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सूत्र २७०-२७१
एवं अभिसमागम्म सव-मोह-विनिमुक्का,
तेरस किरिया ठाणा
३७१. तेरस किरिया ठाणा पण्णत्ता, तं जहा -
१. लट्टावंडे, २. गावंडे,
२. हिसा
४.
५. विविधपरिआ सिआवंडे,
६.
७. अविण्यावागलिए.
८. थिए
सूरा वढ
पश्चकमा ।
जाइ-मरणमसिया || सा.द. ६, गा. १-३६
६. मातिए
१०. मिलिए,
१ (क) सम. स. ३०, सु. १
(ख)
तेरह चियास्थान
११. मामात्तिए,
१२. सोलिए
१३. ईरियावहिए नाम तरसने सम राम. १३, यु. १
क्रियास्थान - ६
(१) श्वास रोक कर मारना
(२) धुंए आदि से मारना,
( ३ ) मस्तक का भेदन करके मारना
(४) मस्तक पर गीला चमड़ा बांधकर मारमा
शेष सभी का क्रम समान है ।
२ सू. सु. २. २.गु.१
जो परामी, सुरवीर भिक्षु सभी स्थानों को जानकर उन मोहबन्ध के कारणों का त्याग करता है वह जन्म-मरण का अतिक्रमण कर देता है, अर्थात् संसार से मुक्त हो जाता है ।
तेरह क्रियास्थान
३७१. तेरह क्रियास्थान कहे गये हैं। जैसे—
運
(१) सप्रयोजन हिंसा
(२) नियोजन दिया।
(२) संकल्प युक्त हिसा ।
(४) अचानक होने वाली हिंसा ।
(५) मतिभ्रम से होने वाली हिंसा ।
(६) माबाद के निमित्त से होने वाली क्रिया ।
(७) अदत्तादान के निमित्त से होने वाली क्रिया ।
(८) बाह्य निमित्त के बिना स्वतः मन से उत्पन्न होने वाली
क्रिया |
अनाचार [१८६
(१) अभिमान के निमित्त से होने वाली किया।
(१०) मित्र के प्रति अप्रिय भाव के निर्मिस से होने वाली
क्रिया।
स्कन्ध और समवायांग सूत्र में समान वर्णन है किन्तु दूसरे स्थान से पांचवें स्थान तक चार स्थानों के म
अन्तर है, जो लिपि दोषजन्य सम्भव है ।
यह अन्तर इस प्रकार है-
(११) माया के निमित्त से होने वाली क्रिया ।
(१२) लोभ के निमित्त मे होने वाली किया।
(१३) काय रहित योगों के निमित्त से होने वाली किया।
समवायोग में
तीसरा है
चोया है
पाँचवा है
दूसरा है
दशाभूतस्कन्ध
दूसरा है।
तीसरा है।
है। पाँव है।
में