थियाण धा बिज्ज' ३९६. जो भिक्षु अभ्यतीथिकों या गहस्थों के लिए विद्या" का परजइ, पउजत वा साइज्जई।
प्रयोग करता है, करवाता है या करने वाले का अनुमोदन
करता है। ने मिक्स्य साहित्रणाण वा गारस्यियाग वा मंत' पबंजई, जो भिक्षु अन्यतीयिकों या गृहस्थों के लिए "मम्म" का पउजत वा साइम्जा ।
प्रयोग करता है, करवाता है या करने वाले का अनुमोदन
करता है। ने भिक्ख अग्णउस्यियाण वा गारस्थियाण वा जोग पजइ जो भिक्षु अभ्यतीधिकों या गृहस्थों के लिए "योगका पउंजलंबा साइजई।
प्रयोग करता है, करवाता है या करने वाले का अनुमोदन
करता है। सं सेवमाणे आवाज चाउम्मासियं परिहारट्ठाणं उरघाइयं । उसे चातुर्मासिक उपातिक परिहारस्थान (प्रायश्चित्त)
-नि.उ. १३, सु. २५-२७ आता है। मग्गाइ पवेयणस्स पायच्छित सुतं
मार्गादि बताने का प्रायश्चित्त सूत्र- . ३६७. जे भिक्खू अण्णउत्थियाण या गारस्थियाण या नट्ठागं, मूढाणं ३६७. जो भिक्षु मार्ग भूले हुए, दिशामूढ़ हुए या विपरीत दिशा
विप्परियासियाणं मग दा पवेदेइ, संधि वा पवेदेश, मागायो में गये हुए अन्यतीथिकों या गृहस्थों को मार्ग बताता है, मार्ग वा संधि पवेदेइ, संघीओ वा मम्ग पवेदेइ पवेवंतवा की संधि बताता है, मार्ग से संधी बताता है अथवा संधी से साइजद ।
मार्ग बताता है या बताने वाले का अनुमोदन करता है। तं सेवमाणे आवज्जइ चाउम्मासियं परिहारदाण उग्घाइय। उसे चातुर्मालिक उद्घातिक परिहारस्थान (प्रायश्चित्त)
-नि. उ. १३, सु. २८ आता है । धाउ-णिहि पवेयणस्स पायच्छित्त सुत्ताई. .
धातु और निधि बताने के प्रायश्चित्त सूत्र३६८. जे मिक्खू अण्णउत्यियाण या गारस्थियाण वा धाउं पवेवेष ३६८. जो भिक्षु अन्यतीथिकों या गृहस्थों को धातु बताता है या पयेवत वा साइज्जइ ।
बताने वाले का अनुमोदन करता है। जे भिक्खू अण्णउत्यियाण वा गारत्थियाण वा णिहि पदे जो भिक्षु अन्यत्तीथिकों को या गृहस्थों को निधि (खजाना) पवेवत बा साहज्जइ ।
बताता है या बताने वाले का अनुमोदन करता है। त सेवमाणे आवन्जद चाउम्मासि परिहारदाण उग्याइयं। उसे चातुर्मासिक उद्घातिक परिहारस्थान (प्रायश्चित्त)
-नि. उ.१३, सु. २६-३० आता है। अप्पणो आयरिय-लक्षण-वागरणस्स पायच्छित्त सुत्त- अपने आपको आचार्य के लक्षण युक्त कहने का प्रायश्चित्त
सूत्र३६६. भिक्खू अप्पणो आयरियताए लक्खणाई वागरेइ वागरतं ३६६. जो भिक्षु स्वयं अपने को आचार्य के लक्षणों से सम्पन्न वा साइजा।
कहता है, नहलवाता है या कहने वाले का अनुमोदन करता है। तं सेवमाणे आवम्झइ चाउम्मासिवं परिहाराणं उग्याइयं । उसे चातुर्मासिक उद्घातिक परिहारस्थान (प्रायश्चित्त)
-नि. उ १७, सु. १३३ आता है।
१ विज्ज=विशेष प्रकार की साधना से जो सिद्ध की जाती है वह "विद्या' कही जाती है। २ मत-जाप करने से सिद्ध होने वाला 'मन्त्र' कहा जाता है। ३ जोग-वशीकरणादि के प्रयोग 'योग' कहे जाते हैं।